Saturday, January 8, 2011

शैतान लीला-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (shaitan lila-hindi vyangya poems)

हर बार लगा कि शैतान के ताबूत में
आखिरी कील ठोक दी गयी है,
फिर भी वह दुनियां में
अपनी हाजिरी रोज दर्ज कराता है,
मुश्किल यह है कि
इंसानों के दिल में ही उसका घर है
भले ही किसी को नज़र नहीं आता है।
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बार बार खबर आती है कि
शैतान मर गया है
मगर वह फिर नाम और वेश
बदलकर सामने आता है,
कमबख्त,
कई इंसान उसे पत्थर मारते मारते
मर गये
यह सोचकर कि
उन्होंने अपना फर्ज अदा किया
मगर जिंदा रहा वह उन्हीं के शरीर में
छोड़ गये वह उसे
शैतान दूसरे में चला जाता है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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महंगाई और समाज-दो हिन्दी क्षणिकायें (mehangai aur samaj-two hindi short poem)

सर्दी हो या गर्मी
या हो बरसात,
दिन हो या रात,
उन मज़दूरों के हाथ पांव
चलते ही जाते हैं,
मौसम की मार से भय नहीं है
पर महंगाई से उनके
पेट नहीं लड़ पाते हैं।
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आसमान पर जाते
जरूरी चीजों के भाव
भले ही विकास दर को बढ़ायेंगे,
पर महंगाई से टूट रहे समाज को
विश्व के नक्शे पर कब तक
अटूट देश के रूप में बतायेंगे।
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mahangai,menangai

अनाम नाम-हिन्दी क्षणिकाऐं (anam nam-hindi short poem)

भ्रष्टाचार वह राक्षस है
जो शायद हवा में रहता है।
बड़े बड़े नैतिक योद्धा उसे पकड़कर
मारने के लिये तलवारें लहराते हैं,
पर वह अमर है
क्योंकि उससे मिली कमीशन से
भरी जेब का बोझ नहीं सह पाते हैं,
चल रहा है उसका खेल
हर कोई भले ही
‘उसे पकड़े और मारो’ की बात कहता है
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पहले जेबों में रहता था
अब खातों में चमकने लगा है।
भ्रष्टाचार के पहले रूप दिखते थे
पर अब बैंकों में अनाम नाम से रहने लगा है।
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इंसान पत्थर हो जाता है-हिन्दी शायरी (unko salam nahin kiya tha-hindi shayri)

कौन कहता है कि
प्यार करने से पत्थर भी पिघल जाता है,
सच तो यह है कि
कितना भी पुचकारो
पर मतलब न निकले तो
इंसान पत्थर हो जाता है।
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यूं तो उठाया था बोझ हमने भी
उनका सामान घर तक पहुंचाने का
मगर उन्होंने दाम नहीं दिया था,
उनकी नज़रें इनायत रही चमचों पर
हमने पाई बेकद्री
क्योंकि उनको सलाम नहीं किया था।
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