Saturday, June 25, 2011

फरिश्तों की पहरेदारी में शैतान-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (farisheon ki paharedari mein shaitan)

फरिश्ते मशगूल हो गये है
जी-हुजूरी कराने में
इसलिये लोग जान बचाने के लिये
शैतानों को सलाम बजाते है।
कौन बजाये बड़ी दरबार का दरवाजा
बाहर खड़े दलालों से ही
कमीशन पर काम हो जाते हैं।
दुनियां के दस्तूर बदल गये हैं
फरिश्तों का वजूद बचाने के लिये भी
शैतान उनके महल पर पहरेदार बन जाते हैं।
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कौन बिना कसूर के जिंदा है यहां
किसकी शिकायत करे कौन,
अच्छे बुरे की पहचान पर
वैसे भी सभी हो गयी अक्ल मौन,
फरिश्तों की दलाली में
लग गये हैं शैतान
उनसे लड़ेगा कौन।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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