Saturday, August 17, 2013

सौदे के सच किसी की समझ में नहीं आया-हिंदी शायरी (sach kisee ki samajh mein nahin aaya-hindi shayari or kavita

यूं तो हमने भी उनसे वादा किया था
वफादारी निभाने का
पर उनको यकीन नहीं आया,
लच्छेदार लफ्ज़ों में बहकने के आदी हैं वह
हमारी सीधी सच्ची बातों में भी
उनको बेवफाई के डर ने सताया|
कहें दीपक बापू
इंसानों ने खो दी है
सच सुनने
देखने
छूने और कहने की तमीज,
उनकी लिए वादे तोड़ने
वफादारी को अपनी तरफ
खरीद कर मोड़ने
कीमत के हिसाब से
नीयत जोड़ने
ज़ज्बात बन गए बाज़ार की चीज़,
ज़माने को ले जा रहे हांककर
दिल के सौदागर
दिमाग का इस्तेमाल करना
लोगों को नहीं भाया,
खड़े हैं हम चौराहे पर
बाज़ार में खरीददारों की भीड़ बहुत है
दिल के सौदे का सच समझ सके
ऐसा कोई शख्स नज़र नहीं आया|
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दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप'
ग्वालियर,मध्यप्रदेश

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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