विकास के रथ का पहिया तेजी से चल रहा है,
रास्ते के गड्ढों में भ्रष्टाचार का चिराग जल रहा है।
कई लोगों के बुझे थे चेहरे जो अब चमकते दिखते हैं
पत्थर की जगहं अब सोने में उनका घर ढल रहा है।
गरीबी के खौफ से लड़ने के लिये तनी हीरे जड़ी तोपें
क्योंकि बेबसी और बेकद्री से पूरा शहर जल रहा है।
कहें दीपक बापू नक्शे पर भले एक देश, पर टूटे हालात हैं
लूटने वाले हाथों मे दौलत, पसीना तो भूख पर पल रहा है।
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रास्ते के गड्ढों में भ्रष्टाचार का चिराग जल रहा है।
कई लोगों के बुझे थे चेहरे जो अब चमकते दिखते हैं
पत्थर की जगहं अब सोने में उनका घर ढल रहा है।
गरीबी के खौफ से लड़ने के लिये तनी हीरे जड़ी तोपें
क्योंकि बेबसी और बेकद्री से पूरा शहर जल रहा है।
कहें दीपक बापू नक्शे पर भले एक देश, पर टूटे हालात हैं
लूटने वाले हाथों मे दौलत, पसीना तो भूख पर पल रहा है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
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