Monday, January 26, 2015

गणतंत्र का आशय-हिन्दी कविता(gantantantra ka ashyar-hindi kavaita,meaning of republic-hindi poem)



तंत्र जो गण के साथ चले
वही शायद  गणतंत्र है
या जिसके पीछे चले गण
उसे ही माने।

लड़ी जाती लड़ाई
तंत्र से मिले राजस्व के
अपने अपने बंटवारे की
नाम होता जनकल्याण
कभी होता नज़र आता तो माने।

कहें दीपक बापू आय के भाग से
जिन्होंने संतोष पाया,
वह यथास्थितिवादी हो गये,
अप्रसन्न होने वाले
क्रांतिकारी होकर
इतिहास में खो गये,
परिवर्तन के दावे
सच होते तो माने।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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Thursday, January 15, 2015

हिन्दी विरुद्ध हिंग्लिश-हिन्दी कविता(hindi v/s hingish-hindi poem)



अहो
हिन्दी वाक्य में
वह अंग्रेजी के शब्द
इस तरह मिलायेंगे।

विश्व में राष्ट्रभाषा को प्रतिष्ठा
उसके अस्तित्व की पहचान
दाव पर लगाकर दिलायेगे।

कहें दीपक बापू मातृभाषा पर
संदेह करने वाले,
व्याकरण से अनजान है
भले ही उन्होंने
भाषा के सेवा के नाम पर
बंगले बना डाले,
ताक रहे विदेशों से
सम्मान की आशा से
अंग्रेजी में बोलकर,
कभी अपनी वाणी से
नहीं बोलते हिन्दी में तोलकर,
खायेंगे मातृभाषा रोटी
हिंग्लिश का भ्रम दिखायेंगे।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
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Monday, January 5, 2015

चाहतों का राह पर-हिन्दी कविता(chahton ki rah par-hindi poem)



सिक्कों की खनक
मौज की भनक
मदहोशी की जनक
चाहत
इंसान को मार्ग से
भटका देती हैं।

एक पूरी होती नहीं
दूसरी दिल लटका देती है।

कहें दीपक बापू चाहत की राह पर
चलते रहते जिंदगी भर
फिर भी कुछ करने की
प्यास  रह जाती है,
जिस सुख के लिये
करते संघर्ष
उसकी आस रह जाती है,
समेटते रहते सामान
दोनों हाथ से हमेशा
यह अलग बात है
धागे खोलते हुए
हर उंगली झटका देती है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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