वह लोग क्या जंग लड़ेंगे
इंसानों की आजादी की
जो अपनी आदतों के गुलाम हैं,
कौम का परचम
आकाश में क्या वह फहरायेंगे
उधार की सोच को करते जो सलाम हैं।
दर्द को रोते हुए बेचते
इश्क से हंसते हुए कमाते
वतन की हिफाजत सौदागर क्या करेंगे
बाज़ार में जज़्बातों का करते सौदा जो सरेआम हैं।
करते हैं वही तय
कब जंग हो ज़माने में,
अमन से कितनी मदद होगी कमाने में,
मोहब्बत पर नहीं होते फिदा
दुनियां की हर हुकुमत उनकी
दौलत की गुलाम है।
इंसानों की आजादी की
जो अपनी आदतों के गुलाम हैं,
कौम का परचम
आकाश में क्या वह फहरायेंगे
उधार की सोच को करते जो सलाम हैं।
दर्द को रोते हुए बेचते
इश्क से हंसते हुए कमाते
वतन की हिफाजत सौदागर क्या करेंगे
बाज़ार में जज़्बातों का करते सौदा जो सरेआम हैं।
करते हैं वही तय
कब जंग हो ज़माने में,
अमन से कितनी मदद होगी कमाने में,
मोहब्बत पर नहीं होते फिदा
दुनियां की हर हुकुमत उनकी
दौलत की गुलाम है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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