Monday, April 21, 2014

कृत्रिम क्रोध-हिन्दी व्यंग्य कविताऐं(kratrim krodh-hindi vyangya kavitaen)



मतलब नहीं समझते वह बोलने की आजादी का,
सभी लगे हैं कीर्तिमान बनाने में शब्दों की बर्बादी का।
कहें दीपक बापू शिक्षित विद्वान समाजों में एकता की
 कोशिश करने का जताते दावा,
बहुत जल्दी दिख जाता है उनका छलावा,
जब दौलत के बंटवारे में अपना हिस्सा मांगते
सामने चेहरा रखते अपने समाज की आबादी का।
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पहले अपने इलाके के लोगों को समाजो में बांटते हैं,
फिर झंगड़ा करने वालों को अपनी महान छवि
बनाने के लिये कृत्रिम क्रोध में  जमकर डांटते हैं।
कहें दीपक बापू भद्र लोग उनके लिये भीड़ की भेड़ हैं
अपने एकता अभियान के लिये वह दबंगों को छांटते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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Sunday, April 13, 2014

प्रश्न पूछने की इजाजत देते-हिन्दी व्यंग्य कविता(prashna uoochhne ki izajat-hindi satire poem)



पहले वह उत्तर सोचते हैं
फिर प्रश्न पूछने की इजाजत देते हैं,
कभी किसी विषय पर आता है उत्तर दिमाग में
तब सवाल पूछने वाले की तलाश कर लेते हैं।
कहें दीपक बापू प्रायोजन का ज़माना है,
मर्मरहित होकर धर्म कर्म से सभी को कमाना है,
खेल में हार और प्रचार में छवि पर मार से
सभी इंसान डरते हैं,
पैसा देकर हर सच्चे दृश्य भी
पहले लिखकर तय करते हैं,
अपने अंदाज के बयान और अदाओं की शान के लिये
अक्ल कभी उधार कभी नकदी में पेशेवरों से लेते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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Monday, April 7, 2014

बुद्धि विलास-हिन्दी व्यंग्य क्षणिकाएँ (buddhi vilas-two short hindi poem)



वह  कटु शब्दों के तेजी से चलाते तीर हैं,

आत्मविज्ञापन में दावा करते  कि हम वीर हैं।

कहें दीपक बापू चाल उनकी टेढ़ी है

अपनी पाखंडी अदाओं से ही खाते वह खीर हैं।

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एक विषय पर चलती बहस दूसरी तरफ चली जाती है,

इधर उधर बहती कुतर्क की धारा

आगे बंद निष्कर्ष की गली आती है।

कहें दीपक बापू आत्म चिंत्तन करना सबसे अच्छा उपाय है

बाहर से आये विषयों पर बुद्धि विलास सुबह से शुरु करते

कोई विचार नहीं बनता रात ढल जाती है

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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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