Sunday, December 25, 2011

ख्वाब और सांस-हिन्दी शायरी

जहान चला रहा है सर्वशक्तिमान
मगर कुछ लोगों गलतफहमी है कि
वह उसके रास्ते चांद और सूरज से
सजा सकते हैं,
जिस पर लोग चलते हुए ऐश करेंगे,
बस यूं ही हम फरिश्तों की तरह
अपना नाम इतिहास में भरेंगे।
कहें दीपक बापू
किसी को समझाना मुश्किल है
खुशफहमियों में जिंदा रहने की आदत हो गयी
वह दूर हो गयी तो लाश बन जायेंगे
बहानों में जीने की आदत हैं इंसानों को
वहम तोड़ने का फायदा नहीं
सांसों के कम होने से नहीं
ख्वाब टूटने से ज्यादा लोग मरेंगे।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Thursday, December 15, 2011

दिल बहलाने के लिए-हिन्दी शायरियाँ (dil bahalane ke liye-hindi shayariyan)

हमने पूछा था पता
अपना दिल बहलाने का
उन्होंने शोर की महफिल का रास्ता बता दिया
हम गये थे तसल्ली पाने
लौटे साथ यह दर्द लेकर
कि लोगों ने खौफनाक हादसों
दिल बहलाने के लिये
अपने लफ्जों में सजा लिया।
---------
अपने साथ हादसे
हम यूं ही छिपाये जाते हैं,
मालुम है कि कोई हमदर्द नहीं बनेगा
लोगों का शौक हो गया
अपने दर्द का इलाज
दूसरों की तकलीफ मे
दिल बहलाने के लिये ढूंढने जाते हैं।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Thursday, November 24, 2011

अन्ना हजारे साहिब और शराब-हास्य कविता (anna hazare sahib aur sharab-hasya kavita)

त्यौहार के दिन
फंदेबाज घर आया और बोला
‘‘दीपक बापू आज पहली बार दे रहा हूं सात्विक बधाई,
यह पहला मौका है है
जब मैने किसी खास अवसर पर
अपने मुंह से शराब की एक बूंद भी नहीं लगाई।
सोच रहा हूं पीना छोड़ दूं
वरना कहीं कोई पीट पीटकर कर न दे धराशायी,
भ्रष्टाचार के विरोधी अन्ना साहेब ने
शराबियों को हंटर से पीटने की आवाज जो लगाई।
आप तो जानते हैं,
लोग उनको बहुत मानते हैं,
उनके दर्शन में भले लगता नहीं दम है,
पर नारों का वजन नहीं कम है,
आपने पीना छोड़ दिया है,
इसलिये अपने को उनकी मुहिम से जोड़ दिया है,
इसलिये आप भी शराब के खिलाफ लिखो,
उनके कट्टर समर्थक की तरह दिखो,
अभी तक आप रहे फ्लाप हो
संभव हिट हो जाओ
करने लगें लोग आपकी बड़ाई।’’

सुनकर चुप रहे पहले
फिर गला खंखारकर बोले
‘‘दूसरों के मसौदे देखकर अपनी राह बदलें
यह आमजन को बहुत भाता है,
अन्ना की बात सुनकर
शराब छोड़ने के नारे बहुत लोग लगायेंगे
पर देखेंगे कौन इस पर चल पाता है,
हम जानते हैं
अन्ना 74 बरस में भी स्वस्थ हैं
क्योंकि अपनी जिंदगी में शराब नहीं पिये,
अमेरिका में उनसे भी बड़ी उम्र के लोग जिंदा हैं
जिन्होंने एक नहीं बहुत सारे पैग लिये,
बहुत बुरी चीज है शराब,
फिर भी लोग पीते साथ में खाते कबाब,

दुनियां का सच है
जिस बुराई को दबाने का प्रयास करो
बढ़ती जायेगी,
पहले फ्लाप हो रही
क्रिकेट खेलकर
अन्ना ने उसमें अपने प्रशंसकों लगाया
अब उनके मुख से निकली बात
शराब भी शायद वैसा ही प्रचार पायेगी,
हम ठहरे गीता साधक
बुराई से नफरत करते,
मगर बुरे आदमी में ज्ञान के सूत्र भरते,
अरे,
परमात्मा नहीं खत्म कर पाया
तामसी प्रवृत्ति के लोगों को,
भला क्या भगायेंगे अन्ना संसार से ऐसे रोगों को,
सारे संसार को ठीक करने का ठेका लेना
आत्ममुग्ध करने वाली चीज है,
समझ लो इस भाव में ही
अज्ञान से उपजे अहंकार के बीज हैं,
इससे तो अपने बाबा रामदेव का दर्शन सही है,
कपाल भाति करे जो शख्स स्वस्थ वही है,
हमारा मानना है कि श्रीमद्भागवत गीता के साथ
पतंजलि योग में भरा है ज्ञान और विज्ञान,
देश भूल गया पर
बाकी विश्व रहा है मान,
फिर कौन अपने को बाज़ार से
कभी चंदा मिला है,
खुद नहीं पीते
मगर नहीं पीने वालों से गिला,
समझें जो लोग
अपनी वाणी से करना
भूल जाते निंदा और बड़ाई
हम जैसे लोगों के लिये नारे लगाना संभव नहीं है
कर सकते हैं आध्यात्मिक चिंत्तन
फिर जहां मौका मिला वहीं हास्य कविता बरसाई।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Sunday, November 13, 2011

डॉलर और रुपया-हिन्दी हास्य कवितायें (dollar aur rupyaa or rupees-hindi hasya kavitaen comedy poem)

वातानुकूलित कक्षों में बैठे लोग
पसीने के भाग्यविधाता हो गये।
जो सोना किसी की भूख नहीं मिटा सकता
उनके लिये बेशकीमती बन गया,
रोटी बनकर जीवन देने वाले
गेहूं के चमकदार दाने
उनकी नज़रों में मिट्टी हैं
कागज के रुपये से पेट भरने वाले
अमेरिकी डॉलर में खो गये।
---------
एक अर्थशास्त्री ने दूसरे से कहा
‘‘यार, रुपये का मूल्य गिर रहा है,
यह चिंता की बात है,
हम स्वदेशी है
इसलिये दिन में भी होती बेचैनी
निद्रा से परे हो गयी हमारी रात है।’’

दूसरे ने कहा
‘‘लगता है कि
तुम्हारा किसी अमेरिकी बैंक में खाता नहीं है,
वहां कभी तुम्हारा कोई रिश्तेदार जाता नहीं है,
वरना यह बात नहीं कहते,
रुपये का भाव गिरने का दर्द नहीं सहते,
भईया,
हम तो केवल रहते यहां है,
अपना मन तो वहां है,
डॉलर का रेट बढ़ता है,
इधर हमारा रुपये का भंडार चढ़ता है,
तुम्हारा स्वदेशी तुम्हें मुबारक है,
हम तो वैश्विक दृष्टि वाले
इंडिया तो अपनी मुट्ठी में है
अमेरिका भी अपने साथ है।’’
---------
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

दौलत और पसीना-हिन्दी कविता (daulat aur paseena-hindi kavita)

विकास के रथ का पहिया तेजी से चल रहा है,
रास्ते के गड्ढों में भ्रष्टाचार का चिराग जल रहा है।
कई लोगों के बुझे थे चेहरे जो अब चमकते दिखते हैं
पत्थर की जगहं अब सोने में उनका घर ढल रहा है।
गरीबी के खौफ से लड़ने के लिये तनी हीरे जड़ी तोपें
क्योंकि बेबसी और बेकद्री से पूरा शहर जल रहा है।
कहें दीपक बापू नक्शे पर भले एक देश, पर टूटे हालात हैं
लूटने वाले हाथों मे दौलत, पसीना तो भूख पर पल रहा है।
-------------
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Wednesday, October 19, 2011

अरविंद केजरीवाल पर फैंकी चप्पल बन गयी फूल-हिन्दी लेख (thrown chappal on arvind kejariwal a activst of anna hazare's andi corrupiton movement)

          भारत एक विशाल देश है और इसमें परिवर्तन एक दिन या वर्ष में नहीं आ सकता। ऐसे में परिवर्तन के दौर में तमाम संघर्ष होते हैं। एक बात दूसरी भी है कि संसार में आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक परिवर्तन प्रकृति का नियम है और भारतीय अध्यात्मिक ज्ञानी इस बात को जानते हैं कि यथास्थितियोंवादी अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसे में परिवर्तन करने वाले तत्वों से उनका विरोध हिंसा की हद तक चल जाता है। भारत में समाजसेवी श्री अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने व्यापक रूप धारण कर लिया है ऐसे में जिन तत्वों के हित प्रभावित हैं वह प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप से उनके विरोधी हैं। अन्ना के व्यक्तित्व में कोई छिद्र नहीं दिखता पर उनके अनेक सहयोगी पेशेवर रूप से समाज सेवा में लगे रहे हैं, इसलिये उनके आर्थिक और राजनीतिक रिश्ते विवादास्पद हैं। यही कारण है कि यथास्थितियों के लिये वह ऐसे आसन लक्ष्य हैं जिससे अन्ना साहब के आंदोलन को कमजोर कर भारतीय जनमानस में उसकी छवि को खराब किया जा सकता है।
          अन्ना के एक   सहयोगी अरविंद केजरीवाल की तरफ जूता फैंकने की घटना एक मामूली बात है पर उसका प्रचार इस बात को दर्शाता है कि कहीं न कहीं गड़बड़ है। वैसे देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल ने कोई ऐसा बयान नहीं दिया है जिससे समग्र देश उत्तेजित हो। जिस तरह उनके एक सहयोगी ने कश्मीर में आत्मनिर्णय का समर्थन कर दिया था इस कारण कुछ युवकों ने उनके साथ मारपीट कर दी थी। उस सहयोगी और अरविंद केजरीवाल पर हमले में बस यही एक समानता है कि प्रचार माध्यमों को दोनों समाचारों पर बहस चलाकर अपने विज्ञापनों के लिये दर्शक जुटाने का अवसर मिल गया।
           यह तो पता नहीं कि अरविंद केजरीवाल पर हमला किसी बड़ी योजना का हिस्सा है या नहीं पर इतना तय है कि अन्ना के जिस सहयोगी पर पहले हमला हुआ था वह एक नियोजित हमला लग रहा था। स्थिति यह है कि लोग उस हमले को भूलकर अब जम्मू कश्मीर पर उनके बयान को लेकर नाराजगी जता रहे हैं। वैसे इस तरह के हमले एकदम बचकाने हैं क्योंकि इससे हमलावर तथा शिकार दोनों को समान प्रचार मिलता है-यह अलग बात है कि हमलावर खलनायक तो शिकार नायक हो जाता है।
          सच बात तो यह है कि हिंसा कभी परिणाममूलक नहीं होती। इतिहास इस बात का गवाह है। इसके बावजूद आज के लोकतांत्रिक समाज में कुछ लोग आत्मप्रचार के लिये हमले करते है तो कुछ लोग अपने ऊपर हुए ऐसे हमलों का आत्मप्रचार के लिये भी करते हैं। श्रीअरविंद केजरीवाल ने अभी तक ऐसा कोई बयान नहीं दिया है जिससे भारतीय जनमानस उद्वेलित हो। यह अलग बात है कि जिन व्यक्तियों या समूहों पर अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से प्रहार करते हैं वह उनसे रुष्ट हो जाता है। हालांकि ऐसे व्यक्ति या समूह प्रतिप्रचार के माध्यम से उनका सामना करने की क्षमता रखते हैं इसलिये उनको ऐसे किसी आक्रमण कराने की आवश्यकता नहीं है पर अगर कुछ सामान्य लोगों को आदत होती है कि वह ऐसी हरकतें कर प्रचार पाना चाहते हैं। जिसने अरविंद केजरीवाल पर जूता या चप्पल फैंकी वह अपने कृत्य के समर्थन में ऐसी कोई बात नहीं कह पाया जिससे लगे कि श्री केजरीवाल के किसी बयान या कृत्य से प्रेरित होकर उसने ऐसा किया। वह तो केवल यही कह रहा था कि केजरीवाल जनता को बरगला रहे हैं। कैसे, यह उसने नहीं बताया। दूसरे उसने आगे यह भी कहा कि वह तो उनकी इज्जत करता है। मतलब निहायत सिरफिरी बात कहकर उसने ऐसी किसी संभावना को समाप्त ही कर दिया कि उसे कोई समर्थन करने वाला मिल जाये। वैसे इस तरह की घटना कोई समर्थन नहीं करता पर जो लोग संवदेनशील विषयों को लेकर सक्रिय रहते हैं वह कभी ऐसी घटनओं को उचित ठहराते नजर आते हैं। इस प्रकरण में ऐसे किसी संभावना को हमलावर ने स्वतः ही समाप्त किया।
         कश्मीर पर विवादास्पद बयान देकर पहले मारपीट का शिकार हो चुके अपने सहयोगी का साथ अन्ना ने एक सीमा तक दिया था पर अरविंद केजरीवाल के साथ बड़ी मजबूती से खड़े नजर आये। अगर सीधी बात कहें तो इस चप्पल फैंकने की घटना ने अरविंद केजरीवाल का कद बड़ा दिया है। अब वह अन्ना की टीम में अन्ना के बाद दूसरे नंबर पर आ गये हैं। उनको तो अन्ना का सेनापति तक कहा जा रहा है। इसके विपरीत कश्मीर पर विवादास्पद बयान देने वाले सहयोगी को तो टीम से बाहर करने की बात तक कही जा रही है। जहां उनके साथ हुई मारपीट ने उनक ाकद गिराया वहीं अरविंद केजरीवाल की पर चप्पल फैंकने की घटना ने लोकप्रियता बढ़ाई। इसका सीधा मतलब यह है कि जनमानस का ख्याल रखकर अपने अभियान चलाने वाले लोगों को समर्थन मिलता है। हमारा मानना है कि अगर किसी मसले पर अन्ना साहब या उनकी टीम से असहमति हो तो उसका तर्क से सामना करना चाहिए। हालांकि इस तरह की घटनाओं को हम फिक्सिंग के तौर से भी देखते हैं पर इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि हमारी बात सौ फीसदी सही है। हम अभी तक अन्ना टीम के आंदोलन के सकारात्मक परिणामों का इंतजार कर रहे हैं। इसकी कोई जल्दी नहीं है पर इतना तय है कि अगर यह आंदोलन कोई परिणाम नहीं दे सका तो भारी निराशा की बात होगी।
              जिन लोगों ने यह हमले किये उनका क्या होगा, यह तो पता नहीं पर इतना तय है कि इनकी वजह से अन्ना हजारे के निवास वाले मंदिर के बाहर मेटर्ल डिटेक्टर  लगा दिये गये हैं उनकी तगड़ी सुरक्षा की जा रही है। तय बात है कि इस पर पैसा खर्च होगा इसका फायदा किसे होगा यह न हमें जानना है न कोई बताये। जब कहीं खतरे का प्रचार होता है तो सुरक्षा उपकरणों की मांग बढ़ती हैं। ऐसे मे लगता है कि सुरक्षा उपकरण बेचने वाले कहीं खतरे का प्रायोजन तो नहीं करते हैं? अन्ना हजारे जी का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन जहां अनेक लोगों के लिये चिंता का विषय हो सकता है वहीं भारतीय जनमानस के लिये अभी जिज्ञासा का विषय है। सच बात तो यह है कि अंततः अन्ना की टीम प्रत्यक्ष रूप से राजनीति की तरफ आयेगी-यह बात हम दूसरी बार कह रहे हैं। यह पता नहीं कि पर्दे के पीछे कौन खेल रहा है, पर लगता है कि भारत में राजनीतिक परिदृश्य बदलने की कोई योजना चल रही है। जिस तरह देश में बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलन चल रहे हैं उससे तो फिलहाल यही लगता है कि आगामी कुछ वर्षों में राजनीतिक परिदृश्य बदल सकता है। इन दोनों की लोकप्रियता इतनी है कि यह प्रत्यक्ष राजनीति में भाग लिये बिना उसे प्रभावित कर कर सकते हैं। ऐसे मे संभव है कि भविष्य में अपने अनुयायियों को प्रत्यक्ष राजनीति में उतार सकते हैं। भारतीय जनमानस उनका कितना साथ देगा यह बात अभी कहना मुश्किल है पर इतना तय है कि तब उनको वर्तमान राजनीतिक समूहों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में अनेक तरह के नाटकीय घटनाक्रम देखने को मिलेंगे। कुछ प्रायोजित तो कुछ फिक्स भी होंगे। शायद इसलिये अन्ना हजारे ने अपने समर्थकों से कहा है कि जब समाज के लिये काम करते हैं तो अपमान झेलने के लिये भी तैयार रहना चाहिए। अन्ना हजारे के सबसे निकटतम होने के कारण शायद अरविंद केजरीवाल भी प्रकाशमान हो गये इसलिये उन पर चप्पल फैंकी गयी पर वह उनको फूल की तरह लगी। उन्होंने हमलावर को माफ कर यह साबित किया कि भविष्य में वह एक बड़े कदावर व्यक्ति बनने वाले हैं। हम जैसे आम लेखक और नागरिक तो अच्छी संभावनाओं के लिये उनकी तरफ दृष्टिपात करते ही है और शायद अब पूरा विश्व उनकी तरफ देखने लगेगा। साथ ही उनको यह भी देखना होगा कि उनको अभी लंबा रास्ता तय करना है और भारतीय जनमानस में अपनी छवि बनाये रखने के लिये उनको हमेशा ही इसी तरह आत्मनिंयत्रित रहना होगा।
---------------
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Sunday, October 2, 2011

भीड़ और लोग-हिन्दी कविताएँ (bheed aur log-hindi kavitaen)

कभी उनके पाँव
तन्हाई की ओर तरफ चले जाते हैं,
मगर फिर भी भीड़ के लोगों के साथ गुजरे पल
उनको वहाँ भी सताते हैं,
कुछ लोग बैचेनी में जीने के
इतने आदी होते कि
अकेले में कमल और गुलाब के फूल भी
मुस्कराहट नहीं दे पाते हैं।
----------
जहां जाती भीड़
कभी लोग वहीं जाते हैं,
दरअसल अपनी सोची राह पर
चलने से सभी घबड़ाते हैं।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

चमत्कार पर दो हास्य कविताएँ (chamatkar par do hasya kavitaen)

पहुंचे लोगों के चमत्कारों से
मुर्दों में जान फूंकने के किस्से
बहुत सुने हैं
पर देखा एक भी नहीं हैं,
जमाने में फरिश्ते की तरह पुज रहे
कई शातिर लोग बरसों से
मगर कोई मुर्दा उनके सच का
सबूत देने आते देखा नहीं है।
अक्ल इंसानों में ज्यादा है
फिर भी फँसता है वहमों के जाल में
जहां देखता है फायदे का दाव
सोचना बंद कर
झूठे ख्वाब सजाता वहीं है।
--------------
एक सिद्ध के दरवाजे कुत्ता खड़ा था
शागिर्द ने उसे पत्थर मारकर भगा दिया।
तब सिद्ध ने उससे कहा
"तुमने अच्छा किया
कुत्ते को हटाकर
क्योंकि कोई भी जानवर
चमत्कारों पर यकीन नहीं करता,
इसलिए फिर ज़िंदा नहीं होता
अगर एक बार मरता,
उनमें अक्ल नहीं होती
जिससे हम उसे बहका सकें,
उसकी आँखों के सामने
पर्दे के पीछे सच को ढँक सकें,
सर्वशक्तिमान भी सोचता होगा
मैंने जानवरों को इंसानों से कमतर क्यों किया,
अक्ल देते समय उनका हिस्सा इंसान को दिया।
------------------
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

आशिकों की भीड़ माशुकाओं का अकाल-कन्या भ्रुण हत्या विषय पर तीन हिन्दी हास्य कविताएँ (ashikon ke bheed mein mashukaon ka akaal-kanya bhrun hatya par teen hasya kavitaen)

आशिक ज्यादा घूम रहे सड़कों पर
माशुकाओं का बढ़ता जा रहा है अकाल
शहरों में कोहराम मचा है।
कन्या भ्रुण हत्याओं के नतीजे
अब यूं सामने आने लगे
कार वाले कर रहे इश्क की सवारी
आसमान में उम्मीद के लिये ताक रहा
वह आशिक जो खाली बचा है।
--------------
चार आशिक एक माशुका के पीछे
घूमते नजर आते हैं,
किसके प्रेम पत्र का जवाब देगी
इस इंतजार में बरसों इंतजार करते हैं
-----
एक जवान लड़की घर से निकलेगी
कितने लड़के पीछे लग जायेंगे
पता नहीं,
कन्या भ्रुण हत्याओं के चलते
ऐसे दृश्य नज़र आयेंगे
जवान उम्र की इसमें कोई खता नहीं
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

पत्थर का ज़मीर-हिन्दी शायरियां (pattha ka zamir-hindi shayariyan)

तुम ताक रहे हो उनके घर
अपनी उम्मीद अपने हाथ में फैलाये
जिनका पेट लूट के सामानों से
कभी भरता नहीं है,
पत्थर का ज़मीर पाले हैं वह लोग
जो कभी पैदा न हुआ
इसलिये मरता भी नहीं है।
----------
फुर्सत नहीं है उनके पास
लूट के सामान घर में भरने से,
इश्तहार जरूर देते हैं
अपनी बहादुरी के कारनामों से
मगर पल पल दिल में डरते हैं
अपने मरने से।
-----------
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Wednesday, August 24, 2011

जिसको मिली साहबी-भ्रष्टाचार पर दो हिन्दी क्षणिकाएँ (sahab aur gulam-two short poem-bhrashtachar or corruption

गोश्त बनता है जिनके रसोईघर में
टेबल पर बैठकर उसे चबते हुए
वही भूखों को रोटी दिलाने के
दावे किया करते हैं,
यकीन करो
भूख से पैदा होने वाले दर्द को वह नहीं जानते
शब्दों की चालाकी से अपने बयानों में
भले हमदर्दी भरते हैं।
-----------------
भूख से तड़पता
भ्रष्टाचार से भड़कता
अपराध से सहमता
आम आदमी कोई औकात नहीं रखता
उससे देश कहीं ज्यादा बड़ा है,
इसलिए जिसको मिली साहबी
अपनी कुर्सी पर बैठकर इतराता है
लगता है देश को बचाने के नाम पर
अपनी औकात बचाने के लिए अड़ा है।
-----------------
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Sunday, August 14, 2011

हुकुमत और दौलत-हिन्दी शायरी (hukumat aur daulat-hindi shayari)

वह लोग क्या जंग लड़ेंगे
इंसानों की आजादी की
जो अपनी आदतों के गुलाम हैं,
कौम का परचम
आकाश में क्या वह फहरायेंगे
उधार की सोच को करते जो सलाम हैं।
दर्द को रोते हुए बेचते
इश्क से हंसते हुए कमाते
वतन की हिफाजत सौदागर क्या करेंगे
बाज़ार में जज़्बातों का करते सौदा जो सरेआम हैं।
करते हैं वही तय
कब जंग हो ज़माने में,
अमन से कितनी मदद होगी कमाने में,
मोहब्बत पर नहीं होते फिदा
दुनियां की हर हुकुमत उनकी
दौलत की गुलाम है।
----------
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Saturday, August 6, 2011

दिल के हाल-हिन्दी शायरी (dil ke halat-hindi shayari)

कभी रोकर
कभी चीखकर
हमने क्या पाया,
जिंदगी के सफर में
हर मोड़ पर मुस्कराये तो
तकलीफों में अपने को
हंसता पाया।
------
हालतों का क्या
कभी अच्छी कभी बुरी होती हैं,
रोज ज़माना देखता है
हमारे चेहरे की तस्वीर
जो कभी हंसती कभी रोती है।
क्यों करे जंग हंसाई
अपने दिल के हाल बाहर दिखाकर
जिनकी उम्र कभी बड़ी नहीं होती है।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

मालिक का खिताब-हिन्दी शायरी (malik ka khitab-hindi shayari)

ज़िंदगी का फलसफा अभी तक कोई समझा नहीं
मगर कामयाबी के तरीके हर कोई बता रहा है।
खामोशी हर मर्ज की दवा है,मगर मुश्किल है
अपने बेकार बयानों से हर कोई हमें सता रहा है।
दुनिया की दौलत की पीछे दौड़ रहा आदमी
खुद को जमाने का पहरेदार जाता रहा है।
कहें दीपक बापू कब्जे की ज़मीन और चुराये पौधे
इंसान अपने लिए मालिक का खिताब लगा रहा है।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Sunday, July 24, 2011

हमारी लाचारी-हिन्दी क्षणिका (hamari lachari-hindi short poem)

वह बम फटाखे की तरह
और बंदूक फुलझड़ी जैसे जलाएँ,
हम श्रद्धांजलि के लिए मोमबती जलाकर
सहानुभूति के रोते हुए गीत गायें।
इस जहाँ में खून खराबे के
सौदागरों के बाज़ार भी सजाते हैं,
उनके कारिंदे भी अमन के चमन में
फूलों की तरह सजते हैं,
हालात ऐसे हैं कि
हम इधर रह नहीं सकते
लाचारी हैं कि उधर जाएँ।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Saturday, July 23, 2011

समय की बलिहारी-हिन्दी व्यंग्य कविता (samay ki balihari-hindi vyangya kavita)

दौलत को सलाम है,
हुकूमत के आगे ही झुका हर इंसान
चाहे खास है या आम है,
क्या करे कमजोर हाथ
जहां ताकत से होता काम है।
कहें दीपक बापू
जिनको लग गयी है
दौलत, ताकत और शौहरत की आग,
फिर जाता है उनका दिमाग
हों जाती है उनकी जमाने से दूरी,
हँसे देखकर दूसरे की बेबसी और मजबूरी,
दूसरे की बेचैनी में ढूंढते हैं चैन,
नींद नहीं पाते उनके भी नैन,
उछलें चाहे जितना
मिल जाता है एक दिन मिट्टी में उनका भी नाम।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

ईमानदारी का दीपक-हास्य कविताएँ (imandari ka deepak-hasya kavitaen)

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन
देश में चल रहा है,
फिर भी यहाँ हर कोई
अपनों को छल रहा है।
नारों और वादों पर चलने का आदी है समाज
आकाश में देखता है फरिश्ते,
ज़मीन पर भुला रहा है रिश्ते,
खड़ा है वही चौराहे पर
रखकर अपनी दौलत अंधेरी तिजोरी में
हाथ में उसके
ईमानदारी का दीपक जल रहा है।
------------
एक ईमानदार ने बेईमान से कहा
"तुम थकते नहीं हो
करते हों हमेशा भ्रष्टाचार,
सारे देश में शोर मचा है
पर तुम्हें खौफ नहीं है
जारी है तुम्हारा काला व्यापार।'
बेईमान ने कहा
"तुम समझते नहीं हों
इसलिए अपने घर में ही जमते नहीं हों,
अगर ऊपरी कमाए न करें तो
कहीं के न रह जाएँ,
बाहर लोग मक्कार समझें
घर में नकारा कहलाएं,
आज हर जगह वही आदमी ऊंचाई पर है
जिसकी तिजोरी भरी है,
करे जो चोरी और सीना जोरी
उसकी कही बात ही खरी है,
तुम तो ठस ठहरे
बस इतना समझो कि
यहाँ पर सब चलता है यार,
चाहे जितना चले आंदोलन
नहीं बदलेगा
हमारे काम का शिष्टाचार ।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

समय का सैलाब और उम्मीद-हिन्दी कविता (samay ka sailab-hindi kaivita or poem)

रौशनी में जीने के आदी
अंधेरे के भय से रोज डरेंगे,
सांस लेते हैं जो वातानुकूलित कक्षों में
दुश्मनों नहीं लड़ सकते जंग
इसलिये वह दोस्ती का दम ही भरेंगे।
गिरी नहीं जिनके शरीर से
एक बूंद पसीने की
वह मेहनतकश की कद्र नहीं कर सकते
मगर उसकी भूख से अपनी तिजोरी भरेंगे।
कहें दीपक बापू
लोगों के भले की बात सुनते सुनते
कान पक गये हैं,,
हम टूटे हैं
फिर भी नहीं रास्ता कोई
इसलिये उम्मीद ही करेंगे,
ज़माने के तख्त पर सजे बबूल
समय सैलाब में कभी तो बह जायेंगे
तब चमन में फूल भी सजेंगे।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Wednesday, July 13, 2011

शब्द पत्रिका ने पार की दो लाख पाठक/पाठ पठन संख्या-हिन्दी आलेख (shabd patrika ki sankhya do laklh ke paar-hindi aalekh)

            इस लेखक का एक अन्य ब्लाग ‘शब्द पत्रिका’ ने आज दो लाख पाठक/पाठपठन संख्या पार कर ली। यह संख्या पार करने वाला यह चौथा ब्लाग है। संयोगवश यह वर्डप्रेस का ही ब्लाग है। अपने आप में यह आश्चर्यजनक स्वयं को ही लगता है कि मजा तो ब्लॉगर के ब्लाग पर आता है पर पाठकों की संख्या की दृष्टि से सफलता वर्डप्रेस के ब्लाग पर ही मिलती है। ब्लॉगर के 13 ब्लाग मिलकर पूरे दिन में जितने पाठक जुटाते हैं उतने तो वर्डप्रेस का ब्लाग ‘हिन्दी पत्रिका’ ही जुटा लेता है। वर्डप्रेस के आठ मिलकर ब्लॉगर के 13 ब्लॉग से चार गुना से पांच तक पाठक अधिक जुटा लेते हैं।
           यह लेखक ब्लॉगर पर लिखे पाठ ही वर्डप्रेस के ब्लाग पर रखता है पर इसका मतलब यह कतई नहीं है कि उनमें टालने वाली कोई बात है। वहां टैब अधिक लगाने का अवसर मिलता है और शायद यही कारण है कि वहां पाठक अधिक मिल जाते हैं।
           इधर डर लगने लगा है कि कहीं ब्लॉगर के ब्लॉग कूड़ा होने की तरफ तो नहीं बढ़ रहे। वजह, यह है कि ब्लॉगर के ब्लॉगों से हिन्दी लिखने की सुविधा खत्म हो गयी है। कुछ ही दिन पहले ब्लॉगर पर अधिक लेबल लिखने की सुविधा मिली थी। उस समय लगा कि शायद ब्लॉगर अब वर्डप्रेस की बराबर करेगा पर यह सुविधा महीने भर भी नहीं चली। इधर अखबारों में पढ़ने को मिला था कि गूगल अब फेसबुक का मुकाबला करने के लिये गूगल प्लस लॉंच करने वाला है। साथ ही यह भी पता लगा कि ई-ब्लागर से उसका नाता टूटने वाला है या टूट चुका है। इधर अनुभव से एक बात पता लगी है कि ब्लॉगर पर जितने भी हिन्दी के अनुकूल जो सुविधा थी वह शायद भारत में सक्रिय गूगल से जुड़े लोगों के प्रयासों का ही परिणाम था। अब यह कहना कठिन है क ई-ब्लॉगर और ब्लागर अलग अलग है या एक, पर जिस तरह ब्लॉगर से हिन्दी की सुविधायें गयी हैं उससे लगता है कि गूगल उससे विरक्त हो गया है।
               अभी तक हमने गूगल प्लस को देखने का प्रयास किया पर कुछ समझ में नहीं आ रहा। फेसबुक को देख लिया और उस पर काम करना बेकार लगता है। एक विशुद्ध लेखक का मन फेसबुक से भर नहीं सकता क्योंकि वहां उसकी रचना भीड़ का हिस्सा हो जाती हैं। ब्लॉग एक किताब की तरह बन जाता है। यही कारण है कि रचनाधर्मियों को वह बहुत भाता। कहना मुश्किल है कि गूगल के विशेषज्ञों का क्या सोच है पर अगर वह ब्लॉग से विरक्त होते हैं तो मानना पड़ेगा कि वह फेसबुक और ट्विटर जैसे संकीर्ण संदेश साधन संवाहक स्त्रोतों को प्रश्रय देना चाहते हैं। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि ट्विटर और फेसबुक जैसे साधन रचना धर्मियों के साधना स्थल नहीं हो सकते पर उनकी संख्या उन प्रयोक्ताओं के मुकाबले नगण्य हैं जो फेसबुक और ट्विटर में व्यापर छद्म व्यवहार को सत्य समझकर खुश हो जाते हैं। निजीकरण के चलते यह संभव नहीं है कि कंपनियों से आशा की जाये कि वह उदारतापूर्वक रचनाधर्मियों को समर्थन दें।
        ऐसे में वर्डप्रेस के ब्लॉग की आवश्यकता निरंतर बनी रहेगी। फिर भी मानना पड़ेगा कि गूगल ने इंटरनेट पर हिन्दी को याहु से कहीं अच्छा समर्थन दिया पर लगता नहीं है कि वह आगे अधिक सहायक होगा। अक्सर गूगल के ब्लॉगर पर मोबाइल से जुड़ने के प्रस्ताव आते हैं पर हमारे लिये वह सब बेकार है। गूगल मोबाइल धारकों को लक्ष्य कर रहा है पर एक लेखक के लिये मोबाइल तब बेकार होता है जब वह ब्लाग पर सक्रिय होता है। मोबाइल धारक अपने देश में बहुत हैं और गूगल उनमें पैठ बनाने की कर रहा है हालांकि ऐसा कम ही दिखता है कि मोबाइल धारकों की रुचि उस समय इंटरनेट पर होती हो जब वह उस पर बात करना चाहते हैं। फिर हम जैसे ब्लाग लेखक के लिये छोटे अक्षरों में ब्लाग देखने की इच्छा करना ही संभव है। स्थिति यह है कि कभी किसी को एसएमएस भेजने की इच्छा भी नहीं होती। जो भेजते हैं तो उनसे कह देते हैं कि हमें संदेश भेजना ही है तो ईमेल पर भी भेजो।
           मोबाईल के मुकाबले कंप्यूटर पर इंटरनेट का उपयोग देश की नयी पीढ़ी के लिये हम अल्पज्ञान ही मानते हैं। वैसे भी हमारे देश में अल्पज्ञान पाते ही उछलने लगता है। यही कारण है कि लोग मोबाइल हाथ में पकड़ कर इस तरह धूमते हैं जैसे कि अलीबाबा का खजाना मिल गया है। मोबाइल पर संदेश वगैरह भेजना हमारी नज़र में कंप्युटर के अभ्यास से रहित होना है।
             एक बालक ने हमसे कहा कि ‘अंकल, हमने आपको कंप्युटर पर मैसेज भेजा था आपने जवाब नहीं दिया।’
          हमने कहा-‘‘एक तो हम किसी का मैसेज पढ़ते ही नहीं है क्योंकि उसमें फालतु मैसेज बहुत होते हैं। दूसरे हमसे मैसेज भले ही एक लाईन के हों पर टाईप नहीं हो सकते।’
          बालक ने कहा-‘‘आप सीख लो न! हालांकि अब आपको उम्र के कारण थोड़ी दिक्कत आयेगी।’’
हमने ऊपर से नीचे तक उसे देखा और कहा-‘‘ठीक है प्रयास करेंगे पर तुंम अगर इंटरनेट पर सक्रिय हो तो ईमेल भेज सकते हो।’
          वह हैरानी से हमें देखने लगा और बोला-‘‘इंटरनेट पर कभी कभी बैठता हूं। मेरा ईमेल खाता भी है पर उसमें टाईप करना नहीं आयेगा।’’
        हमने कहा-‘‘हां यह बात तो सही है, हम तुम्हें अब टाईप सीखने के लिये तो नहीं कह सकते क्योंकि वह तुम्हारी उम्र भी निकल चुकी है। अलबत्ता हम एसएमएस लिखना ही सीख लेंगे।’’
लड़के लड़कियों के मुख से फेसबुक, ट्विटर और ऑरकुट की बातें अक्सर हम सुनते हैं। उनके बहुत सारे दोस्त हैं यह भी वह बताते हैं। उनके अनुभव में कितना भ्रम और कितना सत्य है यह अनुमान करना कठिन है पर ब्लॉग लेखन में अपनी सक्रियता से सीखे ज्ञान के कारण उन पर हंसी आती है।
        शब्द पत्रिका का दो लाख पाठक/पाठन संख्या पार करने पर बस इतना ही कहना चाहते हैं कि अभी बहुत कुछ और देखना बाकी है तो लिखना भी बाकी है। हम यहां ऐसे लेखक हैं जो अपना लिखा दूसरों को पढ़ाने के लिये बल्कि पाठकों को पढ़ने के लिये तत्पर रहता है। हमारे पाठ कितने लोग पढ़ते हैं यह पता है पर पाठक नहीं जानते हम उनको कितना पढ़ रहे हैं। हमारे शब्द हमें बता देते हैं कि कौन कैसे पढ़ रहा है। धन्यवाद
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Saturday, July 2, 2011

भाग्य का तोहफा-हिन्दी कविता (bhagya ka tohfa-hindi kavita)

जिम्मेदारी वह सारे समाज की यू ही नहीं उठाते,
मिलता कमीशन, खरीदकर घर का सामान जुटाते।
बह रही  दौलत की नदियां, उनके घर की ओर,
दरियादिल दिखने के लिये, वह कुछ बूंदें भी लुटाते।
न कहीं शिकायत होती, न करता कोई फरियाद
भाग्य का तोहफा समझ सभी अपने हिस्से उठाते।
लग चुकी है ज़ंग लोगों के सोचने के औजारों में
तयशुदा लड़ाई है, खड़े यूं ही हाथ में तलवार घुमाते।


कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Monday, June 27, 2011

ख्वाब बिखरने का अंदेशा था-हिन्दी शायरी (khwab bikharne ka andesha tha-hindi shayari)

जहां कद्र नहीं थी हमारी
वहां अपना बसाया आशियाना
हमने क्यों बसाया,
बेकद्रों के लिये बेकार बहाया पसीना,
मगर फिर भी उन्होंने बेरुखी दिखाई
आसरा देने का अहसान भी जताया।
------------
मालुम था भरोसा टूट जायेगा
फिर भी किया,
ख्वाब बिखरने का अंदेशा था
फिर भी उसे जिया,
धरती पर बहती जिंदगी की
यह नदिया
कितनी गहरी है यह किसने समझा
कभी हम डूबे
कभी तैरे
देखने की ख्वाहिश थी
इसलिये घाट घाट का पानी पिया।
----------
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Saturday, June 25, 2011

चालचलन की खोट को बड़प्पन की ओट-हिन्दी हास्य व्यंग्य कवितायें (chalchalan ko badppan ki ot-hindi hasya vyangya kavitaen)

बड़ों बड़ों की चाल चलन में
खोट हो गयी है,
फिर भी छिप जाते हैं
उनको बड़प्पन की ओट हो गयी है।
कहें दीपक बापू
धीरे धीरे होते जा रहे हैं
इस हमाम में बड़े बड़े नंगे,
भूखे पेटों से होंगे
उनके साथ भी कभी पंगे,
ज़माना बेजार है,
ईमानदारी से कमाना लगता बेकार है,
नंगों की यह शिकायत
गूंजती रहेगी नक्कारखाने में
कि उनकी लंगोट बहुत महंगी हो गयी है।’’
-------------
जिस सीढ़ी पर चढेंगे तख्त पर
उतरना न पड़े
इस डर से उसे गिरा देंगे,
सभी जानते हैं।
फिर भी पता नहीं
अपने कंधों पर कहार की तरह
लोग बड़ों का बोझ क्यों उठाये जाते हैं,
जब तक लात न पड़े
उनको देवता मानते हैं।
----------
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

फरिश्तों की पहरेदारी में शैतान-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (farisheon ki paharedari mein shaitan)

फरिश्ते मशगूल हो गये है
जी-हुजूरी कराने में
इसलिये लोग जान बचाने के लिये
शैतानों को सलाम बजाते है।
कौन बजाये बड़ी दरबार का दरवाजा
बाहर खड़े दलालों से ही
कमीशन पर काम हो जाते हैं।
दुनियां के दस्तूर बदल गये हैं
फरिश्तों का वजूद बचाने के लिये भी
शैतान उनके महल पर पहरेदार बन जाते हैं।
------------
कौन बिना कसूर के जिंदा है यहां
किसकी शिकायत करे कौन,
अच्छे बुरे की पहचान पर
वैसे भी सभी हो गयी अक्ल मौन,
फरिश्तों की दलाली में
लग गये हैं शैतान
उनसे लड़ेगा कौन।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Sunday, June 19, 2011

भ्रम बिकता है सच के दाम पर-हिन्दी व्यंग्य कवितायें(bhram bikta hai sach ke dam-hindi vyangya kavitaen)

धन, सोना, चांदी और
हीरे जवाहरात आदमी के साथ
मरने पर नहीं जाते हैं,
पर फिर भी आम आदमी ही नहीं
संत भी कहां लालच से बच पाते हैं।
माया को झूठा झूठा कहते हैं ताउम्र
मरने पर उनके कमरों में
संपदा के भंडार भक्तों की
आंखों को छकाते हैं,
सत्य को जानने के दावे
करने वालों के चेहरे और चरित्र
माया के खेल में चमक पाते हैं।
--------

धर्म प्रचार बिना माया के
भला कौन कर पाता है,
पैसा ही भगवान जिनका
ज्ञान भी उनका ही बिक जाता है।
चमत्कार करो
या बताओ स्वर्ग जाने का रास्ता
भ्रम बिकता है उस सच के दाम पर
जो न दिखता है
न मिलता है
न बिकने आता है।
-----------
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Tuesday, June 14, 2011

बात हमेशा होती है लाजवाब-हिन्दी साहित्यक कविताएँ (baat hamesha hotee hai lajawab-hindi literature poem)

चेतन है
पर जड़ जैसे दिखते हैं,
कलम उनके हाथ में
पर दूसरे के शब्द लिखते हैं।
चमकदार नाम वही चारों तरफ
पर उनके चेहरे बाज़ार में
दाम लेकर बिकते हैं।
---------------
एक सवाल उठाता है
दूसरा देता है जवाब।
बहसें बिक रही है
विज्ञापन के सहारे
चेहरे पहले से तय हैं,
जुबान से निकले
और कागज़ में लिखे शब्द भी
पहले से तय हैं,
निष्कर्ष कोई नहीं
पर बात हमेशा होती है लाजवाब
----------------

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Sunday, May 29, 2011

चमड़ी और सोच-हिन्दी शायरियां

वह कभी विकास विकास
तो कभी शांति शांति का नारा लगाते हैं।
कौन समझाये उनको
बैलगाड़ी युग में लौटकर ही
शांति के साथ हम जी पायेंगे,
वरना कार के धूऐं से
अपनी सांसों के साथ इंसान भी उड जायेंगे,
दिखाते हैं क्रिकेट और फिल्मों के
नायकों के सपने,
जैसे भूल जाये ज़माना दर्द अपने,
नैतिकता का देते उपदेश
लोगों को
पैसे की अंधी दौड़ में भागने के लिये
भौंपू बजाकर उकसाते हैं।
-----------------
हर इंसान में
इंसानियात होना जरूरी नहीं होती है,
चमड़ी भले एक जैसी हो
मगर सोच एक होना जरूरी नहीं होती है।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Saturday, May 28, 2011

आंदोलन चालु आहे-हिन्दी लघु हास्य व्यंग्य (andolan chalu aahe-hindu laghu hasya vyangya)

    आंदोलक पुरुष बहुत दिन से खाली बैठे थे। कोई उनको घास नहीं डाल रहा था। ऐसे में वह बाज़ार के सौदागरों के सरदार के पास पहुंच गये। उससे बोले-‘महोदय, आप तो अब काले तथा सफेद दोनों धंधों से खूब कमा रहे हैं। बहुत दिन से आपने मेरी सामाजिक संस्था को न तो चंदा दिया है न काम दिया है। अब मैं खाली बैठा हूं! आप मेरे बारे में कुछ सोचिये।’’
      बाज़ार के सरदार ने कहा-‘‘आप अब गये गुजरे ज़माने का चीज हो गये हैं। जितना आपको आंदोलन का धंधा और चंदा देना था दे दिया। अब आप उसी के ब्याज पर खाईये।’
      आंदोलक पुरुष ने कहा कि ‘‘अब तक तो ठीक था। बुढ़ा गया हूं। बीमारी के इलाज का खर्चा कम पड़ता है अगर आप चंदा या धंधा नहीं देंगे तो फिर आपके खिलाफ प्रत्यक्ष आंदोलन छेड़ दूंगा। वैसे ही डाक्टर ने रोटी कम खाने को कहा है इसलिये भूख हड़ताल पर बैठ जाऊंगा।’’
     बाज़ार के सरदार उनका मजाक उड़ाते हुए कहा-‘अगर आप मर गये तो आपकी अर्थी बड़े जोरदार ढंग से सजा देंगे। यह हमारा वादा रहा।’
     आंदोलक पुरुष उठकर खड़ा हो गया और बोला-‘ठीक है, चलता हूं फिर अगर कोई बात हो तो मेरे पीछे समाज सेवा के अपने दलाल समझौते के लिये मत भेजना।’
     सरदार घबड़ा गया उसने उनसे थोड़ी देर बाहर बैठने को कहा और अपने सचिव को बुलाकर उससे बात की। वह बोला-‘साहब, आप इनको भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाने को कहिये।
     सरदार ने कहा-‘‘क्या बात करते हो? इससे तो हमारे मातहत समाज सेवक परेशान हो जायेंगे।’
सचिव ने कहा-‘अगर देश में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन नहंी चलवायेंगे तो आपके विदेशी आका नाराज हो जायेंगे। सारी दुनियां में भ्रष्टाचार और अनाचार पर हलचल मची हुई है पर अपना देश खामोश है। ऐसा लगता है कि मुर्दा कौमें यहां रहती है। आखिर शक्तिशाली और चेतन समाज से ही उसके शिखर पुरुष की इज्जत अन्यत्र बनती है। अगर अपने देश में ऐसा नहीं हुआ तो विदेश में आपकी इज्जत कम हो जायेगी।’
      सरदार ने कहा-‘मगर यह आदमी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलायेगा तो सारी भीड़ उसके पास चली जायेगी और यह हमारे लिये खतरनाक हो सकता है।’
     सचिव ने कहा-‘आप चिंता मत करिये। इसके पीछे और साथ रहने वाले करीबी लोग अपने ही प्रायोजित और पेशेवर आंदोलनकारी होंगे। उनको चाहे जो आंदोलन हो हम उसमें ठांस देते हैं। वह अच्छा प्रबंध कर लेंगे। आंदोलन चलेगा, रैलियां होंगी पर चलेगा सब कुछ वैसा ही जैसा हम चाहते हैं। वैसे भी आजकल अपने प्रचारक भौंपूओं के पास सैक्स, फिल्म, योग, रोग, ज्योतिष तथा कामेडी के बासी कार्यक्रम रह गये हैं। यह भ्रष्टाचार विरोधी आदोलन नया है सो वह इसमें अपने विज्ञापन चलाकर खूब कमायेंगे। उसमें भी अपने ही बाज़ार की कंपनियों के नये उत्पाद और सेवायें प्रसिद्ध होंगी।’
     बाज़ार के सौदागर ने कहा-‘ठीक है, तुम उसे समझाओ वरना वह भूख हड़ताल पर बैठ जायेगा।’
सचिव ने कहा-‘वह तो उसे दो दिन तक बैठने के लिये कहना ही है। तभी तो बासी कड़ी में उबाल आयेगा। उसने बहुत दिन से कोई आंदोलन नहीं किया इसलिये उसका नाम बासी हो गया है। भूख हड़ताल से उसके आंदोलन को अच्छा प्रचार मिलेगा।’
     सौदागर ने आंदोलक पुरुष को बुलाया और कहा-‘हमारे सचिव से आप बात कर लेना। आप तो आंदोलन चलाईये। बाकी सब हम देख लेंगे। हमारे लोग ही आपके साथ होंगे। आप भाषण करेंगे तो आपकी तरफ से बहस वही लोग बहस करेंगे। यह सचिव उनसे आपको मिला देगा।’
     आंदोलक पुरुष ने कहा-‘इसकी जरूरत नहीं है। मुझे किसी को नहीं जानना। बस मेरा धंधा चलने के साथ ही चंदा आने का सिलसिला जारी रहना चाहिए।’
    सरदार ने कहा-‘आप उनसे मिल तो लीजिये। जब आंदोलन चलायेंगे तो उस पर कुछ लोग नाराज होंगे। हमारे लोगों पर भी कुछ छोटे मोटे आरोप हैं जिनकी चर्चा आपके विरोधी करेंगे। तब उनका जवाब तो आपको ही देना पड़ेगा।’
    इस पर आंदोलक पुरुष ने कहा-‘कह दूंगा कि मै तो उनको जानता ही नहीं वह तो मेरे आंदोलन में आये हैं और पिछले इतिहास में कुछ भी किया होगा पर अब उनका हृदय परिवर्तन हो गया है।’
बाजार का सरदार खुश हो गया और अब आंदोलन चालु आहे।’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

इस लेखक के समस्त ब्लॉग यहाँ एक जगह प्रस्तुत हैं

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका

दीपक भारतदीप का चिंतन