Wednesday, October 26, 2016

दीपावली हिन्दुत्व और परिवारवाद पर कुछ संदेश (Sum Message on Internet with Deepawali, Hindutva And Parivwar Vad)

                      फेसबुक पर हमने एक राष्ट्रवादी मित्र के संदेश पर बहस देखी। बहुत सारी टिप्पणियों में  कोई सहमत तो कोई असहमत था। कुछ लेखक से नाराज थे कि राष्ट्रवादी होने के बावजूद उन्होंने ऐसी बात क्यों लिखी। कुछ हास्य तो कुछ व्यंग्य से भरी टिप्पणियों को पढ़ते हुए हमने अपने अंतर्मन में झांका तो पाया कि पिछले अट्ठारह वर्ष से हमने योग साधना के बाद किसी त्यौहार को अधिक महत्व नहीं दिया।  प्रतिदिन सुबह ताजी सांसों से मन इतना भर जाता है कि फिर उसे भटकाने के लिये कहां ले जायें-यही सोचते हैं।  वर्षाकाल में उमस में इतना पसीना आता है कि होली में रंग भरा पानी भी आनंद नहीं दे पाता।  जब कपाल भाति करते हैे तो पटाखों की आवाज आती है।  योग साधना के बाद कुछ भी खायें वह मिठाई से ज्यादा मिठास देता है-मतलब रोज दिवाली जैसा आनंद आता है। सीधी कहें तो योग साधक के लिये प्रतिदिन होली, दीपावली और बसंत है।  दशहरा भी कह सकते हैं क्योंकि देह, मन और विचारों के विकारों का दहन आखिर क्या कहा जा सकता है?
                        हिन्दुत्व पर न्यायालयीन निर्णय के बाद आशा बंधी थी कि राष्ट्रवादी नये तर्क या शैली से बहसों में आयेंगे पर निराशा ही हाथ लगी। टीवी चैनलों पर राष्ट्रवादी विचारक हिन्दुत्व पर पुराने ही विचार व्यक्त करते रहे। उसे देखकर तो नहीं लगता कि हिन्दुत्व का सही अर्थ जानते हैं।  अब यह तय लगने लगा है कि प्रगतिशील, जनवाद और राष्ट्रवाद तीनों ही विचाराधारायें देश के जनमानस को बांधे रखने के लिये हैं ताकि एक तरफ राजपदों पर उनके लोग बने रहने के साथ ही राज्यप्रबंध में यथावत स्थिति रहे। जनता बोर न हो इसलिये विचाराधाराओं का द्वंद्व बनाकर रखा जाये ताकि अकुशल राज्य प्रबंध से उसका ध्यान बंटा रहे।
                          इस दीपावली पर मध्यम और निम्न वर्ग के व्यापारी अपनी आय में बढ़ोतरी नहीं देख पा रहे हैं। हम पहले भी कह चुके हैं कि भारत में चीनी सामानों की बिक्री के पीछे एक कारण यह भी है कि भारत में मध्यम और निम्न वर्ग की आय में निरंतर कमी आ रही है-इस कारण दीपावली जैसे पर्व हर वर्ष फीके होते गये हैं-जिस कारण लोग खर्च कम कर रहे हैं या फिर उन्हें लगता है कि उनकी नियमित आवश्यकताओं की पूर्ति पहले होना चाहिये। किसी खास अवसर पर पैसा खर्च करना उसके लिये असुविधाजनक हो गया है।
एक परिवार पर इतन समय बर्बाद कर भारतीय चैनल अपना नकारापन बता रहे है।
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                 भारत के हिन्दी तथा अंग्रेजी चैनल उस उस परिवार के आपसी क्लेश व समझौते के समाचारों के साथ बहसों पर विज्ञापनों का बहुत समय पास कर चुके हैं।  हम कभी इस तो कभी चैनल पर जाते हैं पर समाज के उद्धार कर उस परिवार के बारे में एक शब्द देखकर ही उबकाई आने लगती है। सच यह है कि अगले चुनाव में इस परिवार की कथित दुकान परिणामों में चौथे नंबर पर रहेगी।  समाजवाद के पीछे अब परिवारवाद अधिक नहीं चलने वाला। समाचार चैनलों के इस प्रसारण पर विश्व में अन्य देशों के लोग ही नहीं भारत के दर्शक भी हैरान हैं। यह प्रचार कर्मियों की अक्षमता का परिणाम हैं।

Tuesday, October 11, 2016

दिल्ली की बजाय लखनऊ की रामलीला चर्चा का केंद्र बनी-हिंदी संपादकीय (Now First time Delhi not center for Ramlila And Rawan Dahan,Lacknow-Hindi Editorial)

                  विश्व पटल पर यह पहली बार यह पता लगा होगा कि दिल्ली के बाहर भी रामलीला और रावण दहन होता है। राजपद पर बैठे लोग किस तरह देश की सांस्कृतिक तथा अध्यात्मिक दर्शन को व्यापक परिदृश्य में स्थापित कर सकते हैं-यह अब राज्यप्रबंध में कार्य करने के इच्छुक लोगों को सीखना चाहिये।
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                  इस बार भारतीय प्रचार माध्यमों में नईदिल्ली की बजाय लखनऊ की रामलील क्यों छायी रही है? इसका उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है। नईदिल्ली के रामलीला आयोजकों ने पिछले वर्ष प्रधानमंत्री को आमंत्रण न भेजकर राजनीति की थी।  उसका यह जवाब है कि उनके लखनऊ जाने से नईदिल्ली की रामलील प्रचार माध्यमों में उसी तरह चर्चित होगी जैसे अन्य शहरों में होती है। इसे आंतरिक सर्जिकल स्ट्राइक कहना तो ठीक नहीं होगा पर कहें भी तो क्या? राजपुरुषों को अपने प्रतिकूल कृत्यों पर दंडात्मक कार्यवाही करना ही चाहिये-आजकल मुंह फेरना बदला लेने का सबसे श्रेष्ठ उपाय है। हम अध्यात्मिक ज्ञान साधक इस प्रकरण को ऐसे ही देखते हैं। पहले बड़े लोग दिल्ली में इसलिये उपस्थित रहते थे क्योंकि वहां की रामलीला प्रसिद्ध है। जबकि अब यह स्पष्ट हो गया है कि बड़े लोग चाहें तो समाज के दृष्टिकोण में बदलाव ला सकते हैं।  वह चाहें तो छोटी जगह को भी बड़ी खबर का हिस्सा बना सकते है।
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                 एक ने कहा-‘दिन खराब हों तो कंप्यूटर भी खराब क्यों होता है? मोबाईल भी बंद हो जाता है। टीवी का डिस्क संपर्क भी गायब हो जाता है।
    दूसरे ने जवाब दिया कि ‘यह बताने के लिये कि अच्छे दिन क्या होते हैं।
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नोट-हमारे साथ कंप्यूटर का संकट चल रहा है इसका इस सवाल या जवाब से कोई संबंध नहीं है। हालांकि इस संकट के निवारण के तत्काल बाद यह पहला संदेश है। आज  जब में अपने लिये कह रहा था तब वह सब काम रहा था।


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