Wednesday, November 26, 2014

भावभंगिमा का खेल-हिन्दी कविता(bhav bhangima ka khel-hindi poem)



गज़ब हैं वह लोग
चेहरे पर जिनके रहती हंसी
हृदय में घात छिपाते हैं।

स्वार्थ के लिये
पहले हाथ जोड़ते
फिर लात दिखाते हैं।

कहें दीपक बापू भाव भंगिमा
करे देती हैं हमें मंत्रमुग्ध
चालाक लोगों पर
जिनके शब्द कोष में
सहानुभूति के अर्थ नहीं होते,
दर्द हरने का करते व्यापार
दवा की नदी में
पैसे से  हाथ धोते,

अपरे चरित्र लगे खून के छींटों पर
चर्चा करो तो
विरोधी की मात दिखाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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Tuesday, November 18, 2014

योग खिलाड़ी और मन का खेल-हिन्दी कविता(yog khiladi aur man ka khel-hindi poem)



घर में भर लिया
लोहे, लकडी और प्लास्टिक का
मनुष्य ने बदबूदार सामान
बेचैन मन के साथ
बाहर चैन की तलाश करता है।
पैसे के जोर पर
बनाता सर्वशक्तिमान के दरबार
नकली तारे लाकर
अपने घर का आकाश भरता है।
कहें दीपक बापू मन का खेल
योग खिलाड़ी ही जाने
नियंत्रण में हो तो
गेंद की तरह आगे बढ़ायें
नहीं तो दौड़ाकर
माया की तरफ
देह का नाश करता है।


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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Saturday, November 8, 2014

छद्म नायकों से सतर्कता जरूरी-हिन्दी व्यंग्य कविता(chhadma naykon se satarkta jaroori-hindi satire poem)



स्वयं पर नहीं आती हंसी जिनको
दूसरों को चिढाकर
परम आंनद पाते  हैं।

स्वयं घर से निकलते
पहनकर धवल कपड़े
दूसरे पर कीचड़ उछालकर
  रुदन मचाते हैं।

जिन्होंने अपना पूरा जीवन
पेशेवर हमदर्द बनकर बिताया
ज़माने के जख्म पर
नारों का नमक वही छिड़क जाते हैं।

बंद सुविधायुक्त कमरों में
विलासिता के साथ गुजारते
 रात के अंधेरे
दिन में चौराहे पर  आकर
वही समाज सुधार के लिये
हल्ला मचाते हैं।

कहें दीपक बापू बचना
ऐसे कागजी नायकों से
नाव डुबाने की कोशिश से पहले
उसे दिखावे के लिये बचाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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Saturday, November 1, 2014

मनुष्य देह में पशु-हिन्दी कविता(manushy def mein pashu-hindi poem)



एक उड़ते हुए पत्थर से
फूटता सिर किसी का
पूरे शहर में
दंगल शुरु हो जाता है।

शांति के  शत्रु
मौन से रहते बेचैन
जलते घर और कराहते लोग
सपनों में देखना उनको पसंद है
जब उड़ाते हैं नींद ज़माने की
करते अपना हृदय तृप्त
शहर में अमंगल गुरु हो जाता है।

कहें दीपक बापू मनुष्य देह में
पशु भी जन्म लेते हैं
रक्त की धारा बहाने पर रहते आमादा
जब लग जाता दांव उनका
चहकता शहर भी
जगल हो जाता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
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