Sunday, May 29, 2011

चमड़ी और सोच-हिन्दी शायरियां

वह कभी विकास विकास
तो कभी शांति शांति का नारा लगाते हैं।
कौन समझाये उनको
बैलगाड़ी युग में लौटकर ही
शांति के साथ हम जी पायेंगे,
वरना कार के धूऐं से
अपनी सांसों के साथ इंसान भी उड जायेंगे,
दिखाते हैं क्रिकेट और फिल्मों के
नायकों के सपने,
जैसे भूल जाये ज़माना दर्द अपने,
नैतिकता का देते उपदेश
लोगों को
पैसे की अंधी दौड़ में भागने के लिये
भौंपू बजाकर उकसाते हैं।
-----------------
हर इंसान में
इंसानियात होना जरूरी नहीं होती है,
चमड़ी भले एक जैसी हो
मगर सोच एक होना जरूरी नहीं होती है।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

No comments:

इस लेखक के समस्त ब्लॉग यहाँ एक जगह प्रस्तुत हैं

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका

दीपक भारतदीप का चिंतन