Wednesday, April 17, 2013

लफ्जों के सौदागर-हिन्दी शायरी (lafzon ke saudagar-hindi shayari)

हमने की थी फरियाद
अपने हालातों की
वह सुधारने  वादा देकर चल दिये,
उनके कान और आंख ढूंढ रहे थे कोई कहानी
सोचते हैं हमने क्यों न अपने होंठ सिल लिये।
कहें दीपक बापू
मांगी थी हमने अपने दर्द की दवा
जगह जगह हमारी कहानी सुनाकर
बनाने लगे वह अपनी हवा,
अपना दर्द अकेले झेलना आसान था,
उनके इशारे पर भीड़ बहुत आयी
हमारे दरवाजे पर तमाशा देखने
न उसमें कोई हमदर्द मेहमान था,
हैरान हैं हम
लफ्जों के सौदगरों की बाज़ीगरी देखकर
भला करने का वादा करते
पर पूरा कभी किया नहीं
फिर भी लोग जला रहे हैं
उनके सामने धी के दीये।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका 


इस लेखक के समस्त ब्लॉग यहाँ एक जगह प्रस्तुत हैं

हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका

दीपक भारतदीप का चिंतन