Friday, April 29, 2016

इंसान बंदर है-हिन्दी कविता(Insan Bandar Hai-Hindi Poem)

चाहत है तैरने की
घर से बहुत दूर
बह रहा समंदर।

दिल में सपनों के
पानी का  खाली घड़ा
तड़प रहा अंदर।

कहें दीपकबापू मन के खेल में
फंसा इंसान
बेचैनी पालकर
ढूंढता अमन
चाल से लगे एक बंदर।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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Monday, April 18, 2016

संगीनों का साया-हिन्दी कविता(Sanginon ka Saya-HindiKavita)


बारातों के जश्न पर
संगीनों का साया है।

घर की गोली से
अपने ज्यादा मरते
आंकड़ों ने बताया है।

कहें दीपकबापू सोच से
हथियार का वास्ता
कभी नहीं रहता
पानी जैसा मन
आग की बात कहता
बने निशाना वह मौन हुए
चलाने वाला पछताया है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Friday, April 8, 2016

चरित्र व्यक्तित्व-हिन्दी कविता (Charitra Vyaktitva-Hindi Poem)

चरित्र पर दाग
व्यक्तित्व की छवि 
तबाह कर देते हैं।

पीते नहीं शराब
जिंदगी में इतनी
अपनों के मन में 
जितनी आह भर देते हैं।

कहें दीपकबापू डूबतों से
बचने के लिये तिनका
मिलना आसान नहीं
मजबूत इरादे हों तो
पार लगने की
चाह भर देते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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