Thursday, December 27, 2012

जुल्म से लड़ने के लिये हमेशा तैयार रहें-हिन्दी कविता

अपने कदम इस तरह बढ़ाओ
हादसे के खतरे कम रहें,
अपने होश काबू में रखो
हालातों से बेहोश होना अच्छा नहीं
जब जंग सामने हो
हाथ और पांव से बोलें
मुंह से कुछ न कहें।
कहें दीपक बापू
सड़क पर फरिश्ते भी चलते हैं,
शैतान भी खडे हैं जिनके दिल जलते हैं,
पता नहीं किसकी नीयत काली है किसकी सफेद
कौन प्यार करेगा कौन हमला
यह कहना मुश्किल है
दिल-ओ-दिमाग पर रखें काबू
जुल्म से जूझने को हमेशा तैयार रहें।
लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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Friday, November 30, 2012

आम आदमी नाम जहाज है-हिन्दी व्यंग्य (aam admi naam jahaj hai-hindi vyangya lekh, comman man nam is a ship-hindi satire article))

       आम आदमी अब एक लोकप्रिय प्रचलित शब्द हो गया है।  जो लोग राजनीति, साहित्य, कला, फिल्म, पत्रकारिता, आर्थिक कार्य और समाज सेवा में शिखर पुरुष न होकर आम आदमी की तरह सक्रिय हैं उन्हें इस बात पर प्रसन्न नहीं होना चाहिए कि उनकी इज्जत बढ़ रही है क्योंकि उनका आम आदमी होना मतलब भीड़ में भेड़ की तरह ही है।  हां, एक बात जरूर अच्छी हो गयी है कि अब देश में गरीब, बेरोजगार, बीमार, नारी, बच्चा आदि शब्दों में समाज बांटकर नहीं बल्कि आम आदमी की तरह छांटा जा रहा है।  वैसे कुछ लोग जो टीवी के पर्दे पर लगातार दिखने के साथ ही अखबारों में चमक  रहे हैं उनको आम आदमी का दावा नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे प्रचार माध्यमों की खास आदमी के नाम से लाभ उठाने की मौलिक प्रवृत्ति बदल नहीं रही। अगर वह किसी कथित आम आदमी के नाम को चमका रहे हैं तो केवल इसलिये कि उनके बयानों पर बहस का समय विज्ञापन प्रसारण में  अच्छी  तरह पास होता रहा है।
         सच बात तो यह है कि हर आम आदमी  समाज के सामने खास होकर चमकना चाहता है। हाथ तो हर कोई मारता है पर जो आम आदमी में गरीब, बीमार, बेरोजगार  तथा  अशिक्षित जैसी संज्ञायें लगाकर भेद करते हुए उनके कल्याण के नारे लगाने के साथ ही नारी उद्धार की बात करता है उनको ही खास बनने का सौभाग्य प्राप्त हो्रता है।  अब लगता है कि आम आदमी का कल्याण करने का नारा भी कामयाब होता दिख रहा है।
        उस दिन अकविराज दीपक बापू सड़क पर  टहल रहे थे। एक आदमी ने पीछे आया और  नमस्ते की तो वह चौंक गये।  उन्होंने भी हाथ जोड़कर उसका अभिवादन किया।  आदमी  ने कहा‘‘ क्या बात है आज अपना पुराना फटीचर स्कूटर कहां छोड़ दिया?’’
           दीपक बापू चौंक गये फिर बोले-‘‘हमने आपको पहचाना नहीं।  हम जैसे आम आदमी के साथ आप इस तरह बात कर रहे हैं जैसे कि बरसों से परिचित हैं।’’
           वह आदमी उनके पास आया और उन्हें घूरकर देखने लगा फिर बोला-‘माफ कीजिऐ, मैंने आपको फंदेबाज समझ लिया। वह मेरा दोस्त है और आपको गौर से नहीं देखा इसलिये लगा कि कहीं आप हैं।  आपने अभी यह कहा कि आप आदमी हैं, पर कभी आपको टीवी पर नहीं देखा।’’
         दीपक बापू हंसे और बोले-‘‘आपकी बात सुनकर हैरानी हो रही है।  एक तो आपने पुराने फटीचर स्कूटर की बात की उसे सुनकर मुझे लगा कि आप शायद परिचित हैं पर पता लगा कि मेरे जैसा भी कोई आम आदमी है जिसे आप जानते हैं।  रही बात टीवी पर दिखने की तो भई उनके पर्दे पर हमारे जैसे आम आदमियों के लिये भला कोई जगह है? इस तरह तो मैंने भी कभी आपको टीवी पर नहीं देखा। आप भी आम आदमी ही है न?’’
      वह आदमी बोला-‘‘मुझे कैसे देखेंगे? मैं तो नौकरी करता हूं!  आजकल टीवी पर आम आदमी की बहुत चर्चा है सोचा शायद कभी आप वहां पर अवतरित हुए हों!  आजकल आम आदमी टीवी पर ही दिखते हैं।’’
        दीपक बापू हंसकर बोले-‘‘हां, हम भी देख रहे हैं पर वही  लोग पर्दे पर अपने को आम  आदमी  की तरह चमका सकते हैं जिन पर खास लोगों का आशीर्वाद हो।  आप और हम जैसे आम आदमी तो इसी तरह सड़कों पर घूमेंगे।’’
          वह आदमी बोला-‘‘क्या बात कर रहे हें? मैं आम आदमी नहीं नौकरीपेशा आदमी हूं।  किसी ने सुन लिया तो मेरी शामत भी आ सकती है। यह आम आदमी की पदवी आप अपने पास ही रख लीजिऐ।’’
      वह तो चला गया पर दीपक बापू थोड़ा चौंक गये।  आम आदमी का मतलब क्या बेरोजगार, लाचार, गरीब और कम पढ़ा लिखा होना ही है?  सच बात तो यह है कि समाज को एक पूरी इकाई मानकर बरगलाना बहुत कठिन काम है इसलिये गरीब-अमीर, व्यापारी-बेरोजगार, स्त्री-पुरुष, तथा स्वस्थ-बीमार का भेद कर कल्याण करने के नारे लगते हैं।  इसका कारण यह है कि छोटे वर्ग के आदमी को यह खुशफहमी रहती है कि बड़े वर्ग से लेकर उसका पेट भरा जायेगा।  यह होता नहीं है।  अभी तक आम आदमी को लेकर कोई वर्ग नहीं बना था।  अमीर, पुरुष, और शिक्षित वर्ग में कोई भी आम आदमी नहीं हो सकता है यह भ्रम फैलाया गया है।  वह वर्ग जो अपनी मेहनत से कमा कर परिवार का पेट भरता है उसका तो दोहन करना ही है पर जो उसके घर में जो बेरोजगार पुत्र या पुत्री, गृहस्थ कर्म में रत स्त्री और घर में रहने वाले बड़े बुजुर्ग का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिये उनके भले के नारे लगते रहे।  कमाऊ पुरुष एक तरह से राक्षस माना गया जो अपने पर आश्रित लोगों का शोषण करने के साथ उपेक्षा का भाव रखता है।  सड़क, कार्यालय या दुकान पर वह जो परेशानियां झेलता है उसकी चर्चा कहीं नहीं होती।
        वह उपेक्षित आम आदमी था। न ऐसे लोग कभी भले करने के नारों पर भटकते हैं न ही उसे यकीन था कि कोई उसके साथ है।  अब जबसे आम आदमी का नाम टीवी पर आने लगा है उससे सभी चौंक गये हैं।  इधर अंतर्जाल पर भी लाखों आम आदमी मौजूद है।  उनके ब्लॉग, फेसबुक और ट्विटर पर खाते हैं पर केवल खाताधारी है। उनको लेखक, कवि, कार्टूनिस्ट और पत्रकार का दर्जा प्राप्त नहीं है। जिनको मिला है वह खास लोगो की कृपा है।  ऐसा लगता है कि पहले गरीब, बेरोजगार, बीमार, बुजुर्ग और महिलाओं के कल्याण का नारा अब बोरियत भरा हो गया लगा है इसलिये प्रचार माध्यमों ने आम आदमी बनाये हैं।  अपने आम आदमी!  जिनके ब्लॉग, फेसबुक और ट्विटर पर खाते हैं पर उनको वैसा ही सम्मान मिल रहा है जिसे कि अभिनय, राजनीति, फिल्म, टीवी और समाचार पत्रों के शिखर पुरुषों को प्राप्त है।  खास लोग अगर इंटरनेट पर अपने छींकने की खबर भी रख दें तो वह टीवी पर दिखाई जाती है।  आम आदमी जो शब्दिक प्रहार कर रहा है उसकी चर्चा कोई नहीं कर रहा। यह आम आदमी नाम जहाज प्रचार के समंदर में केवल उन्हीं को पार लगायेगा जो कि खास आदमी से आशीर्वाद लेकर उसमें चढ़ेंगे।  ऐसे में दीपक बापू जो स्वयं को आम आदमी कहते थे अब कहने लगे हैं कि हम तो ‘‘शुद्ध आम आदमी है।’’
लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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Saturday, September 29, 2012

इस लेखक के दस "सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग/पत्रिकाओं" की सूची (10 top ten hindi blogs of it writer or top ten hindi megazine)

         कुछ पाठकों ने इस लेखक के अनेक ब्लॉग पर यह टिप्पणियां की हैं यह बतायें कि आपके कौनसे 10 श्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग या पत्रिकायें   सबसे अधिक सक्रिय हैं जिन पर दृष्टि रखी जाये। इस संबंध में यह स्पष्टीकरण देना जरूरी है कि यह लेखक अव्यवसायिक है और यहां लिखने का उसे एक पैसा नहीं मिलता बल्कि इंटरनेट किराये के साथ शरीरिक श्रम भी करना पड़ता है।
       इतने सारे ब्लॉग बनाने के पीछे उद्देश्य कोई खास नहीं था।  बन गये तो निभा रहे हैं।  वैसे हिन्दी में ब्लॉग लिखना कोई प्रेरणादायक कार्य नहीं है। पिछले छह वर्षों से इस लेखक की कोई पहचान नहीं है। इसका कारण यह है कि हिन्दी लेखन की अपनी कुछ ऐसी प्रकृतियां हैं जिन पर लिखा जाये तो बहुत सारा लंबा लेख लिखना पड़ेगा। इनमें मूल एक बात सामने आती है कि हिन्दी में बिना पैसे आप लिख रहे हैं तो आप लेखक नहीं है। आपके पास धन नहीं है या किसी बड़े ओहदे पर नहीं है तो भी आप लेखक नहीं है।  इसके अलावा सम्मानित लेखक कहलाने के लिये  आपके सिर पर किसी प्रकाशन संस्थान का वरदहस्त होना चाहिए और अगर  राजकीय रूप से कोई संरक्षण हिन्दी लेखन में मिल जाये तभी आपको लेखक के रूप में स्वीकार किया जायेगा।
           यह प्रवृत्ति इंटरनेट पर भी आ गयी है। यही कारण है कि हम तो वहीं हैं जहां पहले थे पर यह अलग बात है कि यहां लिखते लिखते गजब का आत्मविश्वास आया हैं।  इसलिये किसी की परवाह नहीं है।  अनेक विषयों पर हमने ऐसे विचार लिखे जो आज तक किसी के दिमाग में नहीं आये।  कभी लेख तो कभी विचार भी चोरी हो गये। भाई लोगों को यह बताते भी शर्म आती है कि एक फोकटिया लेखक से हमने उसकी सामग्री उधार ली है।  हमारे ब्लॉग हिन्दी ब्लॉग जगत की धारा से बाहर हो गये हैं।  शुरुआती दौर में जिन लोगों ने हमारे गुण गाये वह याद भी नहीं करते।  बहरहाल हम अपने बीस ब्लॉग में से दस श्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग की सूची ही स्वयं ही जारी कर रहे हैं। यह पूरे हिन्दी ब्लॉग जगत की नहीं वरन् हमारे ब्लॉग की है। वह भी इस समय की है और पाठक संख्या के आधार पर है। इनमें उतार चढ़ाव आते रहते हैं।
       अब यह पाठकों पर निर्भर करता है कि वह किसे श्रेष्ठ माने या पढ़ें।  हमारा लिखना सब नियमित रहता है। इस बार हिन्दी दिवस के अवसर पर इन ब्लॉगों ने इतने सारे पाठक जूता लिए कि कुल संख्या 20 हज़ार को पार कर गई थी। तीन दिन में इतनी पाठक/पाठ पठन संख्या रही कि सामान्य दिनों में उसके लिए दो महीने लगते हैं।  यह संख्या इस लेखक के प्रेरणादायी रही।
लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
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Tuesday, September 18, 2012

खुदगर्जी और नीयत-हिंदी व्यंग्य कविताएँ (khudgarji aur neeyat-hindi vyangya kavitaen)

खुदगर्जी के लिये बदनाम-हिन्दी कविता
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हम जिन भी राहों से गुजरे
वहां अपने लिये ठोकरों को
इंतजार करते पाया,
अपने घावों पर किससे
हमदर्दी पाते
हमराहों के दिल पर थी 
जज़्बातों की काली छाया।
कहें दीपक बापू
तरसे है जो नाम पाने को
करते दूसरों को बदनाम
उनसे क्या इज्ज़त पाने का ख्वाब देखते
जिनको खुदगर्जी के लिये बदनाम होते पाया
--------------------
नीयत की कीमत-हिन्दी कविता
-------------------
थोड़े फायदे के लिये
लोग इंसानियत की हदें
लांघ जाते हैं,
रिश्तों की देते दुहाई
कौड़ियों के बदले
गैरों के घर  अपनी डोर बांध आते हैं।
कहें दीपक बापू
ज़माने में मर गयी वफादारी
पैसा खर्च कर सको
सगे क्या गद्दार भी
हमदर्द बनने को तैयार हो जाते
यह अलग बात है
हम नीयत की कीमत नहीं मांग पाते हैं।
-----------------
कवि लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Poet or Writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Lashkar, Gwalior madhya pradesh

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Thursday, September 6, 2012

हिन्दी में पहले कौन मुंह खोलेगा-हिन्दी दिवस पर कविता (kavita or poem on hindi diwas or hindi divas )


हिन्दी दिवस पर भाषण
बहुत होंगे
कोई हिंग्लिश में बोलेगा
कोई अंग्रेजी में बोलकर
अपनी बात खुद ही तोलेगा।
कहें दीपक बापू
भाषा और संस्कारों में
पश्चिम और पूर्व के रंग
इस कदर मिल गये हैं
हिन्दी में सोचते हैं सभी
मगर बोलने के लिये
अंग्रेजी जुबान चाहिए
कौन है जो हिन्दी में मुंह खोलेगा।
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कवि लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Poet or Writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Lashkar, Gwalior madhya pradesh

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',ग्वालियर
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Sunday, August 26, 2012

याचना के साथ इतराना-हिंदी कविता (yachna ke sath itarana-hindi kavita)

अपने सपनों का पूरा होने का बोझ
दूसरों के कंधों पर वह टिकाते हैं,
पूरे होने पर अपनी कामयाबी पर
अपनी ही ताकत दिखाते हैं।
कहें दीपक बापू
मेहनत और अक्ल का
इस्तेमाल करने का सलीका नहीं जिनको
वही दूसरों को अपनी जरूरतों के वास्ते
पहले सर्वशक्तिमान से याचना
फिर पूरी होने पर
ज़माने के सामने इतराना सिखाते हैं।
----------------------------------------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा
ग्वालियर मध्य प्रदेश


कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
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Sunday, August 19, 2012

ज़िन्दगी के रास्ते पर सोचकर रखना कदम-हिंदी कविता (zindagi ke raste par kadam-hindi kavita


ज़िन्दगी  के रास्ते पर अपने कदम कदम
फूंक फूंककर कर रखना
अगर पांव फिसले तो तुम्हारी चीत्कार
कोई नहीं सुन पायेगा,
भीड़ तो होगी चारों तरफ
मतलबपरस्ती में फंसी है सभी की सोच
अपने मसलों में उलझा है सभी का ध्यान
कोई बंद लेगा अपने कान
कोई अनुसनी कर चला जायेगा।
कहें दीपक बापू
ज़माने के लोग
सुनते नहीं है
इसका मतलब सभी को  समझना न बहरां
बस, उनके कान पर खुदगर्जी का है पहरा
अपनी दिल और दिमाग  की लगाम
अपने हाथ में रखना
गैर का क्या धोखा देंगे
अपना भी बेवफाई न कर पायेगा।
------------------------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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ज़माने के जज़्बात और हालात-हिन्दी कविता --------------------


वह चीखकर अपना दर्द
ज़माने को  सुना हैं,
भीड़ लगी उनके घर के दरवाजे पर
लोग तरह तरह के इलाज पर
एक दूसरे के कान में गुनागुना रहे हैं,
लगता नहीं उनका मसला  हल होगा।
चर्चा होगी पूरे शहर में
मगर घाव उनका वहीं होगा।
कहें दीपक बापू
अपना गम चौराहे पर सुनाने से
पहले सोचना होगा
लोगों के दिल में जज़्बात हैं भी कि नहीं
वरना खामोशी से अपनी हालातों को पीना होगा।
----------------------
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
ग्वालियर मध्यप्रदेश

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Friday, August 10, 2012

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर चिंत्तन करना भी आवश्यक-हिंदी लेख (shri krishna janmashtami par hindi lekh-chinttan karna bhee jaroori-hindi article)

    आज पूरे भारत में भगवान श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जा रही है।  आज के दिन धार्मिक रुचि वाले लोग मंदिरों में जाकर अपने इष्ट की पूजा अर्चना करते हैं।  कई जगह गोवर्धन मंदिर भी होते हैं जहां  अनेक श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं।  भगवान श्रीकृष्ण का रूप ऐसा ही है कि उनकी चारों प्रकार के भक्त-आर्ती, अर्थार्थी, जिज्ञासु और ज्ञानी-आराधना करते हैं।  सामान्य जीवन व्यतीत करने वाला हो या योग साधक भगवान श्रीकृष्ण से प्रेरणा ग्रहण करता है।
             जहां सकाम धार्मिक भक्त मंदिरों में जाकर अपने हृदय की भावनाओं में प्रकाश की अनुभूति करते हैं वही योग साधक तथा गीता पाठक भगवान श्रीकृष्ण के महाभारतकाल में दिये गये संदेश पर चिंत्तन करने का लीन होने का प्रयास करते हैं।  सच बात तो यह है कि भगवान श्रीकृष्ण का योगेश्वर का रूप अत्यंत रहस्यमय रहा हैं।  यह अलग बात है कि अगर तत्वज्ञान का श्रद्धा के साथ अध्ययन किया जाये तो उसे सामान्य बुद्धि में सहजता के साथ उसकी अनुभूति की जा सकती है। श्रीमद्भागवत गीता में उनका संदेश इस संसार की अनमोल विरासत है।  उसमें ज्ञान और विज्ञान के ऐसे सू.त्र हैं जिनको समझा जाये तो संसार में सार्थक और निरर्थक विषयों का अंतर स्पष्ट रूप से सामने आ जाता है। अगर श्रद्धा के साथ उसका अध्ययन किया जाये तो राजनीति, अर्थ, काम, समाज तथा स्वास्थ्य से संबंधित उसमें जो ज्ञान है उसका विस्तार अपने बुद्धि से ही किया जा सकता।  फिर बड़े शास्त्र पढ़ने से कोई प्रयोजन नहीं रह जाता।
    वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण के अनेक प्रसंग बताये जाते हैं पर महाभारत युद्ध के समय श्री अर्जुन को दिया गया उनका ज्ञान अत्यंत प्रसिद्ध है।  इससे यह पता चलता है कि उन्होंने अपने जीवन काल में केवल बाललीलाऐं या क्रीड़ायें ही नहीं की वरन् तत्वज्ञान की ऐसी स्थापना की जिसे आज भी प्रासांगिक माना जाता है।
    हैरानी तो भारतीय समाज को देखकर होती है।  आज के भौतिक जाल में फंसा भारतीय समाज भक्ति के संक्षिप्त मार्ग ढूंढने लगा है।  ज्ञान के लिये अध्ययन से अधिक श्रवण पर निर्भर हो गया है।  उससे अधिक बुरी बात तो यह है कि ज्ञान संदेश नारों की तरह दिया जाता है। मोह मत पालो, लोभ मत करो, काम और क्रोध से बचो आदि आदि।  इनसे कैसे बचें? इसका कोई मार्ग नहीं बताता।  सब मानते हैं कि योगासन, ध्यान, प्राणायाम तथा संयम जीवन में श्रेष्ठ मार्ग की तरफ ले जाते हैं मगर जीवन में उस पर चलते हैं कितने लोग हैं? उंगलियों पर गिनती करने लायक संख्या उन ज्ञानियों की होती है और उन्हें समाज से प्रथक मानकर उपेक्षित कर दिया जाता है।  जीवन मे आनंद का अर्थ आध्यात्मिक शांति नहीं वरन् दूसरे को अपनी भौतिक उपलब्धि से प्रभावित करना मान लिया गया है।  जहां भौतिक साधनों की प्राप्ति का शोर होता है वहां पहुंचकर आदमी इस बात का प्रयास करता है कि उसकी आवाज सबसे अधिक बुलंद हो और न होने पर क्रोध के साथ निराशा का शिकार हो जाता है।  जहां आदमी को शंाति से बैठने की सुविधा मिलती है वहां यह सोचता है कि वह कैसे अपनी आवाज को दूसरे की अपेक्षा अधिक शोर करने वाली बनाये।  इसके विपरीत योग साधकों और गीता पाठकों के लिये सांसरिक विषय त्याज्य नहीं होते वरन् वह उनके साथ अपनी शर्तो पर जुड़ते हैं।  इसलिये सामान्य मनुष्यों की बजाय वह शांति और आनंद से जीते हैं।
             श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर समस्त ब्लॉग लेखक मित्रों तथा पाठकों को बधाई। यह दिन उनको सांसरिक विषयों में सफलता के साथ  आध्यामिक ज्ञान में रूचि प्रदान करें।   
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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Tuesday, March 13, 2012

शैतानीयत-हिन्दी कविता (shaitaniyat-hindi kavita)

भूखे इंसान से भला इस दुनियाँ में कौन डरता है,
सारे राह कत्ल तो हवस का गुलाम करता है।
रोटी की तलाश में हर आदमी हो जाता बेबस
खजाने भरने का मोह उसमें शैतानियत भरता है।
कहें दीपक बापू अन्न और जल की कमी नहीं है
इंसान दूसरे को तरसता देख दिल खुश करता है।
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Wednesday, February 29, 2012

अपने कदम आहिस्ता बढ़ाओ-हिन्दी कविता (apne kadam aahista badhao-hindi kavita)

ज़िंदगी के रास्ते पर चलना
इतना आसान नहीं
जितना लोग समझ लेते हैं,
यही वजह है कमजोर दिल वाले
थोड़ी मुश्किल में ही
अपनी दम खुद ही तोड़ देते हैं।
कहें दीपक बापू
आहिस्ता आहिस्ता कदम बढ़ाओ
कछुए के तरह
खरगोश की तरह उछलते
रहना अच्छा लगता है
मगर जिन कदमों से
चलना है दूर तक
उनको ही गम देते हैं। 
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
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ज़िंदगी का मज़ा -हिन्दी कविता (zindagi ka maza-hindi kavita or poem)

शराब की दुर्गंध में भी
दिल बहलाने की कोशिश
गुलाब की सुगंध से
साँसों को सहलाने की ख्वाहिश
इंसानी दिमाग बस यूं ही नचाता है।
कहें दीपक बापू
जब तक जज़्बातों को
दिल तक उतारने की कूब्बत नहीं है
ज़िंदगी का मज़ा जुबान से फिसलकर
बाहर ही फैल जाता है।
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Sunday, February 19, 2012

मुफ्त का खेल-हिन्दी हास्य कविता (mufta ka khel,game for free-hindi hasya kavita,hindi comedy poem)

उस्ताद ने शागिर्द से कहा
" इस साल के सालाना जलसे के
अपने प्रचार पत्र में तुमने
यह घोषणा कैसे डाल दी है।
हम गरीब बच्चों को
मुफ्त कापियां पेन और किताबें
मुफ्त बांटेंगे,
कभी सोचा है कि
हम चंदे का इस्तेमाल अगर
ऐसा करेंगे तो
क्या खुद पूरा साल धूल चाटेंगे,
विरोधियों को हंसने वाली
यह बैठे बिठाये कैसी चाल दी है."
सुनकर शागिर्द बोला
"आपके साथ काम करने में
यही परेशानी है,
मेरी चालों से कमाते
पर फिर भी शक जताते
यह देखकर होती हैरानी है,
लोगों के भले का हम दंभ भरते,
छोड़ भलाई सारे काम करते,
पढ़ने वाले गरीब बच्चे
भला हमारे पास कब आयेंगे,
सामान खत्म हो गया
अगर आया कोई भूले भटके तो
उसे बताएँगे,
देश में जितने बढ़े है गरीब,
समाज सेवकों के चढ़े हैं नसीब,
लोगों की इतनी नहीं बढ़ी समस्याएँ,
जितनी उनके लिए बनी हैं समाज सेवी संस्थाएं,
ऐसे में यह मुफ्त मुफ्त का खेल
अब जरूरी है,
सस्ते में दवाएं बांटने का कम हो गया पुराना
इसलिए नया दाव लगाना एक मजबूरी है,
विरोधियों के सारे विकेट उड़ा दे
मैंने यह ऐसी बाल की है।"
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Thursday, January 26, 2012

राजतंत्र में धनतंत्र का जोड़ लगता है जनतंत्र-हिन्दी लेख (rajtantra, dhantantra +jantantra-hindi lekh or article on 26 jawary 26 january republic day of india)

        विश्व में आधुनिक लोकतांत्रिक प्रणाली ब्रिटेन की देन है। भारत ने राजनीतिक रूप से जरूर ब्रिटेेन से स्वतंत्रतता पायी पर मानसिक रूप से कभी यहां राजकीय कर्म में प्रबंध कौशल या व्यवसायिक कला का दर्शन नहीं हुआ। एक बात याद रखने की है कि वर्तमान चुनाव प्रणाली अंग्रेजों के समय में ही विकसित हो गयी थी। यही प्रणाली भारत मे आजादी के बाद भी चली। कहने को हमारे पास अपना संविधान है पर विशेषज्ञ यह बताना नहीं भूलते कि आज भी कानूनों का अधिकतर हिस्सा अंग्रेजों का ही बना हुआ है। कहने का अभिप्राय यह है कि हम आज भी वैचारिक रूप से औपनिवेश राज्य के स्वामी हैं।
         हम यहां चुनाव प्रणाली के बारे में विचार नहीं कर रहे बल्कि हम उस जनतंत्र के स्वरूप का आंकलन कर रहे हैं जिसे अंग्रेजों ने बनाया है। जब तक प्रचार माध्यम विकसित नहीं थे हम अमेरिका और ब्रिटेन की जनतांत्रिक व्यवस्था पर मंत्रमुग्ध थे पर अब यह लगने लगा कि यह सब भ्रम था। ब्रिटेन के बारे मेें कहा जाता है कि वहां के लोग अपनी पुरानी परंपराओं के पोषक हैं। इसके दो प्रमाण हैं एक तो यह कि उन्होंने जनतंत्र का अपनाया पर राजतंत्र को छोड़ा नहीं। दूसरा यह कि अपने क्रिकेट खेल को आज भी वह प्राकृतिक पिच पर ही खेलते हैं वहां उन्होंने कृत्रिम घास या टर्फ को कभी स्वीकार नहीं किया। इतना ही लंबे समय तक तो वह दिन में ही क्रिकेट खेल जारी रखा पर रात्रिकालीन दूधिया रौशनी का चमकने नहीं दिया। इधर हम हैं कि अपनी सारी पंरपराओं को दकियानूसी मानकर छोड़ते जा रहे हैं।
            बात अगर ब्रिटेन के जनतंत्र की है तो हमें लगता है कि राजतंत्र को उन्होंने भले ही नाममात्र का रहने दिया पर धनतंत्र को राज्य कर्म से ऐसा जोड़ दिया कि किसी को आभास तक नहीं होता कि वहां का जनतंत्र वास्तव में एक ऐसी प्रणाली है जिसमें धनपतियों को राजा जैसा सम्मान मिलता है। उन्होंने भी अपने यहां सर नाम की एक उपाधि चला रखी है जिसे कुछ पूंजीपति प्राप्त कर चुके हैं। इनमें एक भारतीय भी शामिल है। ब्रिटेन तथा अमेरिका के साथ भारत के लोकतंत्र में बस एक ही अंतर है कि वहां धनपति प्रत्यक्ष रूप से राजनेताओं को प्रायोजित करते हैं। अभी अमेरिका के राष्ट्रपति ने चंदा मांगने के लिये गाना भी गाया था। भारत में यह कार्य अप्रत्यक्ष रूप से होता दिखता है।
            मूल रूप से ब्रिटेन को पूंजीवादी देश माना जाता है। इसके बावजूद वहां श्रमिक क्षेत्रों से अंसतोष की घटनायें सामने आती हैं। अमेरिका तथा ब्रिटेन में लंबे समय तक वामपंथ का भूत दिखाकर वहां की जनता को डराया गया पर इसके बावजूद वहां वामपंथी विचाराधारा के पोषक तत्व पैदा हुए हैं। यहां तक कि मजदूरों का मसीहा कार्ल मार्क्स तो ब्रिटेन में रहा था। आधुनिक विश्व में ब्रिटेन ने राजतंत्र के साथ धनतंत्र को इस तरह जोड़ा कि वह जनतंत्र हो गया है। पुराने समय धनपति भले ही धन खूब कमाते थे पर उनकी प्रतिष्ठा कभी राजा जैसी नहीं हो पाती थी। ऐसा लगता है कि ब्रिटेन के पूंजीपतियों ने राजतंत्र को कमजोर कर अपने धनतंत्र की आड़ में जनतंत्र के सहारे राज्य पर अपनी पकड़ बनायी। चुनाव चाहे जहां भी हों पैसे के बिना नहीं जीते जा सकते। यह पैसा अंततः धनपतियों के पास से ही आना है। चुनाव लड़ने वालों को धनपति अपने धन से राजा बनाते हैं जो अंततः उनके मातहत होते हैं। इस तरह ब्रिटेन में जनतंत्र प्रणाली के माध्यम से धनतंत्र ने राजतंत्र में अपना हिस्सा प्राप्त किया। जिस वैश्विक आर्थिक उदारीकरण की बात हम करते हैं वह इसी धनतंत्र की देन है। हम हम कहते हैं कि आर्थिक ताकत के कारण भारत की कोई देश उपेक्षा नहीं कर सकता तो इसका कारण यह है कि विश्व अर्थव्यवस्था में कहीं न कहीं भारतीय धनपतियों का प्रभाव इस तरह है कि उसे ब्रिटेन या अमेरिका के राजस पुरुष अनदेखा कर नहीं चल सकते। यह अलग बात है कि हमारे देश के बुद्धिमान लोग इस पर देश का सम्मान बढ़ता बताकर उछलकूदते हैं पर हम जैसे आम लेखक जानते हैं कि यह सब एक छलावा है।
          प्रगतिशील तथा जनवादी लेखक अमेरिका और ब्रिटेन का विरोध इस आधार पर करते हैं कि वह पूंजीवादी और साम्राज्यवादी हैं पर वर्तमान समय में जिस तरह धनतंत्र काम कर रहा है उसे वह नहीं समझ पाते। हम तो यह कहते हैं कि अमेरिका और ब्रिटेन भी अब एक स्वतंत्र राजकीय व्यवस्था में नहीं चल रहे बल्कि वह धनतंत्र का उपनिवेश भर रह गये हैं। न हमारे पास आंकड़े हैं न हम वहां कभी गये हैं। समाचार पत्र और टीवी चैनलों पर समाचारों को देखकर उनकी कड़ियां जोड़कर विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं कि अनेक शक्तिशाली देशों के राजस पुरुष कहीं न कहीं धनपतियों के मुखौटे भर हैं। वह बोलते हैं तो किसी का लिखा लगता है। वह जब चलते हैं तो लगता है कि निर्देशक ने बताया है। उनकी दिनचर्यायें ही अभिनय का हिस्सा लगती हैं। कई शक्तिशाली देशों के शासनाध्यक्ष तो ऐसी हरकतें करते हैं कि कामेडी के महानायक भी शरमा जायें।
         भारत में चुनाव सुधारों की मांग उठने लगी हैं। इसका मतलब यह है कि कुछ लोग इस जनतंत्र में छिद्र देख रहे हैं। यह जनतंत्र ब्रिटेन से ही लिया गया है। छिद्र तो वहां भी होंगे। हमें यहां बैठकर नहीं दिखता। जो वहां देखते हैं उनको विश्लेषण नहीं करना आता। हमारी बात से अनेक लोग असहमत हो सकते हैं क्योंकि हमने कभी विदेशी दौरा नहीं किया मगर देश में घूमते घूमते यह अनुभव किया है कि जब यहां की व्यवस्था वहां के सिद्धांतों पर आधारित है तो वह उन समस्याओं से कैसे बच सकते हैं जिनसे हम दो चार होते हैं। राजतंत्र और धनतंत्र के मिले रूप का नाम जनतंत्र है और एक आदमी के रूप में हमें यह अनुभव होता है कि यही हमारी नियति है कि राज्य हमारा आसरा है हम उसका सहारा हों या न हों। जिनको राजतंत्र का सहारा है वह शक्तिशाली लोग राजस बोध के साथ व्यवहार करेंगे। हमें तो अध्यात्मिक रूप से ज्ञान प्राप्त कर सात्विक रहने का प्रयास करना चाहिए। लोकतंत्र में लोकप्रियता का नकदीकरण करने के लिये तमाम तरह के प्रपंच किये जाते हैं और जिनको नकदीकरण नहीं करना वह जनमानस में अपनी उछलकूद नहीं दिखाते। जो कर रहे हैं उनको इसका अधिकार भी है। 
         गणतंत्र एक शब्द है जिसका आशय लिया जाये तो मनुष्यों के एक ऐसे समूह का दृश्य सामने आता है जो उनको नियमबद्ध होकर चलने के लिये प्रेरित करता है। न चलने पर वह उनको दंड देने का अधिकार भी वही रखता है। इसी गणतंत्र को लोकतंत्र भी कहा जाता है। आधुनिक लोकतंत्र में लोगों पर शासन उनके चुने हुए प्रतिनिधि ही करते हैं। पहले राजशाही प्रचलन में थी। उस समय राजा के व्यक्तिगत रूप से बेहतर होने या न होने का परिणाम और दुष्परिणाम जनता को भोगना पड़ता था। विश्व इतिहास में ऐसे अनेक राजा महाराज हुए जिन्होंने बेहतर होने की वजह से देवत्व का दर्जा पाया तो अनेक ऐसे भी हुए जिनकी तुलना राक्षसों से की जाती है। कुछ सामान्य राजा भी हुए। आधुनिक लोकतंत्र का जनक ब्रिटेन माना जाता है यह अलग बात है कि वहां प्रतीक रूप से राजशाही आज भी बरकरार है।
          मूल बात यह है कि हम गणतंत्र में मनुष्य समुदाय पर एक नियमबद्ध संस्था शासन के रूप में रखते हैं। विश्व के जीवों में एक मनुष्य ही ऐसा है जिसे राज्य व्यवस्था की आवश्यकता है। इसकी वजह साफ है कि सबसे अधिक बुद्धिमान होने के कारण उसके ही अनियंत्रित होने की संभावना भी अधिक रहती है। माना जाता है कि राज्य ही मनुष्य का नियंता है जिसके बिना वह पशु की तरह व्यवहार कर सकता है। राज्य करना मनुष्य की प्रवृत्ति भी है। उसमें अहंकार का भाव विद्यमान रहता है। सभी मनुष्य एक दूसरे से श्रेष्ठ दिखना चाहते हैं और राज्य व्यवस्था के प्रमुख होने पर उनको यह सुखद अनुभूति स्वतः प्राप्त होती है। जिन लोगों को प्रमुख पद नहीं मिलता वह छोटे पद पर बैठकर बाकी छोटे लोगों को अपने दंड से शासित करते है। इस तरह यह क्रम नीचे तक चला आता है। वहां तक जहां से आम इंसान की पंक्ति प्रारंभ होती है। इस पंक्ति के ऊपर बैठा हर शख्स अपने श्रेष्ठ होने की अनुभूति से प्रसन्न है पर साथ ही अपने से ऊपर बैठे आदमी की श्रेष्ठता पाने का सपना भी उसमें रहता है। इस तरह यह चक्र चलता है। जो राज्य व्यवस्था से नहीं जुड़े वह भी कहीं न कहीं अपनी श्रेष्ठता दिखाने के व्यसन में लिप्त हैं।
          राज्य कर्म अंततः राजस भाव की उपज है। उसमें सात्विकता बस इतनी ही हो सकती है जितना आटे में नमक! इससे अधिक की अपेक्षा अज्ञान का प्रमाण है। राज्य कर्म में ईमानदारी एक शर्त है पर उसे न मानना भी एक कूटनीति है। प्रजा हित आवश्यक है पर अपनी सत्ता बने रहने की शर्त उसमें जोड़ना आवश्यक है। अकुशल राज्य प्रबंधकों के के लिये ईमानदारी और प्रजा हित अंततः गौण हो जाते हैं। राज्य कर्म में एक सीमा तक ही सत्य भाषण, धर्म के प्रति निष्ठा और दयाभाव दिखाया जा सकता है। छल, कपट, प्रपंच तथा क्रूर प्रदर्शन राज्य कर्म करने वालों की शक्ति का प्रमाण बनता है। वह ऐसा न करें तो उनको सम्मान नहीं मिल सकता। न्याय के सिद्धांत सुविधानुसार चाहे जब बदले जा सकते हैं।
         सभी राजस कर्म करने वाले असात्विक हैं यह मानना ठीक नहीं है पर इतना तय है कि उनमें एक बहुत वर्ग ऐसे लोगों का रहता है जो अपने लाभ के लिये इसमें लिप्त होते हैं जिसे राजस भाव माना जाता है। आज के समय में तो राजनीति एक व्यवसाय बन गया है। यह अलग बात है कि भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान से परे बुद्धिमान लोग उसमें सत्य, अहिंसा तथा दया के भाव ढूंढना चाहते है।
           विश्व में अधिकतर लोग चाहते हैं कि उन्हें राजसुख न मिल पाये तो उनकी संतान को प्राप्त हो। राजसुख क्या है? यह सभी जानते हैं। दूसरे पर हमारा नियम चले पर हम पर कोई नियम बंधन न हो! लोग हमारी माने पर हम किसी की न सुने। किसी में हमारी आलोचना की हिम्मत न हो। बस हमारी पूजा भगवान की तरह हो। इसी भाव ने राज्य व्यवस्था को महत्वपूर्ण बना दिया है।
           राज्य संकट पड़ने पर प्रजा की मदद करता है। गणतंत्र का मूल सिद्धांत है पर यह एक तरह का भ्रम भी है। प्रजा कोई इकाई नहीं बल्कि कई मनुष्य इकाईयेां का समूह है। मनुष्य अपने कर्म के अनुसार फल भोगता है। वह इंद्रियों से जैसे दृश्य चक्षुओं से, सुर कर्णों से, भोजन मुख से तथा सुगंध नासिका से ग्रहण करने के साथ ही अपने हाथ से जिन वस्तुओं का स्पर्श करता है वैसी ही अभिव्यक्ति उसकी इन्हीं इद्रियों से प्रकट होती है। विषैले विषयों से संपर्क करने वालों से अमृतमय व्यवहार की अपेक्षा केवल अपने दिल को दिलासा देने के लिये ही है। मनुष्य को अपना जीवन संघर्ष अकेले ही करना है। ऐसे में वह अपने साथ गणसमूह और उसके तंत्र के साथ होने का भ्रम पाल सकता है पर वास्तव में ऐसा होता नहीं है।
       उससे बड़ा भ्रम तो यह है कि गणतंत्र हम चला रहे हैं। धन, पद और अर्थ के शिखर पुरुषों का समूह गणतंत्र को अपने अनुसार प्रभावितकरते हैं जबकि आम इंसान केवल शासित है। वह इस गणतंत्र का प्रयोक्ता है न कि स्वामी। स्वामित्व का भ्रम है जिसमें जिंदा रहना भी आवश्यक है। अगर आदमी को अकेले होने के सत्य का अहसास हो तो वह कभी इस भ्रामक गणतंत्र की संगत न करे। जिनको पता है वह सात्विक भाव से रहते हैं क्योंकि जानते हैं कि सहनशीलता, सरलता और कर्तव्यनिष्ठ से ही वह अपना जीवन संवार सकते हैं। जिनको नहीं है वह आक्रामक ढंग से अभिव्यक्त होते है। वह अनावश्यक रूप से बहसें करते है। वाद विवाद करते हैं। निरर्थक संवादों से गणतंत्र को स्वयं से संचालित होने का यह भ्रम हम अनेक लोगों में देख सकते है।
लेखक और संपादक-दीपक "भारतदीप",ग्वालियर 
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Saturday, January 14, 2012

हादसे और हमले फिक्स क्यूँ दिखते हैं-हिन्दी व्यंग्य कविता (hadse aur hamale fix kyun dikhte hain-hindi vyangya kavita or satire poem)

हैरानी है यह देखकर
कुछ लोगों को
कभी हादसे तो
कभी हमले भी फिक्स क्यूँ  लगते हैं।
कहें दीपक बापू
जो जूता मारे और जो खाये
दोनों ही टीवी पर प्रचार पाते,
विज्ञापनों के बीच उनके नाम भी छाते,
सनसनी, हास्य और चिंतन से भरे
सभी समाचार मिक्स दिखते हैं,
गोया पर्दे के पीछे लेखक पहले पटकथा लिखते हैं,
अपनी अपनी पसंद है
लोग देखने के लिए रात भर जगते हैं।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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Friday, January 6, 2012

जिंदगी का कायदा-हिन्दी शायरी (zindagi ka kayda-hindi shayari or poem's)

आस्था का रूप
कभी बाहर दिखाया नहीं जाता,
विश्वास का दावा
कभी कागज पर लिखाया नहीं जाता।
कहें दीपक बापू
नीयत से हैं जो फरिश्ते
वह कभी
अपने काम का ढिंढोरा नहीं पीटते,
बदनीयत करते इंसान होने का दावा
मगर जज़्बातों को मतलब के लिये पीसते,
जहान को बर्बाद कर
अपने लिये एय्याशी खरीदने वालों को
जिंदगी का कायदा कभी सिखाया नहीं जाता।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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