Wednesday, October 28, 2015

पाप पुण्य के रूप-हिन्दी व्यंग्य कविता(Paap Punya ke Roop-Hindi Satire poem)

प्रचलन में परिवर्तन से
पहनावे के रूप भी
बदल जाते हैं।

नयी तकनीकी के दौर में
आधुनिक ठग सभ्य रूप
बदल आते हैं।

कहें दीपकबापू मेहनत से
जब जी चुराना
आराम की पहचान बने
पाप पुण्य के रूप भी
बदल जाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Saturday, October 17, 2015

मुद्रा द्रव्य-हिन्दी कविता(Money as A liquad Dream-HindiKavita)

पेट की भूख
मिटाने वाली रोटी का
कोई रूप नहीं है।

मन में लगी आग
बुझाकर ठंडा करे
पानी का कोई कूप नहीं है।

कहें दीपकबापू बुद्धि से
बैर रखने वालों पर
तरस आता है
मुद्रा द्रव्य में डूबे
उनके सपनो को सुखा सके
ऐसी  कोई धूप नहीं है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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Wednesday, October 7, 2015

दीपकबापूवाणी (DeepakBapuWani Sum Hindi Dohe)


सिंहासन के लिये चलती जंग, अमन कराना तो बहाना है।
दीपकबापूरखें पुजने का ख्याल, सेवा से मेवा कमाना है।।
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भक्ति से बड़ी  भूख है, मुफ्त खाने वाले नहीं समझेंगे।
दीपकबापू आराम से रहते, पसीने को पानी ही समझेंगे।।
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लाशों का झुंड शहर में, विज्ञापन दिलाने वाली मशहूर है।
दीपकबापू जिंदगी समझे, क्या पता मरने में भी शऊर है।।
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दंगे की प्रतीक्षा में खड़े, खून होते ही विज्ञापन चलायेंगे।
दीपकबापू बहस में मस्त, अक्लमंद कीमती आंसु बहायेंगे।।
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हृदय का भाव नापते नहीं, भय से धर्म सभी निभा रहे हैं।
दीपकबापूमंत्र जापते नहीं, धनतंत्र की भक्ति सिखा रहे हैं।
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रात के अंधेरे में लगाते आग, दिन में बुझाने का बजाते राग।
दीपकबापूभलाई के ठेकेदार, इंसान क्या छोड़ेंगे खायें नाग।।
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पांच तत्वों से बना संसार, संजोग होते जीवों के मेल।
दीपकबापूतमाशा न करना, पल में बने बिगड़े यहां खेल।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Thursday, October 1, 2015

रंगबिरंगी दुनियां-हिन्दी कविता(Rangbirangi Duniya-HindiKavita

अपनी नज़रिये से ही
देखोगे सभी को
दायरों में सिमट जाओगे।

बिन सोचे खेलोगे
अपनी जिंदगी से
खेल में पिट जाओगो।

कहें दीपकबापू रंगबिरंगी दुनियां है
अपने ही रंग पर
अगर हमेशा इतराये
हर रंग में मिट जाओगे।
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दीपक राज कुकरेजा भारतदीप
ग्वालियर मध्यप्रदेश
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