Saturday, September 26, 2015

जिंदगी के पेड़ के लिये-हिन्दी कविता(Zindagi ke ped ke liye-HindiPoem)

दूर के ढोल
सुहावने लगते हैं
दूर ही रहने दो।

लोगों का काम है कहना
तुम चलते रहो
उनको कहने दो।

कहें दीपकबापू अपने इरादे से
पीछे हट जाना
सहज लगता है
फिर ज़माने का बहकाना
महज लगता है
जिंदगी के पेड़ के लिये
अपने अंतर्मन की धारा
अविरल बहने दो।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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Thursday, September 17, 2015

डेंगू की फिक्र नहीं है-हिन्दी कविता(Dengu kifikra nahin hai-HindiPoem)

 डेंगू की खबर से भी
उसके चेहरे पर
फिक्र नही है।

महंगे इलाज की भी
उसके दिमाग में
 फिक्र नहीं है।

दीपकबापूपसीना बहाने वाला
मजदूर जानता है
बीमारी आकर उसे ले जायेगी
जिंदगी की जंग में जीतहार की
 फिक्र नहीं है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Friday, September 11, 2015

दीपक बापू वाणी (DeepakBapuWani)some poems


जोड़ जोड़ कर जग मुआ, दूजा कुुबेर भया न कोय।
कहें दीपक बापू फकीरी जोड़ी, वही सवा सेर होय।।
झूठ के नहीं होते पांव, सच भी न पाये कहीं छांव।
कहें दीपकबापू लालच में इंसान, खेलता अपने दांव।।
मांस खाकर भी जग जिया नहीं, कुंभकर्ण हमेशा सोया।
कहें दीपकबापू खुशी से मरा खायें, तभी पायेंगे हम खोया।।
महंगाई पर हर इंसान रोता, सामानों में भी दिल बोता।
कहें दीपकबापू नकदी का खेल, हार पर ही खत्म होता।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Wednesday, September 2, 2015

दुनियां के मजदूरों समझदार हो जाओ-हिन्दी कविता(duniya ke mazdoor samajhdar ho jao-hindi poem)

दुनियां के मज़दूरों
अब समझदार भी हो जाओ।

करते हैं जो तुम्हें महलों का
स्वामी बनाने का दावा
दौलतमंदों के लिये
करते छलावा
हड़ताल पर मत जाओ।

कहें दीपकबापू हंसिया हथौड़ा
तुम्हारी मजदूरी के हथियार हैं
हुड़दंग का चिन्ह न बनाओे
 दलाल भेड़ों की भीड़ की तरह
तुम्हें चौराहों पर सजाते हैं
उनके बहकावे में न आओ।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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