Wednesday, July 13, 2011

शब्द पत्रिका ने पार की दो लाख पाठक/पाठ पठन संख्या-हिन्दी आलेख (shabd patrika ki sankhya do laklh ke paar-hindi aalekh)

            इस लेखक का एक अन्य ब्लाग ‘शब्द पत्रिका’ ने आज दो लाख पाठक/पाठपठन संख्या पार कर ली। यह संख्या पार करने वाला यह चौथा ब्लाग है। संयोगवश यह वर्डप्रेस का ही ब्लाग है। अपने आप में यह आश्चर्यजनक स्वयं को ही लगता है कि मजा तो ब्लॉगर के ब्लाग पर आता है पर पाठकों की संख्या की दृष्टि से सफलता वर्डप्रेस के ब्लाग पर ही मिलती है। ब्लॉगर के 13 ब्लाग मिलकर पूरे दिन में जितने पाठक जुटाते हैं उतने तो वर्डप्रेस का ब्लाग ‘हिन्दी पत्रिका’ ही जुटा लेता है। वर्डप्रेस के आठ मिलकर ब्लॉगर के 13 ब्लॉग से चार गुना से पांच तक पाठक अधिक जुटा लेते हैं।
           यह लेखक ब्लॉगर पर लिखे पाठ ही वर्डप्रेस के ब्लाग पर रखता है पर इसका मतलब यह कतई नहीं है कि उनमें टालने वाली कोई बात है। वहां टैब अधिक लगाने का अवसर मिलता है और शायद यही कारण है कि वहां पाठक अधिक मिल जाते हैं।
           इधर डर लगने लगा है कि कहीं ब्लॉगर के ब्लॉग कूड़ा होने की तरफ तो नहीं बढ़ रहे। वजह, यह है कि ब्लॉगर के ब्लॉगों से हिन्दी लिखने की सुविधा खत्म हो गयी है। कुछ ही दिन पहले ब्लॉगर पर अधिक लेबल लिखने की सुविधा मिली थी। उस समय लगा कि शायद ब्लॉगर अब वर्डप्रेस की बराबर करेगा पर यह सुविधा महीने भर भी नहीं चली। इधर अखबारों में पढ़ने को मिला था कि गूगल अब फेसबुक का मुकाबला करने के लिये गूगल प्लस लॉंच करने वाला है। साथ ही यह भी पता लगा कि ई-ब्लागर से उसका नाता टूटने वाला है या टूट चुका है। इधर अनुभव से एक बात पता लगी है कि ब्लॉगर पर जितने भी हिन्दी के अनुकूल जो सुविधा थी वह शायद भारत में सक्रिय गूगल से जुड़े लोगों के प्रयासों का ही परिणाम था। अब यह कहना कठिन है क ई-ब्लॉगर और ब्लागर अलग अलग है या एक, पर जिस तरह ब्लॉगर से हिन्दी की सुविधायें गयी हैं उससे लगता है कि गूगल उससे विरक्त हो गया है।
               अभी तक हमने गूगल प्लस को देखने का प्रयास किया पर कुछ समझ में नहीं आ रहा। फेसबुक को देख लिया और उस पर काम करना बेकार लगता है। एक विशुद्ध लेखक का मन फेसबुक से भर नहीं सकता क्योंकि वहां उसकी रचना भीड़ का हिस्सा हो जाती हैं। ब्लॉग एक किताब की तरह बन जाता है। यही कारण है कि रचनाधर्मियों को वह बहुत भाता। कहना मुश्किल है कि गूगल के विशेषज्ञों का क्या सोच है पर अगर वह ब्लॉग से विरक्त होते हैं तो मानना पड़ेगा कि वह फेसबुक और ट्विटर जैसे संकीर्ण संदेश साधन संवाहक स्त्रोतों को प्रश्रय देना चाहते हैं। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि ट्विटर और फेसबुक जैसे साधन रचना धर्मियों के साधना स्थल नहीं हो सकते पर उनकी संख्या उन प्रयोक्ताओं के मुकाबले नगण्य हैं जो फेसबुक और ट्विटर में व्यापर छद्म व्यवहार को सत्य समझकर खुश हो जाते हैं। निजीकरण के चलते यह संभव नहीं है कि कंपनियों से आशा की जाये कि वह उदारतापूर्वक रचनाधर्मियों को समर्थन दें।
        ऐसे में वर्डप्रेस के ब्लॉग की आवश्यकता निरंतर बनी रहेगी। फिर भी मानना पड़ेगा कि गूगल ने इंटरनेट पर हिन्दी को याहु से कहीं अच्छा समर्थन दिया पर लगता नहीं है कि वह आगे अधिक सहायक होगा। अक्सर गूगल के ब्लॉगर पर मोबाइल से जुड़ने के प्रस्ताव आते हैं पर हमारे लिये वह सब बेकार है। गूगल मोबाइल धारकों को लक्ष्य कर रहा है पर एक लेखक के लिये मोबाइल तब बेकार होता है जब वह ब्लाग पर सक्रिय होता है। मोबाइल धारक अपने देश में बहुत हैं और गूगल उनमें पैठ बनाने की कर रहा है हालांकि ऐसा कम ही दिखता है कि मोबाइल धारकों की रुचि उस समय इंटरनेट पर होती हो जब वह उस पर बात करना चाहते हैं। फिर हम जैसे ब्लाग लेखक के लिये छोटे अक्षरों में ब्लाग देखने की इच्छा करना ही संभव है। स्थिति यह है कि कभी किसी को एसएमएस भेजने की इच्छा भी नहीं होती। जो भेजते हैं तो उनसे कह देते हैं कि हमें संदेश भेजना ही है तो ईमेल पर भी भेजो।
           मोबाईल के मुकाबले कंप्यूटर पर इंटरनेट का उपयोग देश की नयी पीढ़ी के लिये हम अल्पज्ञान ही मानते हैं। वैसे भी हमारे देश में अल्पज्ञान पाते ही उछलने लगता है। यही कारण है कि लोग मोबाइल हाथ में पकड़ कर इस तरह धूमते हैं जैसे कि अलीबाबा का खजाना मिल गया है। मोबाइल पर संदेश वगैरह भेजना हमारी नज़र में कंप्युटर के अभ्यास से रहित होना है।
             एक बालक ने हमसे कहा कि ‘अंकल, हमने आपको कंप्युटर पर मैसेज भेजा था आपने जवाब नहीं दिया।’
          हमने कहा-‘‘एक तो हम किसी का मैसेज पढ़ते ही नहीं है क्योंकि उसमें फालतु मैसेज बहुत होते हैं। दूसरे हमसे मैसेज भले ही एक लाईन के हों पर टाईप नहीं हो सकते।’
          बालक ने कहा-‘‘आप सीख लो न! हालांकि अब आपको उम्र के कारण थोड़ी दिक्कत आयेगी।’’
हमने ऊपर से नीचे तक उसे देखा और कहा-‘‘ठीक है प्रयास करेंगे पर तुंम अगर इंटरनेट पर सक्रिय हो तो ईमेल भेज सकते हो।’
          वह हैरानी से हमें देखने लगा और बोला-‘‘इंटरनेट पर कभी कभी बैठता हूं। मेरा ईमेल खाता भी है पर उसमें टाईप करना नहीं आयेगा।’’
        हमने कहा-‘‘हां यह बात तो सही है, हम तुम्हें अब टाईप सीखने के लिये तो नहीं कह सकते क्योंकि वह तुम्हारी उम्र भी निकल चुकी है। अलबत्ता हम एसएमएस लिखना ही सीख लेंगे।’’
लड़के लड़कियों के मुख से फेसबुक, ट्विटर और ऑरकुट की बातें अक्सर हम सुनते हैं। उनके बहुत सारे दोस्त हैं यह भी वह बताते हैं। उनके अनुभव में कितना भ्रम और कितना सत्य है यह अनुमान करना कठिन है पर ब्लॉग लेखन में अपनी सक्रियता से सीखे ज्ञान के कारण उन पर हंसी आती है।
        शब्द पत्रिका का दो लाख पाठक/पाठन संख्या पार करने पर बस इतना ही कहना चाहते हैं कि अभी बहुत कुछ और देखना बाकी है तो लिखना भी बाकी है। हम यहां ऐसे लेखक हैं जो अपना लिखा दूसरों को पढ़ाने के लिये बल्कि पाठकों को पढ़ने के लिये तत्पर रहता है। हमारे पाठ कितने लोग पढ़ते हैं यह पता है पर पाठक नहीं जानते हम उनको कितना पढ़ रहे हैं। हमारे शब्द हमें बता देते हैं कि कौन कैसे पढ़ रहा है। धन्यवाद
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
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८.हिन्दी सरिता पत्रिका

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