Saturday, March 27, 2010

खबरें और यकीन-हिन्दी व्यंग्य कविता (news and faith-hindi satire poem)

खबरों से यकीन यूं उठ गया है
क्योंकि वह शब्द बदल सामने आती रहीं।
कहीं चेहरे बदले
तो कहीं चालें
पर चरित्र पुराना ही दिखाती रहीं।
नतीजे पर नहीं पहुंचा कोई मुद्दा
पर खबरें बरसों तक चलती रहीं,
कहीं बाप की जगह बेटे का नाम लिखा जाने लगा
कहीं बेटियों के नाम भरती रहीं,
कभी कभी प्रायोजक बदलकर भी
खबरे सामने आती रहीं।
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मुद्दा सामने पड़ा था,
पर खबरची उसे छोड़ने पर अड़ा था।
क्योंकि कोई प्रायोजक पास नहीं खड़ा था।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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माउस, रिमोट और मोबाइल-हिन्दी व्यंग्य (mouse, remote and mobile-hindi satire)

इधर भारत में चल रही एक क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता की वजह से अपने ब्लाग पिटने लगे हैं। यह बुरी स्थिति है। क्रिकेट के एक दिवसीय या टेस्ट मैच हैं तो उसी दिन ही ब्लाग पिटते हैं जिस दिन मैच होता है पर क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता में रोज मैच होने की वजह से यह स्थिति आ जाती है कि ब्लाग की पाठक संख्या में 40 से 50 प्रतिशत गिरावट दर्ज होती है। जब भारत का कोई मैच होता है तब यह गिरावट दुःखदायी नहीं लगती क्योंकि लगता है कि बाज़ार देश प्रेम बेच रहा है और अगर कुछ लोग उसमें फंस जाते हैं तो कोई बात नहीं। सभी तो ज्ञानी ध्यानी हो नहीं सकते कि इस बात को समझें कि देशप्रेम भी अब बाजार के सौदागरों के लिये बेचने वाली चीज हो गयी है। मगर यह क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता के मैचों में तो बाजार के सौदागरों पर ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया जा सकता। वह तो शुद्ध रूप से इसे सर्कस की तरह चला रहे हैं फिर भी लोग इसमें इतने व्यस्त हो गये हैं तब लगता है कि वाकई यहां रचनात्मक कार्य करने वालों के लिये कोई जगह नहंी है पर जब बची हुई पाठक संख्या को देखते हैं तो इस बात का दर्द कम हो जाता है और यह यह सोचकर संतोष कर लेते हैं कि पूरा देश अज्ञान के अंधेरे में नहीं भटक रहा। सबसे अधिक अफसोस इस बात का है कि इस देश के लोगों का चालीस प्रतिशत से अधिक वर्ग बाज़ार और उसके द्वारा स्थापित प्रचार तंत्र के प्रचार की जद में है-हां, ब्लाग पर इतनी ही पाठक संख्या की गिरावट दर्ज की गयी है। खुशी इस बात की है कि साठ प्रतिशत भाग अभी भी स्वतंत्र रूप से सोचता है और वह क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता के जाल में नहीं फंसा।
दरअसल लोग हमेशा मनोरंजन चाहते हैं और वह जो उन्हें बैठे ठाले आंखों के सामने प्रकट हो जाये या उनकी उंगली के इशारे के आदेश पर ही सामने दृश्य चले। यहां हर आदमी उंगलियों के इशारे सभी को नचाने का ख्वाब देखता है और ऐसे में उसे रिमोट, माउस तथा मोबाइल जैसे साधन खिलौने की तरह मिल गये हैं। इन पर उंगलियां दबाने से जो दबाव दिमाग पर पड़ता है और उससे शरीर पर उसका क्या दुष्प्रभाव होता है यह अब स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताने लगे हैं। एक लड़की रोज अनेक एस. एम. एस. संदेश भेजती थी और नतीजा यह रहा कि उसकी उंगलियों ने काम करना बंद कर दिया।
इस लेखक ने कई बार देखा है कि मोबाइल, रिमोट तथा माउस पर उंगलियों दबाने से दिमाग पर काफी दबाव पड़ता है तब सोचते हैं कि पता नहीं कैसे लोग इससे इतना चिपके रहते हैं। लोग टीवी पर रिमोट से कार्यक्रम बदल कर खुश होते हैं कि आसानी से मनोंरजन मिल रहा है। कंप्यूटर पर भी जो बैठते हैं वह केवल माउस से ही काम चलाते हैं। इधर बड़े बड़े चैनल भी लोगों को एस. एम. एस. करने के लिये प्रेरित करते रहते हैं। लोग हैं कि उसमें व्यस्त हो जाते हैं। अगर हम यह कहें कि लोग एक तरह से अपनी उंगलियों के द्वारा ही अपने शरीर से खिलवाड़ कर रहे हैं तो गलत नहीं होगा। यह हमारा नहीं बल्कि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है।
एक सवाल यह है कि आखिर लोग क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता को क्यों देख रहे हैं? दरअसल मनोरंजन के लिये उत्सुक लोगों के लिये बाजार के सौदागरों तथा उनके प्रचार प्रबंधकों ने अधिक अवसर छोड़े ही नहीं हैं। जब भारत में निजी चैनलों का प्रवेश हो रहा था उसी समय ही दूरदर्शन पर कार्यक्रमों का स्तर एकदम गिर गया था। हालत यह हो गयी थी कि शनिवार और रविवार को भी कार्यक्रम अच्छे नहीं दिखते थे। उस समय मंडी हाउस क्या कर रहा था, कुछ पता नहीं जबकि वह देश मनोरंजन कार्यक्रमों के निर्धारण के लिये के लिये एक केंद्र बिंदु था-प्रसंगवश उसके मुखिया हिन्दी भाषा के एक विद्वान ही थे। नतीजा यह रहा कि निजी टीवी चैनल छा गये। इन चैनलों ने कार्यक्रम अच्छे प्रस्तुत किये पर जल्द ही उनकी कमाई जरूरत से ज्यादा हो गयी। अब बाजार के बंधक हो गये हैं। इसलिये वह बाजार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों को जनता के समक्ष लाने के लिये अपने कार्यक्रमों का स्तर गिरा रहे हैं। मनोरंजन और समाचार चैनलों में कोई अधिक अंतर नहीं  रहा है। मनोरंजन चैनलों के हास्य कार्यक्रमों में भी क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता का नाम किसी न किसी रूप में लिया जाता है ताकि उसके दर्शक जरूर याद रखें। मतलब वह मनोंरजन चैनल जो कि क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता का सीधा प्रसारण नहंी करते वह भी इस बात के लिये तैयार रहते हैं कि उनका दर्शक अगर वह मैच नहीं देखता तो जाकर देखे। यह कोई त्याग नहीं बल्कि बाजार और प्रचार तंत्र के अटूट संबंधों का प्रमाण है।
लोगों के पास इंटरनेट है पर उन्होंने उसे मनोरंजन के साधन के रूप में लिया है इसलिये हिन्दी के पाठक कम ही मिलते हैं पर जब क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता चलती है तब उनमें संख्या कम तो हो ही जाती है। लोग माउस से कष्ट उठाने से बच जाते हैं क्योंकि यह काम वह टीवी पर रिमोट के जरिये करते हैं। इस तरह रिमोट, माउस और मोबाइल के बीच में भारतीय समाज अपनी उंगलियां फंसाए हुए है। इन तीनों का अविष्कार अमेरिका की देन है जिसके स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार अपनी उंगलियां बचाने के लिये सुझाव दे रहे हैं कि ऐसा काम करो जिससे दोनों हाथ सक्रिय रहे। यह काम तो केवल ब्लाग लेखन से ही हो सकता है। गनीमत हम यही कर रहे हैं अलबत्ता अनेक बार दूसरी वेब साईटें देखने के लिये माउस का सहारा लेते हैं पर अब सोच रहे है कि गूगल के फायरफाक्स के जरिये दोनों हाथों की सक्रियता से ही यह काम करें और अधिक से अधिक टेब और बैक स्पेस से काम करें। टीवी और क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता के मैचों से इतना उकता गये हैं कि इंटरनेट के अलावा कोई दूसरा साधन हमारे समझ में ही नहीं आता। यह तो अपने गुरुजनों के आभारी है कि उन्होंने हमारे अंदर लेखक को स्थापित कर दिया जिससे यहां लिखने का मजा लेते हैं वरना तो बेकार में उंगलियों के सहारे माउस पर नाच रहे होते।
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नेपाल का हिन्दू राष्ट्र के रूप में न रहना-विशेष हिन्दी लेख (nepal, india and hindu nasoinlism-special hindi article)

नेपाल कभी हिन्दू राष्ट्र था जिसे अब धर्मनिरपेक्ष घोषित किया गया है। वहां की निवासिनी और भारतीय हिन्दी फिल्मों की अभिनेत्री मनीक्षा कोइराला ने अब जाकर इसकी आलोचना की है। उनका मानना है कि नेपाल को एक हिन्दू राष्ट्र ही होना चाहिए था। दरअसल नेपाल की यह स्थिति इसलिये बनी क्योंकि वह राजशाही का पतन हो गया। वहां के राजा को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता था या हम कहें कि उनको ऐसी प्रतिष्ठा दी जाती थी। दूसरी बात यह है कि नेपाल के हिन्दू राष्ट्र के पतन को एक व्यापक रूप में देखा जाना चाहिए न कि इसके केवल सैद्धान्तिक स्वरूप पर नारे लगाकर भ्रम फैलाना चाहिये। इसलिये यह जरूरी है कि हम हिन्दुत्व की मूल अवधारणाओं को समझें।
वैसे हिन्दुत्व कोई विचाराधारा नहीं है और न ही यह कोई नारा है। अगर हम थोड़ा विस्तार से देखें तो हिन्दुत्व दूसरे रूप में प्राकृतिक रूप से मनुष्य को जीने की शिक्षा देने वाला एक समग्र दर्शन है। अंग्रेजों और मुगलों ने इसी हिन्दुत्व को कुचलते हुए भारतवर्ष में राज्य किया किया। अनेक डकैत और खलासी यहां आकर राजा या बादशाह बन गये। अंग्रेजों ने तो अपनी ऐसी शिक्षा पद्धति का निर्माण किया जिससे कि यहां का आदमी उनके जाने के बाद भी उनकी गुलामी कर रहा है। देश के शिक्षित युवक युवतियां इस बात के लिये बेताब रहते हैं कि कब उनको अवसर मिले और अमेरिका या ब्रिटेन में जाकर वहां के निवासियों की गुलामी का अवसर मिले।
मुगलों और अंग्रेजों ने यहां के उच्च वर्ग में शासक बनने की ऐसी प्रवृत्ति जगा दी है कि वह गुलामी को ही शासन समझने लगे हैं। अक्सर समाचार पत्र पत्रिकाओं में ऐसी खबरे आती हैं कि अमुक भारतवंशी को नोबल मिला या अमुक को अमेरिका का यह पुरस्कार मिला। अमुक व्यक्ति अमेरिका की वैज्ञानिक संस्था में यह काम कर रहा है-ऐसी उपलब्धियों को यहां प्रचार कर यह साबित किया जाता है कि यहां एक तरह से नकारा और अज्ञानी लोग रहते हैं। सीधी भाषा में बात कहें तो कि अगर आप बाहर अपनी सिद्धि दिखायें तभी यहां आपको सिद्ध माना जायेगा। उससे भी बड़ी बात यह है कि आप अंग्रेजी में लिख या बोलकर विदेशियों को प्रभावित करें तभी आपकी योग्यता की प्रमाणिकता यहां स्वीकार की जायेगी। नतीजा यह है कि यहां का हर प्रतिभाशाली आदमी यह सोचकर विदेश का मुंह ताकता है कि वहां के प्रमाणपत्र के बिना अपने देश में नाम और नामा तो मिल ही नहीं सकता।
मुगलों ने यहां के लोगों की सोच को कुंद किया तो अंग्रेज अक्ल ही उठाकर ले गये। परिणाम यह हुआ कि समाज का मार्ग दर्शन करने का जिम्मा ढोने वाला बौद्धिक वर्ग विदेशी विचाराधाराओं के आधार पर यहां पहले अपना आधार बनाकर फिर समाज को समझाना चाहता है। कहने को विदेशी विचारधाराओं की भी ढेर सारी किताबें हैं पर मनुष्य को एकदम बेवकूफ मानकर लिखी गयी हैं। उनके रचयिताओं की नज़र में मनुष्य को सभ्य जीवन बिताने के लिये ऐसे ही सिखाने की जरूरत है जैसे पालतु कुत्ते या बिल्ली को मालिक सिखाता है। मनुष्य में मनुष्य होने के कारण कुछ गुण स्वाभाविक रूप से होते हैं और उसे अनेक बातें सिखाने की जरूरत नहीं है। जैसे कि अहिंसा, परोपकार, प्रेम तथा चिंतन करना मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियां हैं। कोई भी मनुष्य मुट्ठी भींचकर अधिक देर तक नहीं बैठ सकता। उसे वह खोलनी ही पड़ती हैं।
चार साल का बच्चा घर के बाहर खड़ा है। कोई पथिक उससे पीने के लिये पानी मांगता है। वह बिना किसी सोच के उसे अपने घर के अंदर से पानी लाकर देता है। उस बच्चे ने न तो को पवित्र पुस्तक पढ़ी है और न ही उसे किसी ने सिखाया है कि ‘प्यासे को पानी पिलाना चाहिये’ फिर भी वह करता है। कहने का अभिप्राय यह है कि मनुष्य अपनी सहज प्रवृत्तियों की वजह से सज्जन तो रहता ही है पर समाज का एक वर्ग उसकी जेब से पैसा निकालने या उससे सस्ता श्रम कराने के लिये उसे असहज बनाने का हर समय प्रयास करता है। विदेशी विचारधाराओं तथा बाजार से मनुष्य को काल्पनिक स्वप्न तथा सुख दिखकार उसे असहज बनाने का हमारे देश के लोगों ने ही किया है। इन्ही विचाराधाराओं में एक है साम्यवाद।
इसी साम्यवादी की प्रतिलिपि है समाजवाद। इनकी छत्रछाया में ही बुद्धिजीवियों के भी दो वर्ग बने हैं-जनवादी तथा प्रगतिशील। नेपाल को साम्यवादियों ने अपने लपेटे में लिया और उसका हिन्दुत्व का स्वरूप नष्ट कर दिया। सारी दुनियां को सुखी बनाने का ख्वाब दिखाने वाली साम्यवादी और समाजवादी विचारधाराओं में मूल में क्या है, इस पर अधिक लिखना बेकार है पर इनकी राह पर चले समाज सेवकों और बुद्धिजीवियों ने अपने अलावा किसी को खुश रखने का प्रयास नहीं किया। सारी दुनियां में एक जैसे लोग हो कैसे सकते हैं जब प्रकृत्ति ने उनको एक जैसा नहीं बनाया जबकि कथित विकासवादी बुद्धिजीवी ऐसे ही सपने बेचते हैं।
अब बात करें हम हिन्दुत्व की। हिन्दुत्व वादी समाज सेवक और बुद्धिजीवी भी बातें खूब करते हैं पर उनकी कार्य और विचार शैली जनवादियों और प्रगतिशीलों से उधार ली गयी लगती है। हिन्दुत्व को विचाराधारा बताते हुए वह भी उनकी तरह नारे गढ़ने लगते हैं। नेपाल में हिन्दुत्व के पतन के लिये साम्यवाद या जनवाद पर दोषारोपण करने के पहले इस बात भी विचार करना चाहिये कि वहां के हिन्दू समाज की बहुलता होते हुए भी ऐसा क्यों हुआ?
हिन्दुत्व एक प्राकृतिक विचाराधारा है। हिन्दू दर्शन समाज के हर वर्ग को अपनी जिम्मेदारी बताता है। सबसे अधिक जिम्मेदारी श्रेष्ठ वर्ग पर आती है। यह जिम्मेदारी उसे उठाना भी चाहिए क्योंकि समाज की सुरक्षा से ही उसकी सुरक्षा अधिक होती है। इसके लिये यह जरूरी है कि वह योग्य बुद्धिजीवियों को संरक्षण देने के साथ ही गरीब और मजदूर वर्ग का पालन करे। यही कारण है कि हमारे यहां दान को महत्व दिया गया है। श्रीमद्भागवत गीता में अकुशल श्रम को हेय समझना तामस बुद्धि का प्रमाण माना गया है।
मगर हुआ क्या? हिन्दू समाज के शिखर पुरुषों ने विदेशियों की संगत करते हुए मान लिया कि समाज कल्याण तो केवल राज्य का विषय है। यहीं से शुरु होती है हिन्दुत्व के पतन की कहानी जिसका नेपाल एक प्रतीक बना। आर्थिक शिखर पुरुषों ने अपना पूरा ध्यान धन संचय पर केंद्रित किया फिर अपनी सुरक्षा के लिये अपराधियों का भी महिमा मंडन किया। भारत के अनेक अपराधी नेपाल के रास्ते अपना काम चलाते रहे। वहां गैर हिन्दुओं ने मध्य एशिया के देशों के सहारे अपना शक्ति बढ़ा ली। फिर चीन उनका संरक्षक बना। यहां एक बात याद रखने लायक है कि अनेक अमेरिकी मानते हैं कि चीन के विकास में अपराध से कमाये पैसे का बड़ा योगदान है।
भारत के शिखर पुरुष अगर नेपाल पर ध्यान देते तो शायद ऐसा नहीं होता पर जिस तरह अपने देश में भी अपराधियों का महिमामंडन देखा जाता है उससे देखते हुए यह आशा करना ही बेकार है। सबसे बड़ी बात यह है कि नेपाल की आम जनता ने ही आखिर ऐसी बेरुखी क्यों दिखाई? तय बात है कि हिन्दुत्व की विचारधारा मानने वालों से उसको कोई आसरा नही मिला होगा। नेपाल और भारत के हिन्दुत्ववादी आर्थिक शिखर पुरुष दोनों ही देशों के समाजों को विचारधारा के अनुसार चलाते तो शायद ऐसा नहीं होता। हिन्दुत्व एक विचाराधारा नहीं है बल्कि एक दर्शन है। उसके अनुसार धनी, बुद्धिमान और शक्तिशाली वर्ग के लोगों को प्रत्यक्ष रूप से निम्न वर्ग का संरक्षण करना चाहिये। कुशल और अकुशल श्रम को समान दृष्टि से देखना चाहिये पर पाश्चात्य सभ्यता को ओढ़ चुका समाज यह नहीं समझता। यहां तो सभी अंग्रेजों जैसे साहब बनना चाहते हैं। जो गरीब या मजदूर तबका है उसे तो कीड़े मकौड़ों की तरह समझा जाता है। इस बात को भुला दिया गया है कि धर्म की रक्षा यही गरीब और मजदूर वर्ग अपने खून और पसीने से लड़कर समाज रक्षा करता है।
हमारे देश में कई ऐसे संगठन हैं जो हिन्दुत्व की विचारधारा अपनाते हुए अब गरीबों और मजदूरों के संरक्षण कर रहे हैं। उनको चाहिये कि वह अपने कार्य का विस्तार करें और भारत से बाहर भी अपनी भूमिका निभायें पर वह केवल नारे लगाने तक नहीं रहना चाहिये। इन हिन्दू संगठनों को परिणामों में शीघ्रता की आशा न करते हुए दूरदृष्टि से अपने कार्यक्रम बनाना चाहिये।
नेपाल का हिन्दू राष्ट्र न रहना इतनी बड़ी समस्या नहीं है जितनी परेशानी इस बात पर होने वाली है कि वह एक अप्राकृतिक विचाराधारा की तरफ बढ़ गया है जो वहां की संस्कृति और धर्म के वैसे ही नष्ट कर डालेगी जैसे कि चीन में किया है। भारत और नेपाल के आपस में जैसे घनिष्ट संबंध हैं उसे देखते हुए यहां के आर्थिक, सामाजिक तथा बौद्धिक शिखर पुरुषों को उस पर ध्यान देना चाहिये।
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Friday, March 26, 2010

अपनी रूह से ही जिंदगी की रोशनी क्यों नहीं जलाते हो-हिन्दी शायरी (rooh aur zindagi ki roshni-hindi shayri)

फरिश्तों की दरबार में
क्यों हाजिरी लगाने जाते हो,
हो सकता है वहां रोज सुबह फर्श धोया जाता हो
रंगीन रात के जश्न की धूल धोने के लिये
तुम सफेद चेहरों की
काली नीयत क्यों नहीं समझ पाते हो।
पत्थर के बुतों की तरह खड़े हैं फरिश्ते वहां
सांसें लेने के लिये नहीं है, दिल की इबादत जहां
अपने दिल और दिमाग की
जगह साफ कर
फरिश्तों की दरबार अपने अंदर ही
क्यों नहीं सजाते हो।
अपनी रूह से ही
जिंदगी की रोशनी क्यों नहीं जलाते हो।
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अपनी ही सोच से शिकायत-हिन्दी शायरी

उनकी प्यार भरी निगाहें
देखकर हमने समझा कि
नज़र हम पर इनायत है।
मतलब निकलते ही
उन्होंने मुंह फेरा
तब उनकी नीयत का पता चला
फिर भी नहीं उनसे गिला
उनके इरादों की नावाकफियत पर
अपनी ही सोच से शिकायत है।
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आखों से अब अश्क नहीं बहते
क्योंकि दर्द का दरिया सूख गया है,
जहां दिल लगाया
दिल्लगी समझ जमाने ने मुंह फेरा
अब बयां नहीं करते किसी से अपने हाल
अपनी ही हकीकतों से
हमारी जुबां का रिश्ता टूट गया है।
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Saturday, March 13, 2010

साफ सुथरा इंसान-हिन्दी क्षणिकायें (saf suthara insan-hindi short poem)

आपस में जाम टकराते हुए लोग
नैतिकता की बात करने लग जाते हैं,
फिर सुनाते हैं अपनी कमाई के नुस्खे
जैसे दो नंबर की कमाई एक नंबर की हो
सीना फुलाकर उसकी कहानी सुनाते है।।

बहुत अच्छा लगता है
आदर्श और नैतिकता की बात करते हुए
बशर्त है आदमी स्वयं से छिप सकता हो।
वही कहलाता है साफ सुथरा इंसान
जो दूसरों पर इल्जाम लगाने में
कभी देर नहीं करता
पर बात अगर अपने पर आ जाये तो
जमाने का जिम्मेदार बताते हुए
अपना कसूर अपनी नज़र बचा सकता हो।

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नाम और रूप का चक्कर-हिन्दी हास्य व्यंग्य कथा(shaktiman aur shaitan-hindi satire comic story)

सर्वशक्तिमान को यह अहसास होने लगा था कि संसार में उनका नाम स्मरण कम होता जा रहा था। दरअसल अदृश्य सर्वशक्तिमान सारे संसार पर अनूभूति से ही नियंत्रण करते रहे थे और लोगों की आवाज तभी उन तक पहुंचती थी जब उनके हृदय से निकली हो। अपनी अनुभूति के परीक्षण के लिये उन्होंने वायु को बुलाया और उससे पूछा-’यह बताओ, मनुष्यों ने मेरे नाम का स्मरण करना क्या बंद कर दिया है या तुमने ही उनको मेरे पास तक लाने का काम छोड़ दिया है। क्योंकि मुझे लग रहा है कि मेरा नाम जपने वाले भक्त कम हो रहे हैं। उनके स्वरों की अनुभूति अब क्षीण होती जा रही है।
वायु ने कहा-‘मेरा काम अनवरत चल रहा है। बाकी क्या मामला है यह आप जाने।’
सर्वशक्तिमान ने सूर्य को बुलाया। उसका भी यही जवाब है। उसके बाद सर्वशक्तिमान ने प्रथ्वी, चंद्रमा, जलदेवता और आकाश को बुलाया। सभी ने यही जवाब दिया। अब तो सर्वशक्तिमान हैरान रह गये। तभी अपनी अनूभूति की शक्ति से उनको लगा कि कोई एक आत्मा उनके पास बैठकर ऊंघ रहा है-उसके ऊंघने से तरीके से पता लगा कि वह अभी अभी मनुष्य देह त्याग कर आया है। उन्हें हैरानी हुई तब वह नाराज होकर उससे बोले-‘अरे, तूने कौनसा ऐसा योग कर लिया है कि मेरे दरबार तक पहुंच गया है। जहां तक मेरी अनुभूतियों की जानकारी है वहां ऐसा कोई मनुष्य हजारों साल से नहीं हुआ जिसने कोई योग वगैरह किया हो और मेरे तक इस तरह चला आये।
उस ऊंघते हुए आत्मा ने कहा-‘मुझे मालुम नहीं है कि यहां तक कैसे आया? वैसे भी आप तक आना ही कौन चाहता है। मैं भी माया के चक्कर में था पर वह भाग्य में आपने नहीं लिखी थी-ऐसा मुझे उस शैतान ने बताया जिसने अपनी मजदूरी का दाम बढ़ाने की बात पर ठेकेदार से झगड़ा करवा कर मुझे मरवा डाला। वही यहां तक छोड़ गया है।’
अपने प्रतिद्वंद्वी का नाम सुनकर परमात्मा चकित रह गये। फिर गुस्सा होकर बोले-‘निकल यहां से! शैतान की इतनी हिम्मत कि अब मुझ तक लोगों को पहुंचाने लगा है। वह भी ऐसे आदमी को जिसने मेरा नाम कभी लिया नहीं।’
उस आत्मा ने कहा-लिया था न! मरते समय लिया था दरअसल मुंह से निकल गया था। यह उस शैतान की कारिस्तानी या मेरा दुर्भाग्य कह सकते हैं। शैतान ने मुझे पकड़ा और बताया सर्वशक्तिमान कहना है कि जो मेरा नाम आखिर में लेता है वह मुझे प्राप्त होता है। चल तुझे वहां छोड़ आता हूं। कहने लगा कि स्वर्ग है यहां पर! मुझे तो कुछ भी नज़र नहीं आ रहा। न यहां टीवी है और न ही फ्रिज है और न ही यहां कोई कार वगैरह चलती दिख रही है। सबसे बड़ी बात यह कि वह शैतान कितना सुंदर था और एक आप हो कि दिख ही नहीं रहे।’
शैतान होने के सुंदर होने की बात सुनकर सर्वशक्तिमान के कान फड़कने लगे वह बुदबुदाये-‘यह शैतान सुंदर कब से हो गया।’
उन्होंने तत्काल अपना चमत्कारी चश्मा पहना जिससे उनको अपनी पूर्ण देह प्राप्त हुई। वह आत्मा खुश हो गया और बोला-‘अरे, आओ शैतान महाराज! यह कहां नरक में छोड़ गये।’
सर्वशक्तिमान नाराज होकर बोले-‘कमबख्त! मैं तुझे शैतान नज़र आ रहा हूं। वह तो काला कलूटा है। मैं तो स्वयं सर्वशक्तिमान हूं।’
वह आत्मा बोला-‘क्या बात करते हो? अभी अभी तो मुझे वहां से ले आये।’
सर्वशक्तिमान के समझ में आ गया। उन्होंने आत्मा को वहां से धक्का दिया तो वह आत्माबोला-‘आप ऐसा क्यों कर रहे हो।’
सर्वशक्तिमान ने कहा-‘तूने धरती से विदा होते समय मेरा नाम लिया तो यहां आ गया और अब शैतान का नाम लिया तो वहीं जा।’
वह आत्मा खुश होकर वहां से जमीन पर चला आया। इधर सर्वशक्तिमान ने हुंकार भरी और शैतान को ललकारा। वह भी प्रकट हो गया और बोला-‘क्या बात है? मैं नीचे बिजी था और तुमने मुझे यहां बुला लिया।’
उसका नया स्वरूप देखकर सर्वशक्तिमान चकित रहे गये और उससे बोले-कमबख्त! तेरी इतनी हिम्मत तू मेरा रूप धारण कर घूम रहा है।’
शैतान हंसा और बोला-हमेशा ही बिना भौतिक रूप के यहां वहां पड़े रहते हो। न तो सुगंध ग्रहण करते हो न किसी चीज का स्पर्श करते हो। न सुनते हो न कुछ कहते हो। केवल अनुभूतियों के सहारे कब तक मुझसे लड़ोगे। अरे, मुझे यह रूप धारण किये सदियां बीत गयी। तुम्हें होश अब आ रहा है। एक आत्मा पहुंचाया था उसे भी यहां से निकाल दिया।’
सर्वशक्मिान ने कहा-‘पर यह तुमने मेरे रूप को धारण कैसे और क्यों किया? मैंने तुम्हें कभी इतना सक्षम नहीं बनाया।’
शैतान ने कहा-‘क्यों अक्ल तो है न मेरे पास! तुम्हारे ज्ञान को मैंने ग्रहण कर लिया जिसमें तुमने बताया कि जिसका नाम लोगे वैसे ही हो जाओगे। मैं तुम्हारा नाम लेता रहा। उसका मतलब तुम्हारी भक्ति करना नहीं बल्कि तुम्हारे जैसा रूप प्राप्त करना था। सो मिल गया। तुम तो यही पड़े रहते हो और तुम्हारी पत्थर की मूर्तियां और पूजागृह नीचे बहुत खड़े हैं। सभी में मेरा प्रवेश होता है। दूसरा यह कि मैं क्रिकेट, फिल्म तथा तुम्हारे सत्संगों में सुंदर रूप लेकर उपस्थित रहता हूं। अपना रूप बदला है नीयत नहीं। लोग मेरा चेहरा देखकर इतना अभिभूत होते है कि मुझे ही सर्वशक्तिमान मान बैठते हैं। मेरे अनेक सुंदर चेहरों की तो फोटो भी बन जाती है। फिर तुम जानते हो कि माया नाम की सुंदरी जिसे तुमने कभी स्वीकार नहीं किया मेरी सेवा में रहती है। तुम्हें यह सुनकर दुःख तो होगा कि काम मैं करवाता हूं बदनामी में नाम तुम्हारा ही जुड़ता है। जो लोग तुम्हें नहीं मानते वह तो नाम भी नहीं लेते पर जो लेते हैं वह भी यही कहते हैं कि ‘देखो, सर्वशक्तिमान के नाम पर क्या क्या पाप हो रहा है।’
शैतान बोलता गया और सर्वशक्तिमान चुप रहे। आखिर शैतान बोला’-‘सुन लिया सच! अब में जाऊं। मेरे भक्त इंतजार कर रहे होंगे।’
सर्वशक्तिमान ने हैरानी से पूछा-‘तुम्हारे भक्त भी हैं संसार में!
शैतान सीना फुला कर बोला-‘न! सब तुम्हारे हैं! मैं तो उन्हें दिखता हूं और तुम्हारे नाम से वह मुझे पूजते हैं। तो मेरे ही भक्त हुए न!’
शैतान चला गया और सर्वशक्तिमान ने अपना चमत्कारी चश्मा उतार दिया।

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क्रिकेट और फिल्म का घालमेल-हिन्दी हास्य कविता (combination of cricket and film-hind comic poem)

आशिक जूझ रहा था
क्रिकेट खिलाड़ी बनने के लिये
तो माशुका भी खड़ी थी
फिल्म अभिनेत्री बनने की पंक्ति में
कई उसने साक्षात्कार भी दिये।
बढ़ते जा रहे थे दोनों के कदम
इश्क के साथ
अपने लक्ष्य की तरफ भी सफलता के लिये।
पर आशिक की चिंतायें बढ़ रही थी
रौशन करना चाहता था वह अब
अपने घर में ही इश्क के दिए।
वह बोला माशुका से
‘अब तो मैं नामी खिलाड़ी बनने जा रहा हूं,
अपने रनों और विकेटों की बरसात में नहा रहा हूं,
पर डरता हूं
तुम्हारे और मेरे इश्क का क्या होगा
कहीं बिछड़ न जाये,ं
आओ अपना घर बसायें,
अपने अमर प्रेम के लिये।’
सुनकर बोली माशुका
‘क्यों घबड़ाते हो,
मैं भी सैट पर नृत्य करती हूं
जब तुम मैदान में रन बनाते होे,
हमारा बिछड़ना अब संभव नहीं,
फिल्म और क्रिकेट का
घालमेल हो गया है हर कहीं,
जब तुम नामी खिलाड़ी हो जाओगे,
मुझे भी बड़ी अभिनेत्री की तरह पाओगे,
कभी न कभी तुम्हारी भी लगेगी नीलाम बोली,
कोई टीम मैं भी खरीदूंगी
जिसमें समायेगी तुम्हारी भी टोली,
वैसे क्या रखा है दूल्हे की तरह बिकने में,
मजा है बिकाऊ क्रिकेट खिलाड़ी दिखने में,
दहेज का शब्द हो गया है बदनाम,
नीलामी में दूंगी तुम्हें ढेर सारे इनाम,
माल तो अपने ही घर आयेगा,
हर कोई देखकर जल जायेगा,
इश्क बाजी में कीर्तिमान बनाकर रख देंगे
आने वाली पीढ़ी के लिये।
लोग गायेंगे इश्क के साथ हमारी
दौलत के भी गीत,
नहीं देखी होगी किसी ने ऐसी प्रीत,
अभी घर संसार बनाकर
गुमनामी के अंधेरे में खोकर जिये
तो फिर क्या खाक जिये।’

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Monday, March 8, 2010

साधु और शैतान-हिन्दी हास्य कविता (sadhu aur shaitan-hindi comic poem)

गुरुजी ने अपने शिष्य को
उसके घर पहुंचने का संदेश भिजवाया,
तब वह बहुत घबड़ाया
अपनी पत्नी, बेटी और बहु से बोला
‘अरे भई,
बड़ी मुद्दत बाद वह वक्त आया
जब मेरे गुरुजी ने मेरे शहर आकर
घर पहुंचने का विचार बताया,
सब तैयारी करो,
स्वागत में कोई कमी न रह जाये,
इतने बड़े शिखर पर पहुंचा
उनकी कृपा से ढेर सारे फल पाये,
अब गुरु दक्षिणी चुकाने का समय आया।’
सुनकर बहु बोली
’लगता है ससुर जी आप न अखबार पढ़ते
न ही टीवी अच्छी तरह देखते,
आजकल के गुरु हो गये ऐसे
जो अपने ही शिष्यों के घरों की
महिलाओं पर कीचड़ फैंकते,
तौबा करिये,
बाहर जाकर ही गुरु दक्षिणा भरिये,
जवानी होती दीवानी,
बुढ़ापे में आदमी हो गुरु, हो जाता है रोमानी,
गेरुऐ पहने या सफेद कपड़े,
गुरुओं के चर्चित हो रहे लफड़े,
शैतान से बच जाते हैं क्योंकि
उससे बरतते पहले ही सुरक्षा
फिर वह पहचाना जाता है,
जरूरत है साधु से बचने की जो
शैतानी नीयत से आता है,
ऐसा मेरे पिता ने बताया।’

बहु के समर्थन में सास और
ननद ने भी अपना सिर हिलाया
तब ससुर बोले
‘चलो बाहर ही जाकर
उनके दर्शन करके आता हूं
पर तुम्हारी एकता देखकर सोचता हूं कि
किसे धन्यवाद दूं
साधु या शैतान को
किसने सास बहु और ननद-भाभी को
किसी विषय पर सहमत बनाया।’
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रात के पहर में-हिन्दी व्यंग्य कविता (raat ke pahah men-hindi satire poem)

जन्म लिया हिन्दी में
पढ़े लिखे अंग्रेजी में
आजाद रहे नाम के
गुलामी सिखाती रही आधुनिक शिक्षा।
अब कटोरा लेकर नहीं
बल्कि शर्ट पर कलम टांग कर
मांग रहे पढ़े लिखे लोग नौकरी की भिक्षा।
--------
आंखों से देख रहे पर्दे पर दृश्य
कानों से सुन रहे शोर वाला संगीत
नशीले रसायनों की सुगंध से कर रही
सभी की नासिका प्रीत,
मुंह खुला रह गया है जमाने का
देखकर रौशनी पत्थरों के शहर में।
अक्ल काम नहीं करती,
हर नयी शय पर बेभाव मरती,
बाजार के सौदागरों के जाल को
जमीन पर उगे धोखे के माल को
सर्वशक्तिमान का बनाया समझ रहे हैं
हांके जा रहे हैं भीड़ में भेड़ की तरह
दिन में सूरज की रौशनी में छिपे रहते
दिल का उजाला ढूंढते रात के पहर में।

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रिश्तों की कहानी-हिन्दी व्यंग्य कविता (ujde rishtton ki kahnai-hindi vyangya kavita)

अपनी दर्द भरी बातें
किसी को क्या सुनायें,
रोते लोगों क्या रुलायें,
सभी अपने गम छिपाने के लिये
दूसरों के घावों पर हंसने का
मौका ढूंढ रहे हैं।
अपने साथ हुए हादसों के किस्से
किसको सुनायें,
आखिर लोग उनको मुफ्त में क्यों भुनायें,
अपनी जिंदगी में थके हारे लोग
जज़्बातों के सौदागर बनकर
दूसरों के घरों के उजड़े रिश्तों की कहानी
बेचने के लिये घूम रहे हैं।

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