Saturday, January 16, 2016

संवेदनाओं के पंख-हिन्दी कविता(Sanwednaon ke pankh-HindiKavita)

 पुराने परिचित
छोटी मुलाकातों से
अजनबी जैसे लगते हैं।

पुरानी स्मृतियां
ताजा करना चाहे मन
भुलाने वाले
डराने लगते हैं।

कहें दीपकबापू दिल से
जिंदगी बढ़ती जाती आगे
विकास में कभी संवेदनाओं के
पंख नहीं लगते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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