रौशनी में जीने के आदी
अंधेरे के भय से रोज डरेंगे,
सांस लेते हैं जो वातानुकूलित कक्षों में
दुश्मनों नहीं लड़ सकते जंग
इसलिये वह दोस्ती का दम ही भरेंगे।
गिरी नहीं जिनके शरीर से
एक बूंद पसीने की
वह मेहनतकश की कद्र नहीं कर सकते
मगर उसकी भूख से अपनी तिजोरी भरेंगे।
कहें दीपक बापू
लोगों के भले की बात सुनते सुनते
कान पक गये हैं,,
हम टूटे हैं
फिर भी नहीं रास्ता कोई
इसलिये उम्मीद ही करेंगे,
ज़माने के तख्त पर सजे बबूल
समय सैलाब में कभी तो बह जायेंगे
तब चमन में फूल भी सजेंगे।
अंधेरे के भय से रोज डरेंगे,
सांस लेते हैं जो वातानुकूलित कक्षों में
दुश्मनों नहीं लड़ सकते जंग
इसलिये वह दोस्ती का दम ही भरेंगे।
गिरी नहीं जिनके शरीर से
एक बूंद पसीने की
वह मेहनतकश की कद्र नहीं कर सकते
मगर उसकी भूख से अपनी तिजोरी भरेंगे।
कहें दीपक बापू
लोगों के भले की बात सुनते सुनते
कान पक गये हैं,,
हम टूटे हैं
फिर भी नहीं रास्ता कोई
इसलिये उम्मीद ही करेंगे,
ज़माने के तख्त पर सजे बबूल
समय सैलाब में कभी तो बह जायेंगे
तब चमन में फूल भी सजेंगे।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
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