Wednesday, August 24, 2011

जिसको मिली साहबी-भ्रष्टाचार पर दो हिन्दी क्षणिकाएँ (sahab aur gulam-two short poem-bhrashtachar or corruption

गोश्त बनता है जिनके रसोईघर में
टेबल पर बैठकर उसे चबते हुए
वही भूखों को रोटी दिलाने के
दावे किया करते हैं,
यकीन करो
भूख से पैदा होने वाले दर्द को वह नहीं जानते
शब्दों की चालाकी से अपने बयानों में
भले हमदर्दी भरते हैं।
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भूख से तड़पता
भ्रष्टाचार से भड़कता
अपराध से सहमता
आम आदमी कोई औकात नहीं रखता
उससे देश कहीं ज्यादा बड़ा है,
इसलिए जिसको मिली साहबी
अपनी कुर्सी पर बैठकर इतराता है
लगता है देश को बचाने के नाम पर
अपनी औकात बचाने के लिए अड़ा है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Sunday, August 14, 2011

हुकुमत और दौलत-हिन्दी शायरी (hukumat aur daulat-hindi shayari)

वह लोग क्या जंग लड़ेंगे
इंसानों की आजादी की
जो अपनी आदतों के गुलाम हैं,
कौम का परचम
आकाश में क्या वह फहरायेंगे
उधार की सोच को करते जो सलाम हैं।
दर्द को रोते हुए बेचते
इश्क से हंसते हुए कमाते
वतन की हिफाजत सौदागर क्या करेंगे
बाज़ार में जज़्बातों का करते सौदा जो सरेआम हैं।
करते हैं वही तय
कब जंग हो ज़माने में,
अमन से कितनी मदद होगी कमाने में,
मोहब्बत पर नहीं होते फिदा
दुनियां की हर हुकुमत उनकी
दौलत की गुलाम है।
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८.हिन्दी सरिता पत्रिका

Saturday, August 6, 2011

दिल के हाल-हिन्दी शायरी (dil ke halat-hindi shayari)

कभी रोकर
कभी चीखकर
हमने क्या पाया,
जिंदगी के सफर में
हर मोड़ पर मुस्कराये तो
तकलीफों में अपने को
हंसता पाया।
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हालतों का क्या
कभी अच्छी कभी बुरी होती हैं,
रोज ज़माना देखता है
हमारे चेहरे की तस्वीर
जो कभी हंसती कभी रोती है।
क्यों करे जंग हंसाई
अपने दिल के हाल बाहर दिखाकर
जिनकी उम्र कभी बड़ी नहीं होती है।
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मालिक का खिताब-हिन्दी शायरी (malik ka khitab-hindi shayari)

ज़िंदगी का फलसफा अभी तक कोई समझा नहीं
मगर कामयाबी के तरीके हर कोई बता रहा है।
खामोशी हर मर्ज की दवा है,मगर मुश्किल है
अपने बेकार बयानों से हर कोई हमें सता रहा है।
दुनिया की दौलत की पीछे दौड़ रहा आदमी
खुद को जमाने का पहरेदार जाता रहा है।
कहें दीपक बापू कब्जे की ज़मीन और चुराये पौधे
इंसान अपने लिए मालिक का खिताब लगा रहा है।
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