Friday, February 21, 2014

चंदे का धंधा कभी नहीं होता मंदा-हिन्दी व्यंग्य कविता(chande ka dhandha kabhi nahin hota manda-hindi vyangya kavita)



समाज सेवा के लिये निकलते ही सेवक पहले मांगते चंदा,
हल्दी लगे न फिटकरी रंग देता है जोरदार यह धंधा।
बना लिये सेवकों ने महल  बेबस  जहां था वहीं रहा,
दावा यह कि नारे लगाने में उन्होंने भी बहुत दर्द सहा,
ज़माने की सेवा के लिये रोज स्वांग नये  रचते हैं,
चंदे का हिसाब मांगने वालों से सामना करने से बचते हैं,
न कोई शैक्षणिक योग्यता है कोई उपाधि पाई है,
बिना काम किये शोर मचाने से प्रसिद्धि सेवकों ने पाई है,
कहें दीपक बापू दो नंबर के अमीरों में भी दिल रहता है,
देवता बनने की उनकी इच्छा से सेवा कार्य नहीं होता मंदा।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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Friday, February 14, 2014

हुकुमत का खेल-हिन्दी व्यंग्य कविता(hukumat ka khel-hindi vyangya kavita)



जनता की भलाई करने के लिये ढेर सारे सेवक आ जाते है,

शासक होकर करते ऐश बांटते कम ज्यादा मेवा खुद खा जाते हैं।

पहले जिनके चेहरे मुरझाये थे  सेवक बनकर खिल गये,

अंधेरों में काटी थी जिंदगी रौशन महल उनको मिल गये,

तख्त पर बैठे तो  रुतवा और रौब जमायें,

पद छोड़ते हुए अपने नाम के साथ शहीद लगायें,

कोई खास तो कोई आम दरबार लगाता है,

अहसान बांट रहा मुफ्त में हर बादशाह जताता है,

कहें दीपक बापू इंसान का आसरा हमेशा रहा भगवान,

हुकुमतों का खेल तो चालाक ही समझ पाते हैं।

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Thursday, February 6, 2014

सच्चाई और पाखंड-हिन्दी व्यंग्य कविता(sachchai aur pakhand-hindi vyangya kavita)



जल में बड़ी मछली छोटी को खा जायेगी यह तय है।
करिश्मा नहीं करती कुदरत चलने की उसकी अपनी लय है।
कहें दीपक बापू मजबूर इंसान कभी बगावत नहीं करता है,
पेट भरता जिसका आसनी से वही उसूलों का दम भरता है,
पत्थरों दिल इंसानों आगे शीश नवाकर की है जिन्होंने कमाई,
नही सह सकते कभी वह पसीना बहाने वाले मजबूर की बढ़ाई,
अपनी पेट की लड़ाई लड़ता इंसान दूसरे के लिये लगता फिक्रमंद,
पाखंड के ऐसे महला बनाता जहां सच का प्रवेश होता है बंद।
सभी अय्याशी का सामान चाहते पर कहने में उनको भय है,
ईमान सस्ते में बेचने वालों के लिये वफा बेकार की शय है।

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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