Tuesday, February 24, 2015

नारे लगाने वाले नायक-हिन्दी कविता(nare lagane wale nayak-hindi poem)



आधुनिक युग में भी
गरीब की रक्षा का व्यापार
जमकर चलता है।

सभ्रांत वर्ग के मानस में
नारे लगाने वाला
नायक की तरह ढलता है।

कहें दीपक बापू प्रकृति से
न धरती बदली न इंसान
शनैः शनै आदतों में
परिवर्तन आते हैं,
यह अलग बात है
समाज सेवा के पेशेवर
श्रेय ले जाते हैं,
लेकर चंदा ज़माने से
उनके घर का चिराग जलता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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Thursday, February 12, 2015

सपनों का ताजमहल-हिन्दी कविता(sapnon ka tazmahal-hindi poem)



राजपद पर विराजमान पांव
जनपद कुचले जाने की परवाह
कभी नहीं करते।

उड़ता है जिनका दिमाग
सातवे आसमान पर
अपने ही व्यक्तित्व पर
रहते हमेशा फिदा
छोटे इंसान के दर्द पर
आह कभी नहीं भरते।

कहें दीपक बापू सपने में
बना लेते लोग ताजमहल
जब खुली आंखों के सामने
खड़ा होता कड़वा सच
तब वह जिंदगी जीने के लिये
पत्थरों के घर से
बड़ी चाह कभी नहीं करते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Wednesday, February 4, 2015

रोटी के वादे पका नहीं करते-हिन्दी कविता(roti ke vade paka nahin karte-hindi poem)


न पास ईंधन है
न चूल्हा
न ही आग
रोटी के वादे
कभी पका नहीं करते।

मस्तिष्क में किसी का भला
करने का विचार नहीं होता
फिर भी सपने बेचने वाले
कभी थका नहीं करते।

कहें दीपक बापू विश्वास पर
कोई खरा उतरता
कोई धोखे में डूब जाता है
कर जाते है गैर भी भला
जिनकी नीयत साफ होती
वह वफा करते
खाली शब्द बका नहीं करते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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