Sunday, November 13, 2011

डॉलर और रुपया-हिन्दी हास्य कवितायें (dollar aur rupyaa or rupees-hindi hasya kavitaen comedy poem)

वातानुकूलित कक्षों में बैठे लोग
पसीने के भाग्यविधाता हो गये।
जो सोना किसी की भूख नहीं मिटा सकता
उनके लिये बेशकीमती बन गया,
रोटी बनकर जीवन देने वाले
गेहूं के चमकदार दाने
उनकी नज़रों में मिट्टी हैं
कागज के रुपये से पेट भरने वाले
अमेरिकी डॉलर में खो गये।
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एक अर्थशास्त्री ने दूसरे से कहा
‘‘यार, रुपये का मूल्य गिर रहा है,
यह चिंता की बात है,
हम स्वदेशी है
इसलिये दिन में भी होती बेचैनी
निद्रा से परे हो गयी हमारी रात है।’’

दूसरे ने कहा
‘‘लगता है कि
तुम्हारा किसी अमेरिकी बैंक में खाता नहीं है,
वहां कभी तुम्हारा कोई रिश्तेदार जाता नहीं है,
वरना यह बात नहीं कहते,
रुपये का भाव गिरने का दर्द नहीं सहते,
भईया,
हम तो केवल रहते यहां है,
अपना मन तो वहां है,
डॉलर का रेट बढ़ता है,
इधर हमारा रुपये का भंडार चढ़ता है,
तुम्हारा स्वदेशी तुम्हें मुबारक है,
हम तो वैश्विक दृष्टि वाले
इंडिया तो अपनी मुट्ठी में है
अमेरिका भी अपने साथ है।’’
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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