Sunday, May 31, 2015

मेगी परंपरागत भोजन नहीं बन सकता-हिन्दी चिंत्तन लेख(megi is not alteranetive eat-hindi thoughta article)


       अब मेगी को खाने के लिये खतरनाक बताया जा रहा है। हैरानी की बात है कि यह बात बहुत समय बाद तब सामने आयी है जब यह युवा पीढ़ी के जीवन का हिस्सा बन चुकी है। युवा पीढ़ी ही क्या पुरानी पीढ़ी भी इसका उपयोग अपनी सुविधा के लिये कर रही है। शादी विवाह में मैगी को एक पकवान की तरह परोसा जाता है। एक तरह से मेगी ने खान पान में नये फैशन की तरह जगह बनाई है। हमारा सवाल तो यह है कि मान लीजिये कि मेगी में खतरनाक तत्व नहीं भी है तो क्या उसका उपयोग घरेलू भोजन के विकल्प में रूप में अपनाना चाहिये?
आज के दौर में भोजन केवल स्वाद के लिये अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। जिस भोज्य पदाथों से देह में रक्त तथा शक्ति का निर्माण होता है उन्हें जीभ के स्वाद की वजह से ही कम उपयोग किया जाने लगा है। लौकी, तुरिया और करेला का उपयोग मधुमेह का रोग होने पर ही करने का विचार आता है। सबसे बड़ी बात कि मेगी तथा बेकरी मे अनेक दिनों से बने पदार्थों के उपयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है।
     हमने तो यह सब स्थितियां बताई हैं जो वर्तमान समय में परंपरागत  भोजन के विकल्प के रूप में खतरनाब पदार्थों का चयन हो रहा है। हमारा तो यह कहना है कि  अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार भोजन के अनुसार ही व्यक्ति की बाह्य श्रेणी भी निर्धारित होती है। भोजन केवल पेट भरने के लिये नहीं होता वरन् उदरस्थ पदार्थ मनुष्य की मानसिकता पर भी प्रभाव डालते हैं। बासी भोजन तामस प्रवृत्ति का परिचायक है। इसे हम यह भी कह सकते हैं कि बासी पदार्थों को खाने वालों में तामसी प्रवृत्ति आ ही जाती है और वह आलस तथा प्रमाद की तरफ आकर्षित होते हैं।
हर जीव के लिये भोजन अनिवार्य है। यह अलग बात है कि पशु, पक्षी, तथा अन्य जीवों की अपेक्षा मनुष्य के पास भोज्य पदार्थ के अधिक विकल्प रहे हैं पर इस सुविधा का उपयोग करने की कला उसे नहीं आयी। हमारे अध्यात्मिक दर्शन में सात्विक भोजन करने का संदेश दिया जाता है क्योंकि कहीं न कहीं मनुष्य की बाह्य सक्रियता आंतरिक विचार से प्रभावित होती है। इसलिये भोज्य पदार्थों का चयन करते समय पेट भरने की बजाय हम जीवन में किस तरह की प्रवृत्ति के साथ सक्रिय रहें इस पर विचार करना चाहिये।
खाने पर बहस-हिंदी कविता
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मांस खायें या मिश्री मावा

इस पर प्रचारवीर
अभियान चला रहे हैं।

महंगाई में दोनों ही महंगे

मिलावट के दौर में
शुद्धता लापता 
फिर भी शोर मचाकर लोगों के
कान जला रहे हैं।

कहें दीपक बापू भरे पेट वाले

नहीं करते बात
सड़क पानी और बिजली की
समाज की ऊर्जा 
भोजन पकाने की बजाय
बहस में गला रहे हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Monday, May 25, 2015

यकीन करें या उपेक्षा-हिन्दी कविता(yakin karen ya upeksha-hindi poem)


निरर्थक विषय पर
बोलें या मौन रहें
कई बार भ्रम हो जाता है।

इंसानों के वादे पर
यकीन करें या उपेक्षा
सोच का क्रम खो जाता है।

कहें दीपक बापू घरती पर
फरिश्ते पैदा होते नहीं
आकाश से टपकना भी मुश्किल
इंसान के बने अंतरिक्ष यानों के बीच
मार्ग ढूंढते ढूंढते ही
उनका पूरा श्रम हो जाता है।
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Tuesday, May 19, 2015

नीयत का कालापन-हिन्दी कविता(neeyat ka kalapan-hindi poem)


जिस्म और दिल के
ज़ख्म पूछने यूं ही
लोग नहीं आते हैं।

जख्मी का हाल देखकर
होती उनको तसल्ली
ऐसे हादसे उनके
सामने नहीं आते हैं।

कहें दीपक बापू  अपने जज़्बात
छिपाने की कितनी भी
करें चालाक लोग
हमदर्दी के हर लफ्ज़ में
अपनी नीयत के कालेपन से
खुद को तो बंधा ही पाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Monday, May 11, 2015

आम आदमी और नये शक्तिमान-हिन्दी कविता(aam aadmi aur naye shaktiman-hindi kavita,new superman-hindi poem)

ऊंचाई पर पहुंच जाते
चालाकियों के सहारे से
फिर नीचे गिरने से डरते हैं।

नीचे खड़ा इंसान
सिर न उठाये
इसलिये सीना ताने रहते
पीछे से कोई धकिया न दे
इस भय में भी
पल पल मरते हैं।

कहें दीपक बापू आम आदमी से
खुश रहो सबकी भलाई का
जिम्मा लिये बिना जिंदगी बिताते हो,
चुनाव के समय भाग्यविधाताओं में
अपना नाम गिनाते हो,
यह अलग बात है जिनकों
बना देते हो शक्तिमान
वह अपना ही घर भरते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Tuesday, May 5, 2015

मजबूरी बढ़ेगी जितनी वफादारी घटती जायेगी-हिन्दी कविता(mazboori badhegi jitni vafadari ghatti jayegi-hindi poem)


महंगाई तो यूं ही
बढ़ती जायेगी।

भावनायें होंगी सस्ती
हृदय में संवेदनशीलता
घटती जायेगी।

कहें दीपक बापू भरे पेट से
सर्वशक्तिमान की हो
या देश की
भक्ति सहजता से होती है,
रोटी की तलाश में नाकामी
अपने से ही विश्वास खोती है,
मजबूरी बढ़ेगी जितनी
इंसानों में वफादारी उतनी ही
घटती जायेगी।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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