Sunday, August 29, 2010

हिन्दी भाषा के अंग्रेजीकरण की कोशिश निरर्थक-हिन्दी लेख (hindi bhasha aur devnagari lipi-hindi lekh)

अंतर्जाल पर लिखने में कोई संकट नहीं है जितना कि लोगों की कमेंट पढ़ने में लगती है। जो लोग अपनी टिप्पणियों में वाह वाह या बढ़िया लिख जाते हैं धन्य हैं, और जो थोड़ा विस्तार से लिखे गये पाठ के संदर्भ में नयी बातें लिख जाते हैं वह तो माननीय ही हैं शर्त यह है कि उनकी लिपि देवनागरी होना चाहिए। अगर कहीं रोमन लिपि में हुआ तो भारी तकलीफदेह हो जाता है और काफी देर तक तो यही संशय रहता है कि कहीं वह टिप्पणीकर्ता मजाक तो नहीं उड़ा रहा।
हम बात करें उन लोगों की जो रोमन लिपि में हिन्दी लिखना और पढ़ना चाहते हैं। अपना विचार तो यह है कि रोमन लिपि में हिन्दी लिखने से तो अच्छा है कि सीधे अंग्रेजी में लिखो। इधर सुन रहे हैं कि कुछ विद्वान आधिकारिक रूप से हिन्दी को रोमन लिपि में बांधने के लिये तैयार हो चुके हैं।
अरे, रुको यार पहले हमारी सुनो।
हम तो कह रहे हैं कि नहीं तुम तो बिल्कुल अंग्रेजी को भारत में लादने के लिये कमर कसे रहो। इस पर हमारा पूरा समर्थन है। इधर हम अपने ब्लाग पर हिन्दी में लिखते जायेंगे उधर तुम्हें भी अंग्रेजी के लिये समर्थन देते रहेंगे। कम से कम रोमन लिपि में हिन्दी लिखकर हमारे लिये टैंशन यानि तनाव मत पैदा करो।
होता यह है कि कुछ लोग हमारे लिखने से नाराज होते हैं। अगर वह अंग्रेजी में नकारात्मक टिप्पणी लिखते हैं तो उसे पढ़कर अफसोस नहीं होता।
लिख देते हैं ‘bed poem, you are a bed writer वगैरह वगैरह। हम उनको उड़ा देते हैं। कोई चिंता नहीं! अंग्रेजी में ही हो तो है। किसी ने हिन्दी तो नहीं लिखा। यह तसल्ली इसी तरह की है कि किसी दूसरे शहर में पिटकर आया आदमी अपनी ताकत का बयान अपने शहर में करता है।
अंग्रेजी नहीं आती पर पढ़ लेते है। कोई बात समझ में नहीं आये तो डिक्शनरी की मदद लेते हैं। एक बार एक शब्द आया था जो कविता के बुरे होने की तरफ इशारा कर रहा था। शब्द देखकर लगा कि कम से कम यह अच्छी बात तो नहीं कह रहा। फिर डिक्शनरी की मदद ली। बाद में उस टिप्पणी को हटा दिया। हिन्दी में होती तो सोचते। इससे कुछ लोगों को गलत फहमी हो गयी कि इस लेखक को अंग्रेजी नहीं आती तो अब कभी कभार रोमन लिपि में हिन्दी लिखकर अपनी नकारात्मक राय रखते हैं। यह तकलीफ देह होता है। रखते तो वह भी नहीं है पर पढ़ने में भारी तकलीफ होती है।
अगर कोई लिख देता है कि bakwas तो पढ़ने में क्रष्ट जरूर होता है पर समझने में नहींपर अगर कोई लिखता है bed तो वह तत्काल समझ में आ जाता है उसको भी धन्यवाद देते हैं कि पढ़ने में तकलीफ नहीं हुई। चलो इनसे तो निपट लेते ही हैं पर कुछ लोग पाठों की प्रशंसा में ऐसी टिप्पणियां लिखते हैं जो वाकई उस उसकी चमक बढ़ाते हैं और कहना चाहिये कि पाठ से अधिक प्रशंसनीय तो उनकी टिप्पणी होती है मगर दुःख यह कि वह रोमन लिपि में होती हैं। उनका हटाना पाप जैसा लगता है पर एक बात निश्चित यह है कि हिन्दी का पाठक जब उस पाठ को पढ़ते हुए जब टिप्पणियां पढ़ना चाहेगा तो वह उसे रोमन लिपि में देखकर अपना विचार त्याग देगा और टिप्पणीकर्ता अन्याय का स्वयं ही शिकार होगा।
जिन लोगों को हिन्दी से परहेज है वह उसमें लिखा हुआ लिपि रोमन हो या देवनागरी में कतई नहीं पढ़ेगा क्योंकि उसकी नाराजगी भाषा से है न कि लिपि से। वैसे तो देवनागरी में हिन्दी लिखना इंटरनेट पर कठिन था पर टूलों की उपलब्धता ने उसे समाप्त कर दिया है। अब तो जीमेल पर ही हिन्दी में लिखकर अपना संदेश कट पेस्ट कर कहीं भी रखा जा सकता है। इसलिये आम पाठकों को भी ऐसी शिकायत नहीं करना चाहिये क्योंकि इंटरनेट पर पढ़े लिखे लोग ही सक्रिय हो पाते हैं।
भाषा का संबंध हृदय के भाव से तो लिपि का संबंध मस्तिष्क से होता है। जो लोग रोमन लिपि में हिन्दी लिखना चाहते हैं उनकी निराशाओं को समझ सकते। बहुत प्रयास के बावजूद हिन्दी आम भारतीय की भाषा है। यह अलग बात है कि हिन्दी बाज़ार अंग्रेजीदांओं के कब्जे में है। दरअसल मोबाइल पर एसएमएस लिखवाने के लिये यह बाज़ार विशेषज्ञ अपने प्रायोजित विद्वानों को सक्रिय किये हुए हैं जो रोमन लिपि को यह स्थाई रखना चाहते हैं। उनको लगता है कि बस, रोमन लिपि में यहां का आम आदमी अपना एसएमएस कर अपने हाथ बर्बाद करे। याद रहे कि अधिक एसएमएस करने से लोगों के हाथ बीमार होने की बात भी सामने आ रही है। यह एसएमएस की प्रथा नयी है इसलिये अभी चल रही है और एक दिन लोग इससे बोर हो जायेंगे तब यह रोमन का भूत भी उतर जायेगा। वैसे अनेक लोग यह भी कोशिश कर रहे हैं कि रोमन लिपि से ही ऐसे संदेश हों।
आखिरी बात यह है कि इंटरनेट ने सभी को दिग्भ्रमित कर दिया है। अभी तक देश के आर्थिक, सामाजिक, तथा अन्य प्रतिष्ठित क्षेत्रों में जिन समूहों या गुटों का कब्जा रहा है वह अब आम आदमी पर नियंत्रण खोते जा रहे हैं। अगर भाषा की बात करें तो आज़ादी के बाद हिन्दी में जो लिखा गया है लोग उस पर असंतोष जता रहे हैं। फिल्में पिट रही हैं, अखबार भी अधिक महत्व के नहीं रहे, टीवी चैनल तो आपस में ही लड़ रहे हैं। पहले उनकी सामग्री की चर्चा लोगों के बीच में होती है पर अब बहुतायत के कारण कोई किसी से जुड़ा है तो कोई किसी से।
आम आदमी को भेड़ की तरह चलाने के आदी कुछ लोग इंटरनेट पर सक्रिय लोगों को आज़ाद देखकर घबड़ा रहे हैं। इसलिये अपने चेले चपाटों के माध्यम से अपना खत्म हो रहा अस्तित्व बचाने में जुटे हैं। इसके लिये पहले उन्होंने हिन्दी के फोंट न होने की बात प्रचारित की और वह जब सार्वजनिक हो गये तो अब वह बता रहे हैं कि रोमन लिपि में लिखकर विश्व पर राज करेंगे क्योंकि दूसरे देश भी इसे सीखेंगे। भाषा के सहारे सम्राज्यवाद का उनका सपना केवल एक ढोंग है क्योंकि हिन्दी में लिपि संबंधी बहस से अधिक समस्या उसमें सार्थक लिखने की है। वह भी इस तरह का लेखन करना होगा जो अभी तक बाज़ार में न दिखा हो। जिन्होंने हिन्दी के बाज़ार पर कब्जा कर रखा है वह इंटरनेट पर भी ऐसे सपने देखने लगे हैं। जबकि हमारा मानना है कि जैसे जैसे इंटरनेट पर लोगों की सक्रियता बढ़ेगी उनके बहुत सारे भ्रम टूटेंगे जो उन पर थोपे गये। इंटरनेट पर देवनागरी में हिन्दी लिखने की बढ़ती जा रही सरलता उनको अंततः अपना मार्ग छोड़ने को बाध्य कर देगी। इस तरह हिन्दी भाषा के अंग्रेजीकरण की कोशिश एक निरर्थक कदम है।
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Saturday, August 28, 2010

इतिहास और सर्वशक्तिमान के दूत-हिन्दी व्यंग्य कविताये (history and messagngers of god-hindi satire poem's)

अब तो हादसों के इतिहास पर भी
सर्वशक्तिमान के दरबार बनते हैं,
जिनके पास नहीं रही देह
उन मृतकों के दर्द को लेकर
जिंदगी के गुढ़ रहस्य को जो नहीं जानते
वही उफनते हैं,
जज़्बातों के सौदागरों ने पहन लिया
सर्वशक्तिमान के दूत का लबादा,
भस्म हो चुके इंसानों के घावों की
गाथा सुना सुनाकर
करते हैं आम इंसानों से दर्द का व्यापार
क्योंकि उनके महल ऐसे ही तनते हैं।
------------
इंसानों को दर्द से जड़ने का जज़्बा
भला वह अक्लमंद क्या सिखायेंगे,
जो हादसों में मरों के लिये झूठे आंसु बहाकर,
सर्वशक्तिमान के दरबार सजाकर
लोगों का अपना दर्द दिखायेंगे,
यह अलग बात है कि उनके भौंपू
उनका नाम इतिहास में
सर्वशक्तिमान के दूत की तरह लिखायेंगे।
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मदद की लूट-हास्य कविताएँ (dacaiti in help for below pwoerty line-hindi comic poem's)

गरीबी की रेखा के ऊपर बैठे लोग ही
पूरा हिस्सा खा जाते हैं
इसलिये ही नीचे वाले
नहीं उठ पाते ऊपर
कहीं अधिक नीचे दब जाते हैं।
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गरीबी रेखा के ऊपर बसता है इंडिया
नीचे भारत के दर्शन हो जाते हैं,
शायद इसलिये बुद्धिजीवी अब
इंडिया शब्द का करते हैं इस्तेमाल
भारत कहते हुए शर्माते हैं।
-------------
गरीबी की रेखा पर कुछ लोग
इसलिये खड़े हैं कि
कहीं अन्न का दाना नीचे न टपक जाये
जिस भूखे की भूख का बहाना लेकर
मदद मांगनी है दुनियां भर से
उसका पेट कहीं भर न जाये।
-------
गरीबी रेखा के नीचे बैठे लोगों का
जीवन स्तर भला वह क्यों उठायेंगे,
ऐसा किया तो
रुपये कैसे डालर में बदल पायेंगे,
फिर डालर भी रुपये का रूप धरकर
देश में नहीं आयेंगे,
इसलिये गरीबी रेखा के नीचे बैठे
इंसानों को बस आश्वासन से समझायेंगे।
-------------
अपना पेट भरने के लिये
गरीबी की रेखा के नीचे
वह इंसानों की बस्ती हमेशा बसायेंगे,
रास्ते में जा रही मदद की
लूट तभी तो कर पायेंगे।
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Friday, August 27, 2010

हादसों पर मेले-हिन्दी शायरी (hadson par mele-hindi shayari

कुछ लोग हादसों में मरे इंसानों की याद में
हर बरस मोमबत्तियां जलायेंगे,
तो कुछ जन्नत के फरिश्ते
जख्मों में मरहम लगाने के लिये
सर्वशक्तिमान का नया दरबार बनायेंगे।
इंसान मौत से हारे हैं,
ईमान से अधिक उनको अपने मतलब प्यारे हैं,
कभी नहीं समझा धर्म,
अपनी कमजोरी पर आती है शर्म,
फिर भी अपनी अक्लमंदी से बन गये
जो सर्वशक्तिमान के ठेकेदार
मुर्दों में अमरत्व दिखाने के लिये
पत्थर की कुछ नई इमारते सजायेंगे।
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अक्लमंद भर रहे संदूके-हिन्दी शायरी (akalmand bhar rahe sanduken-hindi shayari)

लोग हादसों की खबर पढ़ते और सुनते हैं
लगातार देखते हुए उकता न जायें
इसलिये विज्ञापनों का बीच में होना जरूरी है।
सौदागारों का सामान बिके बाज़ार में
इसलिये उनका भी विज्ञापन होना जरूरी है।
आतंक और अपराधों की खबरों में
एकरसता न आये इसलिये
उनके अलग अलग रंग दिखाना जरूरी है।
आतंक और हादसों का
विज्ञापन से रिश्ता क्यों दिखता है,
कोई कलमकार
एक रंग का आतंक बेकसूर
दूसरे को बेकसूर क्यों लिखता है,
सच है बाज़ार के सौदागर
अब छा गये हैं पूरे संसार में,
उनके खरीद कुछ बुत बैठे हैं
लिखने के लिये पटकथाऐं बार में
कहीं उनके हफ्ते से चल रही बंदूकें
तो कहीं चंदे से अक्लमंद भर रहे संदूके,
इसलिये लगता है कि
दौलत और हादसों में कोई न कोई रिश्ता होना जरूरी है।

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Saturday, August 21, 2010

हिन्दी हास्य कविता-झूठी प्रशंसा (jhoothi tarif-hindi hasya kavita)

आशिक ने कहा माशुका से
‘‘मुझसे पहले भी बहुत से आशिकों ने
अपनी माशुकाओं के चेहरे की तुलना
चांद से की होगी,
मगर वह सब झूठे थे
सच मैं बोल रहा हूं
तुम्हारा चेहरा वाकई चांद की तरह है खूबसूरत और गोल।’’

सुनकर माशुका बोली
‘‘आ गये अपनी औकात पर
जो मेरी झूठी प्रशंसा कर डाली,
यकीनन तुम्हारी नीयत भी है काली,
चांद को न आंखें हैं न नाक
न उसके सिर पर हैं बाल
सूरज से लेकर उधार की रौशनी चमकता है
बिछाता है अपनी सुंदरता का बस यूं ही जाल,
पुराने ज़माने के आशिक तो
उसकी असलियत से थे अनजान,
इसलिये देते थे अपनी लंबी तान,
मगर तुम तो नये ज़माने के आशिक हो
अक्षरज्ञान के भी मालिक हो,
फिर क्यूं बजाया यह झूठी प्रशंसा का ढोल,
अब अपना मुंह न दिखाना
खुल गयी तुम्हारी पोल।’’
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, ईमान से अधिक उनको अपने मतलब प्यारे- हिन्दी व्यंग्य कविता

कुछ लोग हादसों में मरे इंसानों की याद में
हर बरस मोमबत्तियां जलायेंगे,
तो कुछ जन्नत के फरिश्ते
जख्मों में मरहम लगाने के लिये
सर्वशक्तिमान का नया दरबार बनायेंगे।
इंसान मौत से हारे हैं,
ईमान से अधिक उनको अपने मतलब प्यारे हैं,
कभी नहीं समझा धर्म,
अपनी कमजोरी पर आती है शर्म,
फिर भी अपनी अक्लमंदी से बन गये
जो सर्वशक्तिमान के ठेकेदार
मुर्दों में अमरत्व दिखाने के लिये
पत्थर की कुछ नई इमारते सजायेंगे।
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रौशनी चुराकर अंधेरों को सुलाने लगे-हिन्दी व्यंग्य कविता (vikas ka mukhauta-hindi satire poem)

दूसरों के घर की रौशनी चुराकर
अंधेरों को वहां सुलाने लगे,
नौनिहालों के दूध में जहर मिलाकर
अपनी दौलत से अपना कद
ज़माने को दिखाने के लिये
ऊंचा उठाने लगे।
इंसानों जैसे दिखते हैं वह शैतान
पेट से बड़ी है उनकी तिजोरी
जंगलों की हरियाली चुराकर
भरी है नोटों से उन्होंने अपनी बोरी,
अब गरीबी और बेबसी को
विकास का मुखौटा पहनाकर बुलाने लगे।
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Sunday, August 15, 2010

वादे और इरादे-हिन्दी क्षणिकाऐं (vade aur irade-hind kshniaken)

उनके कुछ वादे हैं,
कुछ इरादे भी हैं,
इंतजार है बस हुकूमत हाथ में आने का,
या फिर दलाल बन जाने का,
फिर कुआँ आकर पूछेगा 
वादे और इरादे,
बस उनको भूल जाने का.
------------------------------
वादे कर भूल जाएँ 
कामयाब इन्सान कहलाते हैं,
करते हैं जो इन्सान 
ज़माने का भला करने का इरादा 
हो जाते हैं गलतियों का शिकार 
जिनकी चर्चा में बदनाम हो जाते हैं .
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सयानों का देशप्रेम-हिन्दी व्यंग्य कविता (sayanon ka deshprem-hindi vyangya kavita)

नहीं जगा पाते अब देशप्र्रेम
फिल्मों के पुराने घिसे पिटे गाने,
हालत देश की देखकर
मन उदास हो जाता है,
स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस
उठते है मन ही मन ताने।
अपने आज़ाद होने के बारे में सुना
पर कभी नहीं हुआ अहसास,
जीवन संघर्ष में नहीं पाया किसी को पास,
आज़ादह और एकता के नारे
हमेशा सुनने को मिलते रहे,
पर अपनों से ही जंग में पिलते रहे,
अपने को हर पग पर गुलाम जैसा पाया,
अपने हाथ अपने मन से नहीं चलाया,
हमेशा रहे आज़ादी और स्वयं के तंत्र से अनजाने
सब उलझे हैं उलझनों में
जो सुलझे हैं,
वह भी लगे दौलत और शौहरत जुटाने की उधेड़बनों में,
देशप्रेम की बात करते हैं,
पर दिखाते नहीं वही कहलाते सयाने।
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आज़ादी का मतलब-व्यंग्य कविता (azadi ka ek din-satire poem in hindi)

फिर एक दिन बीत जायेगा,
साल भर तो गुलामों की तरह गुजारना है,
में आह्लाद पैदा होने की बजाय
खून खौलता है
जब कोई आज़ादी का मतलब नहीं समझा पाता।
एक शब्द बन गया है
जिसे आज़ादी कहते हैं,
उसके न होने की रोज होती है अनुभूति,
खत्म कर देती है
शहीदों के प्रति हृदय की सहानुभूति,
फड़क उठते हैं जंग को हाथ
जो फिर अपनी कामनाओं के समक्ष लाचार हो जाते हैं,
जब स्वयं का तंत्र ही ज़ल्लादों के हाथ में
फांसी की तरह लटका नज़र आता है।
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आज़ादी पर का झंडा वंदन-व्यंग्य कविता कविता (one day of indepandent-hidi satire poem)

अपने ही गुलामों की
भीड़ एकत्रित कर आज़ादी पर
शिखर पुरुष करते हैं झंडा वंदन।
अपने खून को पसीना करने वाले
मेहनतकशों के लिये हमदर्दी के
कुछ औपचारिक शब्द बोल देते हैं
उसके हाथ भी खोल देते हैं
बस! एक दिन
फिर उसके पसीने का तेल बनाने के लिए
डाल देते हैं पांव में बंधन।।
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आधा लड्डू का स्वतंत्रता दिवस-हास्य कविता (gulamom ka svatatrata divas-hasya kavita)

मालिक ने स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिये
काम पर एक घंटा पहले अपने गुलामों को बुलाया,
यह आमंत्रण एक गुलाम को रास न आया,
वह बोला,
‘‘मालिक आधे लड्डू के लिये
आप हमें काम पर एक घंटे पहले न बुलायें,
ताकि हमारे बेटी बेटियां भी इसे मनाऐं,
कल हम लोगों में से कुछ उनको
स्वतंत्रता दिवस पर छोड़ने स्कूल जायेंगे,
वह भी वहां जश्न मनाऐंगें,
आप निश्चित रहें
अपने तय समय पर यहां
आपकी सेवा में जरूर हाज़ि़र हो जायेंगें।’’
सुनकर मालिक बोला-
‘‘भूलो मत तुम्हारी रोजी रोटी
यहीं से चल रही है
यह स्वतंत्रता दिवस अपने ही लोगों के
मालिक बन जाने पर मनाया जाता है,
जिनकी कृपा से तुम्हारे चूल्हे की आग जल रही है,
अरे,
इसे हमारे साथ मिलकर उत्साह से मनाओ, खाकर भी हमारी कृपा के पूरे गुन गाओ,
जिन्होंने की इस आमंत्रण की उपेक्षा,
समझो, वह बाद में वह देर से आने पर वह पछतायेंगे।
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