Sunday, January 17, 2010

हिन्दी में लिखो तो जानो-व्यंग्य चिंतन (hindi men likho to jano-vyangya chinttan

वह हमारा मित्र है बचपन का! कल हम पति पत्नी उसे घर देखने गये। कहीं से पता लगा कि वह बहुत बीमार है और डेढ़ माह से घर पर ही पड़ा हुआ है।
घर के बाहर दरवाजे पर दस्तक दी तो उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला और देखते ही उलाहना दी कि ‘आप डेढ़ महीने बाद इनको देखने आये हैं।’
मैने कहा-‘पर उसने मुझे कभी फोन कर बताया भी नहीं। फिर उसका मोबाइल बंद है।’
वह बोली-‘नहीं, हमारा मोबाइल चालू है।’
मैंने कहा-‘अभी आपको बजाकर बताता हूं।’
वह कुछ सोचते हुए बोलीं-‘हां, शायद जो नंबर आपके पास है उसकी सिम काम नहीं कर रही होगी। उनके पास दो नंबर की सिम वाला मोबाइल है।’

दोस्त ने भी उलाहना दी और वही उसे जवाब मिला। उसकी रीढ़ में भारी तकलीफ है और वह बैठ नहीं सकता। पत्थरी की भी शिकायत है।
हमने उससे यह तो कहा कि उसका मोबाइल न लगने के कारण संशय हो रहा था कि कहीं अपनी बीमारी के इलाज के लिये बाहर तो नहीं गया, मगर सच यह है कि यह एक अनुमान ही था। वैसे हमें भी हमें पंद्रह दिन पहले पता लगा था कि वह बीमार है यानि एक माह बाद।

हमें मालुम था कि बातचीत में ब्लागिंग का विषय आयेगा। दोनों की गृहस्वामिनियों के बीच हम पर यह ताना कसा जायेगा कि ब्लागिंग की वजह से हमारी सामाजिक गतिविधियां कम हो रही हैं। हालांकि यह जबरन आरोप है। जहां जहां भी सामाजिक कार्यक्रमों में उपस्थिति आवश्यक समझी हमने दी है। शादियों और गमियों पर अनेक बार दूसरे शहरों में गये हैं। वहां भी हमने कहीं साइबर कैफे में जाकर अपने ईमेल चेक करने का प्रयास नहीं किया। एक बार तो ऐसा भी हुआ कि जिस घर में गये वहां पर इंटरनेट सामने था पर हमने उसे अनदेखा कर दिया। बालक लोग इंटरनेट की चर्चा करते रहे पर हमने खामोशी ओढ़ ली। इसका कारण यह था कि हमने जरा सा प्रयास किया नहीं कि हम पर ब्लाग दीवाना होने की लेबल लगने का खतरा था। बसों में तकलीफ झेली और ट्रेनों में रात काटी। कभी अपने ब्लाग की किसी से चर्चा नहीं की। अलबत्ता घर पर आये तो सबसे पहला काम ईमेल चेक करने का किया क्योंकि यह हमारा अपना समय होता है।
लगभग दो घंटे तक मित्र और उनकी पत्नी से वार्तालाप हुआ। हमने उससे यह नहीं पूछा कि ‘आखिर उसके खुद के ब्लाग का क्या हुआ?’
उसने इंटरनेट कनेक्शन लगाने के बाद अपन ब्लाग बनाया था। उसने उस पर एक कविता लिखी और हमने पढ़ी थी। उससे वादा किया था कि वह आगे भी लिखेगा पर शर्त यह रखी थी कि हम उसे घर आकर ब्लाग की तकनीकी की पूरी जानकारी देंगे। इस बात को छह महीने हो गये। अब बीमारी की हालत में उससे यह पूछना सही नहीं था कि उसके ब्लाग का क्या हुआ।
उसे हमने अपने गूगल का इंडिक का टूल भी भेजा था ताकि हिन्दी लिखने में उसे आसानी हो पर पता नहीं उसका उसने क्या किया?
उसकी बीमारी पर चर्चा होती रही। उसका मनोबल गिरा हुआ था। आखिरी उसकी पत्नी ने कह ही दिया कि ‘यह इंटरनेट पर रात को दो दो बजे तक काम करते थे भला क्यों न होनी थी यह बीमारी?’
हमने पूछ लिया कि ‘क्या तुम ब्लाग लिखते थे।’
इसी बीच श्रीमती जी ने हमारी तरफ इशारा करते हुए कहा कि ‘यह भी बाहर से आते ही थोड़ी देर में ही इंटरनेट से चिपक जाते हैं, और रात के दस बजे तक उस पर बैठते हैं।’
मित्र पत्नी ने कहा-‘पर यह तो रात को दो दो बजे तक कभी कभी तो तीन बजे तक वहां बैठे रहते हैं।’
श्रीमतीजी ने कहा-‘पर यह दस बजे नहीं तो 11 बजे के बाद बंद कर देते हैं। सुबह अगर बिजली होती है तो बैठते हैं नहीं तो चले जाते हैं।’
इधर हमने मित्र से पूछा-‘तुम इंटरनेट पर करते क्या हो? वह मैंने तुम्हें हिन्दी टूल भेजा था। उसका क्या हुआ? वैसे तुमसे जब भी ब्लाग के बारे में पूछा तो कहते हो कि समय ही नहीं मिलता पर यहां तो पता लगा कि तुम रात को दो बजे तक बैठते हो। क्या करते हो?’
वह बोला-‘मैं बहुत चीजें देखता हूं गूगल से अपना घर देखा। रेल्वे टाईम टेबल देखता हूं। अंग्रेजी-हिन्दी और हिन्दी-अंग्रेजी डिक्शनरी देखता हूं। अंग्रेजी में लिखना है। बहुत सारी वेबसाईटें देखता हूं। अखबार देखता हूं। स्वाईल फ्लू जब फैला था उसके बारे में पूरा पढ़ा। हां, मैं अंग्रेजी वाली वेबसाईटें पढ़ता हूं। मैं अंग्रेजी में लिखना चाहता हूं। हिन्दी तो ऐसे ही है।’
‘कैसे?’हमने पूछा
‘कौन पढ़ता है?’वह बोला।
‘‘हमने पूछा तुम अखबार कौनसे पढ़ते हो?’
वह बोला-‘हिन्दी और अंग्रेजी दोनों ही पढ़ता हूं। हां, अपना लेखन अंग्रेजी में करना चाहता हूं। जब मैं ठीक हो जाऊं तो आकर ब्लाग की तकनीकी की विस्तार से जानकारी दे जाना। हिन्दी बहुत कम लोग पढ़ते हैं जबकि अंग्रेजी से अच्छा रिस्पांस मिल जायेगा।’
हम वहां से विदा हुए। कुछ लोग तय कर लेते हैं कि वह बहुत कुछ जानते हैं। इसके अलावा अपने समान व्यक्ति से कुछ सीखना उनको छोटापन लगता है। हमारा वह मित्र इसी तरह का है। जब उसने ब्लाग बनाया था तो मैं उसे कुछ जानकारी देना चाहता था पर वह समझना नहीं चाहता था। उसने उस समय मुझसे ब्लाग के संबंध में जानकारी ऐसे मांगी जैसे कि वह कोई महान चिंतक हो ओर मैदान में उतरते ही चमकने लगेगा-‘मेरे दिमाग में बहुत सारे विचार आते हैं उन्हें लिखूंगा’, ‘एक से एक कहानी ध्यान में आती है’ और ऐसी बातें आती हैं कि जब उन पर लिखूंगा तो लोग हैरान रह जायेंगे’।
उसने मेरे से हिन्दी टूल मांगा था। किसलिये! उसके कंप्यूटर में हिन्दी फोंट था पर उसकी श्रीमती जी को अंग्रेजी टाईप आती थी। वह कहीं शिक्षिका हैं। अपने कक्षा के छात्रों के प्रश्नपत्र कंप्यूटर पर हिन्दी में बनाने थे और हिन्दी टाईप उनको आती नहीं थी। उस टूल से उनको हिन्दी लिखनी थी।
उसने उस टूल के लिये धन्यवाद भी दिया। जब भी उसके ब्लाग के बारे में पूछता तो यही कहता कि समय नहीं मिल रहा। अब जब उसकी इंटरनेट पर सक्रियता की पोल खुली तो कहने लगा कि अंग्रेजी का ज्ञान बढ़ा रहा है। हमने सब खामोशी से सुना। हिन्दी लेखकों की यही स्थिति है कि वह डींगें नहीं हांक सकते क्योंकि उसमें कुछ न तो मिलता है न मिलने की संभावना रहती है। अंतर्जाल पर अंग्रेजी में कमाने वाले बहुत होंगे पर न कमाने वाले उनसे कहीं अधिक हैं। हमारे सामने अंग्रेजी ब्लाग की भी स्थिति आने लगी है। अगर सभी अंग्रेजी ब्लाग हिट हैं तो शिनी वेबसाईट पर हिन्दी ब्लाग उन पर कैसे बढ़त बनाये हुए हैं? अंग्रेजी में अंधेरे में तीर चलाते हुए भी आदमी वीर लगता है तो क्या कहें? एक हिन्दी ब्लाग लेखक के लिये दावे करना मुश्किल है। हो सकता है कि हमारे हिन्दी ब्लाग हिट पाते हों पर कम से कम एक विषय है जिसके सामने उनकी हालत पतली हो जाती है। वह है क्रिकेट मैच! उस दिन हमारे हिन्दी ब्लाग दयनीय स्थिति में होते हैं। ऐसे में लगता है कि ‘हम किसी को क्या हिन्दी में ब्लाग लिखने के लिये उकसायें जब खुद की हालत पतली हो।’ फिर दिमाग में विचार, कहानी या कविताओं का आना अलग बात है और उनको लिखना अलग। जब ख्याल आते हैं तो उस समय किसी से बात भी कर सकते हैं और उसे बुरा नहीं लगा पर जब लिखते हैं तो फिर संसार से अलग होकर लिखना पड़ता है। ऐसे में एकांत पाना मुश्किल काम होता है। मिल भी जाये तो लिखना कठिन होता है। जो लेखक हैं वही जानते हैं कि कैसे लिखा जाये? यही कारण है कि दावे चाहे जो भी करे लेखक हर कोई नहीं बन जाता। उस पर हिन्दी का लेखक! क्या जबरदस्त संघर्ष करता हुआ लिखता है? लिखो तो जानो!
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

शांति और वफादारी-हिन्दी शायरी (shanti aur vafadari-hindi shayri)



भीड़ में एकता की कोशिश पर

हंसी आ ही जाती है।

जहां पहले ही

चीख रहे हैं लोग

अपनी करनी का बखान करते हुए

बंद किये हैं कान,

आंखों  से ढूंढ रहे अपने लिये सम्मान,

वहां शांति के नारे की आवाज

शोर करती नजर आती है।

-------

वफादारी 

खामोश जज़्बात के साथ बह जाती है।

गद्दारी के घाव से पैदा आह

दिल से निकलकर

जुबान पर आकर चीखती

तब सनसनी फैल जाती है।

यही वजह है

नाम कमाने के लिये

गद्दारी ही सभी को भाती है।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

Saturday, January 16, 2010

सब गडड्मडड् है-हिन्दी व्यंग्य (sab gaddmadd hai-hindi vyangya)

हैती में भूकंप, ज्योतिष, पूंजीवाद और समाजवाद जैसे विषयों में क्या साम्यता है। अगर चारों को किसी एक ही पाठ में लिखना चाहेंगे तो सब गड्डमड्ड हो जायेगा। इसका कारण यह है कि भूकंप का ज्योतिष से संबंध जुड़ सकता है तो पूंजीवाद और समाजवाद को भी एक साथ रखकर लिखा जा सकता है पर चार विषयों के दोनों समूहों को मिलाकर लिखना गलत लगेगा, मगर लिखने वाले लिख रहे हैं।
पता चला कि हैती में भूकंप की भविष्यवाणी सही निकली। भविष्यवक्ताओं को अफसोस है कि उनकी भविष्यवाणी सही निकली। पूंजीवादी देश हैती की मदद को दौड़ रहे हैं पर साम्यवादी बुद्धिजीवी इस हानि के लिये पूंजीवाद और साम्राज्यवाद को जिम्मेदार बता रहे हैं। दावा यहां तक किया गया है कि पहले आये एक भूकंप में साम्यवादी क्यूबा में 10 लोग मरे जबकि हैती यह संख्या 800 थी-उस समय तक शायद पूंजीवादी देशों की वक्र दृष्टि वहां नहीं पड़ी थी। अब इसलिये लोग अधिक मरे क्योंकि पूंजीवाद के प्रभाव से वहां की वनसंपदा केवल 2 प्रतिशत रह गयी है। अभिप्राय यह है कि पूंजीवादी देशों ने वहां की प्रकृति संपदा का दोहन किया जिससे वहां भूकंप ने इतनी विनाशलीला मचाई।
इधर ज्योतिष को लेकर भी लोग नाराज हैं। पता नहीं फलित ज्योतिष और ज्योतिष विज्ञान को लेकर भी बहस चल रही है। फलित ज्योतिष पीड़ित मानवता को दोहन करने के लिये है। ऐसे भी पढ़ने को मिला कि अंक ज्योतिष ने-इसे शायद कुछ लोग खगोल शास्त्र से भी जोड़ते है’ फिर भी प्रगति की है पर फलित ज्योतिष तो पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है।
एक साथ दो पाठ पढ़े। चारों का विषय इसलिये जोड़ा क्योंकि हैती के भूकंप की भविष्यवाणी करने वाले की आलोचना उस साम्यवादी विचारक ने भी बिना नाम लिये की थी। यहां तक लिखा कि पहले भविष्यवाणी सही होने का दावा कर प्रचार करते हैं फिर निराशा की आत्मस्वीकृति से भी उनका लक्ष्य ही पूरा होता है। इधर फलित ज्योतिषियों पर प्रहार करता हुए पाठ भी पढ़ा। उसका भी अप्रत्यक्ष निशाना वही ज्योतिष ब्लाग ही था जिस पर पहले हैती के भूकंप की भविष्यवाणी सत्य होने का दावा फिर अपने दावे के सही होने को दुर्भाग्यपूणी बताते हुए प्रकाशित हुई थी। चार तत्व हो गये पर पांचवा तत्व जोड़ना भी जरूरी लगा जो कि प्रकृति की अपनी महिमा है।
मगर यह मजाक नहीं है। हैती में भूकंप आना प्राकृतिक प्रकोप का परिणाम है पर इतनी बड़ी जन धन हानि यकीनन मानवीय भूलों का नतीजा हो सकती है। हो सकता है कि साम्यवादी विचारक अपनी जगह सही हो कि पूंजीवाद ने ही हैती में इतना बड़ा विनाश कराया हो। ऐसी प्राकृतिक विपदाओं पर होने वाली हानि पर अक्सर प्रगतिशील और जनवादी बुद्धिजीवी अपने हिसाब से पूंजीवाद और साम्राज्यवादी को निशाना बनाते हैं। उनको अमेरिका और ब्रिटेन पर निशाना लगाना सहज लगता है। वह इससे आगे नहीं जाते क्योंकि प्रकृति को कुपित करने वालों में वह देश भी शामिल हैं जो ऐसे बुद्धिजीवियों को प्रिय हैं। हमारा तो सीधा आरोप है कि वनों की कटाई या दोहन तो उन देशों में भी हो रहा है जो साम्यवादी होने का दावा करते हैं और इसी कारण कथित वैश्विक तापवृद्धि से वह भी नहीं बचे।
अब विश्व में तापमान बढ़ने की बात कर लें। हाल ही मे पड़ी सर्दी ने कथित शोधकर्ताओं के होश उड़ा दिये हैं। पहले कह रहे थे कि प्रथ्वी गर्म हो रही है और अब कहते हैं कि ठंडी हो रही है। भारत के कुछ समझदार कहते हैं कि प्रकृति अपने ढंग से अपनी रक्षा भी करती है इसलिये गर्मी होते होते ही सर्दी होने लगी। दूसरी भी एक बात है कि भले ही सरकारी क्षेत्र में हरियाली कम हो रही है और कालोनियां बन रही हैं पर दूसरा सच यह भी है कि निजी क्षेत्र में पेड़ पौद्ये लगाने की भावना भी बलवती हो रही है। इसलिये हरित क्षेत्र का संकट कभी कभी कम होता लगता है हालांकि वह संतोषजनक नहीं है। गैसों का विसर्जन एक समस्या है पर लगता है कि प्रकृत्ति उनके लिये भी कुछ न कुछ कर रही है इसी कारण गर्मी होते होते सर्दी पड़ने लगी।
मुख्य मुद्दा यह है कि परमाणु बमों और उसके लिये होने वाले प्रयोगों पर कोई दृष्टिपात क्यों नहीं किया जाता? चीन, अमेरिका और सोवियत संघ ने बेहताश परमाणु विस्फोट किये हैं। इन परमाणु विस्फोटों से धरती को कितनी हानि पहुंची है उसका आंकलन कोई क्यों नही करता? हमारी स्मृति में आज तक गुजरात का वह विनाशकारी भूकंप मौजूद है जो चीन के परमाणु विस्फोट के कुछ दिन बाद आया था। इन देशों ने न केवल जमीन के अंदर परमाणु विस्फोट किये बल्कि पानी के अंदर भी किये-इनके विस्फोटों का सुनामी से कोई न कोई संबंध है ऐसा हमारा मानना है। यह हमारा आज का विचार नहीं बल्कि गुजरात भूकंप के बाद ऐसा लगने लगा है कि कहीं न कहीं परमाणु विस्फोटों का यह सिलसिला भी जिम्मेदारी है जो ऐसी कयामत लाता है। साम्यवादी विचारक हमेशा ही अमेरिका और ब्रिटेन पर बरस कर रह जाते है पर रूस के साथ चीन को भी अनदेखा करते हैं।
हमारा मानना है कि अगर यह चारों देश अपने परमाणु प्रयोग बंद कर सारे हथियार नष्ट कर दें तो शायद विश्व में प्रकृति शांत रह सकती है। विश्व में न तो पूंजीवाद चाहिये न समाजवाद बल्कि सहजवाद की आवश्यकता है। साम्राज्यवादी के कथित विरोधी देश इतने ही ईमानदार है तो क्यों पश्चिमी देशों की वीजा, पासपोर्ट और प्रतिबंधों की नीतियों पर चल रहे हैं। चीन क्यों अपने यहां यौन वेबसाईटों पर प्रतिबंध लगा रहा है जैसे कि अन्य देश लगाते हैं। वह अभी भी आदमी का मूंह बंद कर उसे पेट भरने के लिये बाध्य करने की नीति पर चल रहा है।
जहां तक ज्योतिष की बात है तो अपने देश का दर्शन कहता है कि जब प्रथ्वी पर बोझ बढ़ता है तो वह व्याकुल होकर भगवान के पास जाती है और इसी कारण यहां प्रलय आती है। वैसे पश्चिम अर्थशास्त्री माल्थस भी यही कहता था कि ‘जब आदमी अपनी जनंसख्या पर नियंत्रण नहीं करती तब प्रकृति यह काम स्वयं करती है।’ यह सब माने तो ऐसे भूकंप और सुनामियां तो आती रहेंगी यह एक निश्चिम भविष्यवाणी है। प्रसिद्ध व्यंगकार स्वर्गीय श्री शरद जोशी ने एक व्यंग्य में लिखा था कि ‘हम इसलिये जिंदा हैं क्योंकि किसी को हमें मारने की फुरसत नहीं है। मारने वालों के पास हमसे बड़े लक्ष्य पहले से ही मौजूद है।’
इसी तर्ज पर हम भी यह कह सकते हैं कि धरती बहुत बड़ी है और वह क्रमवार अपनी देह को स्वस्थ कर रही है और जहां हम हैं वहां का अभी नंबर अभी नहीं आया है। कभी तो आयेगा, भले ही उस समय हम उस समय यहां न हों।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

Sunday, January 3, 2010

आशिक माशुका ब्लागर और नववर्ष-हिन्दी हास्य कविता (love couple blogger and new year-hindi hasya kavita)



आशिका और माशुका ने मिलकर

अपने एकल और युगल ब्लाग पर

खूब पाठ लिखे,

कभी सप्ताह भर तो

कभी माह बाद दिखे

साल भर कर ली जैसे तैसे लिखाई।
दोनों अपने एकल ब्लाग पर दिखते थे,

साल के नंबर वन के ब्लागर का

खिताब पाने की दोनों को ललक थी

पर कहीं सामुदायिक ब्लागर पर भी

दाव चल जाये इसलिये

युगल ब्लाग भी लिखते थे,

कभी प्यार तो, कभी व्यापार पर तो,

कभी नारीवाद पर भी की खूब लिखाई।
जैसे तैसे वर्ष निकला

नव वर्ष के पहले दिन ही

सुबह आशिक ब्लागर ने

माशुका के फोन की घंटी बजाई।

नींद से उठी माशुका ने भी ली अंगड़ाई।

उधर से आशिक बोला

‘नव वर्ष की हो बधाई’,

माशुका ने बिना लाग लपेटे के कहा

‘छोड़ो सब यह बेकार की बात

यह तो ब्लाग पर ही लिखना,

अब तो नंबर वन के लिये कोशिश करते दिखना,

बहुत जगह बंटेंगे पुरस्कार

इसलिये तुम मेरा ही नाम आगे करना,

मैंने दूसरे लोगों से भी कहा है

वह भी मेरे लिये वोट जुटायेंगे

लग जाये शायद मेरे हाथ कोई इनाम

जब लोग लुटायेंगे,

वैसे तुम अपने नाम की कोशिश मत करना

क्योंकि हास्य कविताओं के कारण

तुम्हारी छवि अच्छी नहीं है

तुम्हारा मन न खराब हो

इसलिये तुम्हें यह बात नहीं बताई।’
आशिक बोला-

‘अरे, यह क्या चक्कर है

मैंने तुम्हें पास से कभी नहीं देखा

फोटो देखकर ही पहचान बनाई,

अब तुम कैसी कर रही हो चतुराई।

क्या इसी नंबर वन के लिये

तुमने यह इश्क की महिमा रचाई।

मैं लिखता रहा पाठ पर पाठ

तुमने वाह वाह की टिप्पणी सजाई।

अब आया है इनाम का मौका तो

मुझे अपनी औकात बताई।

वैसे तुमने भी क्या लिखा है

सब कूड़े जैसा दिखा है

शुक्र समझो मेरी टिप्पणियों में बसे साहित्य ने

तुम्हारे पाठ की शोभा बढ़ाई।

अब मुझे अपना हरकारा बनने के लिये

कह रहे हो

तुम ही क्यों नहीं मेरा नाम बढ़ाती

करने लगी हो मुझसे नंबर वन की लड़ाई।’
सुनकर माशुका भड़की

‘बंद करो बकवास!

तुमसे अधिक टिप्पणियां तो

मेरे ब्लाग पर आती हैं

तुम्हारी साहित्यक टिप्पणियों पर

मेरी सहेलियों ने मजाक हमेशा उड़ाई।

वैसे तुम गलतफहमी में हो

तुम जैसे कई पागल फिरते हैं अंतर्जाल पर

मैंने सभी पर नज़र लगाई।

एक नहीं सैंकड़ों मेरे नंबर वन के लिये लड़ेंगे

सभी तमाम तरह से कसीदे पढेंगे,

तुम अपना फोन बंद कर दो

भूल जाओ मुझे

तुम्हारे बाद वाले का  भी फोन आयेगा

वही मेरी नैया पार लगायेगा

तुम चाहो तो बन जाओ भाई।’
माशुका ब्लागर ने फोन पटका उधर

 इधर आशिक ब्लागर  आसमान की तरफ

आंखें कर लगभग रोता हुआ बोला

‘हे सर्वशक्तिमान यह क्या किया

इश्क  रचा तो  ठीक

पर नववर्ष की परंपरा क्या बनाई,

जिससे  इश्क में मैंने पाई विदाई।।


 

नोट-यह एक काल्पनिक हास्य कविता मनोरंजन की दृष्टि से लिखी गयी है। इसक किसी घटना या व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है। किसी की कारिस्तानी से मेल हो जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।
 
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

इश्क का खेल, सम्मान की ज़ंग-हास्य कविता (play of lave and war for prize-hindi hasya kavita)

यह पेज
 नये वर्ष के अवसर पर

शहर के नंबर वन

आशिक माशुका के जोड़े को

चुनकर उसे सम्मानित करने की

खबर बड़े जोर से एक महीन पहले ही छाई।

ग्यारह महीने से जो मजे उठा रहे थे

ब्रेिफक्र होकर,  प्यार के मौसम में

सभी की नींद सम्मान ने उड़ाई।

कुछ आशिकों का शक था

अपनी माशुका के साथ इनाम मिलने का,

कुछ माशुकाओं को भी विश्वास नहीं था

अपने जोड़दार के साथ

अपना नाम का फूल शहर में खिलने का,

सभी अपने इश्क के पैगामों में

लिखने वाले संबोधन बदल रहे थे,

जो एक समय में रचाते थे कई प्रसंग

एक  इश्क के व्रत में बहल रहे थे,

प्रविष्टी भरने के अंतिम दिन तक

सभी रच रहे थे

फार्म में भरने के लिये अपने इतिहास,

कुछ गमगीन हो गये तो कुछ करने लगे परिहास,

इश्क करने वाले आशुक बन गये योद्धा,

माशुकायें बन गयीं, संस्कारों की पुरोधा,

दे रहे थे सभी एक दूसरे को नर्ववर्ष की बधाई,

पर अंदर ले रहे थे, जंग के लिये अंगराई।
नये साल में पिछले एक वर्ष के

आशिक माशुका के जोड़े को

इनाम देने के नाम पर चली

इश्क की जंग में 

उथल पुथल से कई दिल टूटे

कहीं माशुका तो कहीं आशिक रूठे,

नहीं रहा कोई रिश्ता स्थाई।
एक दिन प्रतियोगिता के स्थगित

होने की खबर आई।

पता चला युवा आयोजक की पुरानी माशुका ने

अपने नये आशिक के साथ

प्रतियोगिता के लिये अपनी प्रविष्टी दर्ज कराई,

कर ली थी जिसने उसके दुश्मन से सगाई।

नयी माशुका  की एक सहेली को

छोड़ गया था उसका आशिक

उसने भी उसके यहां गुहार लगाई।

नयी माशुका  ने सार्वजनिक रूप से

इस नाटक करने पर कर दी

युवा आयोजक की ठुकाई।

टूट गया वह, उसने बंद कर दिया यह सम्मान

पर शहर में जहां जहां खेला जाता था

इश्क का खेल

सभी जगह जंग के मैदान में नज़र न आई।


नोट-यह एक काल्पनिक हास्य कविता मनोरंजन की दृष्टि से लिखी गयी है। इसक किसी घटना या व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है। किसी की कारिस्तानी से मेल हो जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।
 
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

इस लेखक के समस्त ब्लॉग यहाँ एक जगह प्रस्तुत हैं

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका

दीपक भारतदीप का चिंतन