Wednesday, October 19, 2011

अरविंद केजरीवाल पर फैंकी चप्पल बन गयी फूल-हिन्दी लेख (thrown chappal on arvind kejariwal a activst of anna hazare's andi corrupiton movement)

          भारत एक विशाल देश है और इसमें परिवर्तन एक दिन या वर्ष में नहीं आ सकता। ऐसे में परिवर्तन के दौर में तमाम संघर्ष होते हैं। एक बात दूसरी भी है कि संसार में आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक परिवर्तन प्रकृति का नियम है और भारतीय अध्यात्मिक ज्ञानी इस बात को जानते हैं कि यथास्थितियोंवादी अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसे में परिवर्तन करने वाले तत्वों से उनका विरोध हिंसा की हद तक चल जाता है। भारत में समाजसेवी श्री अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने व्यापक रूप धारण कर लिया है ऐसे में जिन तत्वों के हित प्रभावित हैं वह प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप से उनके विरोधी हैं। अन्ना के व्यक्तित्व में कोई छिद्र नहीं दिखता पर उनके अनेक सहयोगी पेशेवर रूप से समाज सेवा में लगे रहे हैं, इसलिये उनके आर्थिक और राजनीतिक रिश्ते विवादास्पद हैं। यही कारण है कि यथास्थितियों के लिये वह ऐसे आसन लक्ष्य हैं जिससे अन्ना साहब के आंदोलन को कमजोर कर भारतीय जनमानस में उसकी छवि को खराब किया जा सकता है।
          अन्ना के एक   सहयोगी अरविंद केजरीवाल की तरफ जूता फैंकने की घटना एक मामूली बात है पर उसका प्रचार इस बात को दर्शाता है कि कहीं न कहीं गड़बड़ है। वैसे देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल ने कोई ऐसा बयान नहीं दिया है जिससे समग्र देश उत्तेजित हो। जिस तरह उनके एक सहयोगी ने कश्मीर में आत्मनिर्णय का समर्थन कर दिया था इस कारण कुछ युवकों ने उनके साथ मारपीट कर दी थी। उस सहयोगी और अरविंद केजरीवाल पर हमले में बस यही एक समानता है कि प्रचार माध्यमों को दोनों समाचारों पर बहस चलाकर अपने विज्ञापनों के लिये दर्शक जुटाने का अवसर मिल गया।
           यह तो पता नहीं कि अरविंद केजरीवाल पर हमला किसी बड़ी योजना का हिस्सा है या नहीं पर इतना तय है कि अन्ना के जिस सहयोगी पर पहले हमला हुआ था वह एक नियोजित हमला लग रहा था। स्थिति यह है कि लोग उस हमले को भूलकर अब जम्मू कश्मीर पर उनके बयान को लेकर नाराजगी जता रहे हैं। वैसे इस तरह के हमले एकदम बचकाने हैं क्योंकि इससे हमलावर तथा शिकार दोनों को समान प्रचार मिलता है-यह अलग बात है कि हमलावर खलनायक तो शिकार नायक हो जाता है।
          सच बात तो यह है कि हिंसा कभी परिणाममूलक नहीं होती। इतिहास इस बात का गवाह है। इसके बावजूद आज के लोकतांत्रिक समाज में कुछ लोग आत्मप्रचार के लिये हमले करते है तो कुछ लोग अपने ऊपर हुए ऐसे हमलों का आत्मप्रचार के लिये भी करते हैं। श्रीअरविंद केजरीवाल ने अभी तक ऐसा कोई बयान नहीं दिया है जिससे भारतीय जनमानस उद्वेलित हो। यह अलग बात है कि जिन व्यक्तियों या समूहों पर अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से प्रहार करते हैं वह उनसे रुष्ट हो जाता है। हालांकि ऐसे व्यक्ति या समूह प्रतिप्रचार के माध्यम से उनका सामना करने की क्षमता रखते हैं इसलिये उनको ऐसे किसी आक्रमण कराने की आवश्यकता नहीं है पर अगर कुछ सामान्य लोगों को आदत होती है कि वह ऐसी हरकतें कर प्रचार पाना चाहते हैं। जिसने अरविंद केजरीवाल पर जूता या चप्पल फैंकी वह अपने कृत्य के समर्थन में ऐसी कोई बात नहीं कह पाया जिससे लगे कि श्री केजरीवाल के किसी बयान या कृत्य से प्रेरित होकर उसने ऐसा किया। वह तो केवल यही कह रहा था कि केजरीवाल जनता को बरगला रहे हैं। कैसे, यह उसने नहीं बताया। दूसरे उसने आगे यह भी कहा कि वह तो उनकी इज्जत करता है। मतलब निहायत सिरफिरी बात कहकर उसने ऐसी किसी संभावना को समाप्त ही कर दिया कि उसे कोई समर्थन करने वाला मिल जाये। वैसे इस तरह की घटना कोई समर्थन नहीं करता पर जो लोग संवदेनशील विषयों को लेकर सक्रिय रहते हैं वह कभी ऐसी घटनओं को उचित ठहराते नजर आते हैं। इस प्रकरण में ऐसे किसी संभावना को हमलावर ने स्वतः ही समाप्त किया।
         कश्मीर पर विवादास्पद बयान देकर पहले मारपीट का शिकार हो चुके अपने सहयोगी का साथ अन्ना ने एक सीमा तक दिया था पर अरविंद केजरीवाल के साथ बड़ी मजबूती से खड़े नजर आये। अगर सीधी बात कहें तो इस चप्पल फैंकने की घटना ने अरविंद केजरीवाल का कद बड़ा दिया है। अब वह अन्ना की टीम में अन्ना के बाद दूसरे नंबर पर आ गये हैं। उनको तो अन्ना का सेनापति तक कहा जा रहा है। इसके विपरीत कश्मीर पर विवादास्पद बयान देने वाले सहयोगी को तो टीम से बाहर करने की बात तक कही जा रही है। जहां उनके साथ हुई मारपीट ने उनक ाकद गिराया वहीं अरविंद केजरीवाल की पर चप्पल फैंकने की घटना ने लोकप्रियता बढ़ाई। इसका सीधा मतलब यह है कि जनमानस का ख्याल रखकर अपने अभियान चलाने वाले लोगों को समर्थन मिलता है। हमारा मानना है कि अगर किसी मसले पर अन्ना साहब या उनकी टीम से असहमति हो तो उसका तर्क से सामना करना चाहिए। हालांकि इस तरह की घटनाओं को हम फिक्सिंग के तौर से भी देखते हैं पर इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि हमारी बात सौ फीसदी सही है। हम अभी तक अन्ना टीम के आंदोलन के सकारात्मक परिणामों का इंतजार कर रहे हैं। इसकी कोई जल्दी नहीं है पर इतना तय है कि अगर यह आंदोलन कोई परिणाम नहीं दे सका तो भारी निराशा की बात होगी।
              जिन लोगों ने यह हमले किये उनका क्या होगा, यह तो पता नहीं पर इतना तय है कि इनकी वजह से अन्ना हजारे के निवास वाले मंदिर के बाहर मेटर्ल डिटेक्टर  लगा दिये गये हैं उनकी तगड़ी सुरक्षा की जा रही है। तय बात है कि इस पर पैसा खर्च होगा इसका फायदा किसे होगा यह न हमें जानना है न कोई बताये। जब कहीं खतरे का प्रचार होता है तो सुरक्षा उपकरणों की मांग बढ़ती हैं। ऐसे मे लगता है कि सुरक्षा उपकरण बेचने वाले कहीं खतरे का प्रायोजन तो नहीं करते हैं? अन्ना हजारे जी का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन जहां अनेक लोगों के लिये चिंता का विषय हो सकता है वहीं भारतीय जनमानस के लिये अभी जिज्ञासा का विषय है। सच बात तो यह है कि अंततः अन्ना की टीम प्रत्यक्ष रूप से राजनीति की तरफ आयेगी-यह बात हम दूसरी बार कह रहे हैं। यह पता नहीं कि पर्दे के पीछे कौन खेल रहा है, पर लगता है कि भारत में राजनीतिक परिदृश्य बदलने की कोई योजना चल रही है। जिस तरह देश में बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलन चल रहे हैं उससे तो फिलहाल यही लगता है कि आगामी कुछ वर्षों में राजनीतिक परिदृश्य बदल सकता है। इन दोनों की लोकप्रियता इतनी है कि यह प्रत्यक्ष राजनीति में भाग लिये बिना उसे प्रभावित कर कर सकते हैं। ऐसे मे संभव है कि भविष्य में अपने अनुयायियों को प्रत्यक्ष राजनीति में उतार सकते हैं। भारतीय जनमानस उनका कितना साथ देगा यह बात अभी कहना मुश्किल है पर इतना तय है कि तब उनको वर्तमान राजनीतिक समूहों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में अनेक तरह के नाटकीय घटनाक्रम देखने को मिलेंगे। कुछ प्रायोजित तो कुछ फिक्स भी होंगे। शायद इसलिये अन्ना हजारे ने अपने समर्थकों से कहा है कि जब समाज के लिये काम करते हैं तो अपमान झेलने के लिये भी तैयार रहना चाहिए। अन्ना हजारे के सबसे निकटतम होने के कारण शायद अरविंद केजरीवाल भी प्रकाशमान हो गये इसलिये उन पर चप्पल फैंकी गयी पर वह उनको फूल की तरह लगी। उन्होंने हमलावर को माफ कर यह साबित किया कि भविष्य में वह एक बड़े कदावर व्यक्ति बनने वाले हैं। हम जैसे आम लेखक और नागरिक तो अच्छी संभावनाओं के लिये उनकी तरफ दृष्टिपात करते ही है और शायद अब पूरा विश्व उनकी तरफ देखने लगेगा। साथ ही उनको यह भी देखना होगा कि उनको अभी लंबा रास्ता तय करना है और भारतीय जनमानस में अपनी छवि बनाये रखने के लिये उनको हमेशा ही इसी तरह आत्मनिंयत्रित रहना होगा।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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Sunday, October 2, 2011

भीड़ और लोग-हिन्दी कविताएँ (bheed aur log-hindi kavitaen)

कभी उनके पाँव
तन्हाई की ओर तरफ चले जाते हैं,
मगर फिर भी भीड़ के लोगों के साथ गुजरे पल
उनको वहाँ भी सताते हैं,
कुछ लोग बैचेनी में जीने के
इतने आदी होते कि
अकेले में कमल और गुलाब के फूल भी
मुस्कराहट नहीं दे पाते हैं।
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जहां जाती भीड़
कभी लोग वहीं जाते हैं,
दरअसल अपनी सोची राह पर
चलने से सभी घबड़ाते हैं।
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चमत्कार पर दो हास्य कविताएँ (chamatkar par do hasya kavitaen)

पहुंचे लोगों के चमत्कारों से
मुर्दों में जान फूंकने के किस्से
बहुत सुने हैं
पर देखा एक भी नहीं हैं,
जमाने में फरिश्ते की तरह पुज रहे
कई शातिर लोग बरसों से
मगर कोई मुर्दा उनके सच का
सबूत देने आते देखा नहीं है।
अक्ल इंसानों में ज्यादा है
फिर भी फँसता है वहमों के जाल में
जहां देखता है फायदे का दाव
सोचना बंद कर
झूठे ख्वाब सजाता वहीं है।
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एक सिद्ध के दरवाजे कुत्ता खड़ा था
शागिर्द ने उसे पत्थर मारकर भगा दिया।
तब सिद्ध ने उससे कहा
"तुमने अच्छा किया
कुत्ते को हटाकर
क्योंकि कोई भी जानवर
चमत्कारों पर यकीन नहीं करता,
इसलिए फिर ज़िंदा नहीं होता
अगर एक बार मरता,
उनमें अक्ल नहीं होती
जिससे हम उसे बहका सकें,
उसकी आँखों के सामने
पर्दे के पीछे सच को ढँक सकें,
सर्वशक्तिमान भी सोचता होगा
मैंने जानवरों को इंसानों से कमतर क्यों किया,
अक्ल देते समय उनका हिस्सा इंसान को दिया।
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आशिकों की भीड़ माशुकाओं का अकाल-कन्या भ्रुण हत्या विषय पर तीन हिन्दी हास्य कविताएँ (ashikon ke bheed mein mashukaon ka akaal-kanya bhrun hatya par teen hasya kavitaen)

आशिक ज्यादा घूम रहे सड़कों पर
माशुकाओं का बढ़ता जा रहा है अकाल
शहरों में कोहराम मचा है।
कन्या भ्रुण हत्याओं के नतीजे
अब यूं सामने आने लगे
कार वाले कर रहे इश्क की सवारी
आसमान में उम्मीद के लिये ताक रहा
वह आशिक जो खाली बचा है।
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चार आशिक एक माशुका के पीछे
घूमते नजर आते हैं,
किसके प्रेम पत्र का जवाब देगी
इस इंतजार में बरसों इंतजार करते हैं
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एक जवान लड़की घर से निकलेगी
कितने लड़के पीछे लग जायेंगे
पता नहीं,
कन्या भ्रुण हत्याओं के चलते
ऐसे दृश्य नज़र आयेंगे
जवान उम्र की इसमें कोई खता नहीं
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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पत्थर का ज़मीर-हिन्दी शायरियां (pattha ka zamir-hindi shayariyan)

तुम ताक रहे हो उनके घर
अपनी उम्मीद अपने हाथ में फैलाये
जिनका पेट लूट के सामानों से
कभी भरता नहीं है,
पत्थर का ज़मीर पाले हैं वह लोग
जो कभी पैदा न हुआ
इसलिये मरता भी नहीं है।
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फुर्सत नहीं है उनके पास
लूट के सामान घर में भरने से,
इश्तहार जरूर देते हैं
अपनी बहादुरी के कारनामों से
मगर पल पल दिल में डरते हैं
अपने मरने से।
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