Tuesday, May 20, 2014

अच्छे दिन आने का मतलब-हिन्दी हास्य कविता(achche din aane ka matalab-hindi comedy poem's)



प्रबंधक ने महिला लिपिक से कहा
‘‘अपना मुरझाया चेहरा चमका लो
मुख्यालय ने तुम्हारा वेतन बढ़ा दिया है,
अब तो तुम करना जमकर खरीददारी
मैंने तुम्हारी वेतनवृद्धि को भी रजिस्टर में चढ़ा दिया है,
संभव है मेरा यहां से स्थानांतरण भी हो जाये
तय बात है तुम्हारे अच्छे दिन आने वाले हैं।’’
सुनकर खुश हो गयी लिपिक और चहकते हुए बोली-‘‘
आपके आदेशों का पालन करते हुए मैं तंग आ गयी,
पता नहीं चला चेहरे पर कब मुर्दानगी छा गयी,
वेतनवृद्धि पर जश्न मनाने की परवाह नहीं है
आपका स्थानांतरण होने की खबर थोड़ी अच्छी लगी
जब आयेगी तक मान लूंगी
मेरे अच्छे दिन आने वाले हैं।’’
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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Monday, May 12, 2014

आशिकों का कातिल बन जाना-तीन हिन्दी क्षणिकायें(ashikon ka quatil ban jana-short hindi poem's)



आशिकों के कातिल बन जाने की खबर रोज आती है,
टीवी पर विज्ञापनों के बीच सनसनी छा जाती है।
कहें दीपक बापू दिल कांच की तरह टूट कर नहीं बिखरते
अब भड़ास अब गोली की तरह चलकर आग बरसाती है।
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आशिक नाकाम होने पर अब मायूस गीत नहीं गाते है,
कहीं गोली दागते कहीं जाकर चाकू चलाते हैं।
कहें दीपक बापू इश्कबाज हो गये इंकलाबी
नाकाम आशिक कलम छोड़कर  हथियार चलाते हैं।
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आशिकों ने प्रेमपत्र लिखने के लिये कलम उठाना छोड़ दिया है,
एक हाथ का मोबाइल दूसरे का चाकू से नाता जोड़ दिया है,
कहें दीपक बापू इश्क पर क्या कविता और कहानी लिखें,
टीवी पर चलती खबरों ने उसे सनसनी की तरफ मोड़ दिया है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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Monday, May 5, 2014

बेबसी में इंसान गद्दार हो जाता है-हिन्दी कवितायें(bebasi mein insan gaddar ho jaata hai-hindi kavitaen)



जिंदगी में आते हैं ऐसे भी मौके

 जब दिल की बात कहना चाहते  पर कह नहीं पाते,

खामोशी में ताकत बहुत पर उसका साथ भी ज्यादा सह नहीं पाते।

कहें दीपक बापू हालत जब मुश्किल हों

होठों में बुदबुदा लेते हैं

जब सामने खड़ा दृश्य देखने की चाहत नहीं होती

चाहें तो आंखें भी बंद नहीं कर पाते।

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खूबसूरत रास्तों पर चलते हुए

तंग गलियों से भी सामना हो जाता है,

हमेशा सूघते हुए फूलों की खुशबू

नाक का सामना बदबू से भी हो जाता है।

कहें दीपक बापू इंसान हमेशा सहज नहीं होता 

अपना भरोसा नहीं निभाता

बेबसी में वह गद्दार भी हो जाता है।

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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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