Friday, February 19, 2016

आसन और वायुयान-हिन्दी कविता (Asan aur Vayuyan-Hindi Kavita)

रंगीन पर्दे पर चेहरा
धवल पत्र पर नाम
देखने की चाहत
अल्पबुद्धि इंसान को भी
विद्वान बना देती है।

अंगरक्षको का पहरा
ताकत से रिश्ता गहरा
कमतर इंसान को
काली नीयत भी
महान बना देती है।

कहें दीपकबापू आओ लगायें
अपना योग दरबार
साधना जमीन के आसन को भी
वायुयान बना देती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
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Tuesday, February 2, 2016

श्रृंगार रस विरह का घाव-हिन्दी कविता(Shrigar Ras Virah ka Bhave-Hindi Kavita)

भद्र शब्द से अधिक
अभद्र शब्द का
समझते अधिक प्रभाव।

सरल वाणी से कम
नादान मानते
कर्णकटु शब्द का अधिक भाव।

कहें दीपकबापू भाषा पर
कर रहे अनुसंधान
लगा रहे रचना का पान
श्रृंगार रस के साथ
लगाते विरह का भी घाव।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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