धन, सोना, चांदी और
हीरे जवाहरात आदमी के साथ
मरने पर नहीं जाते हैं,
पर फिर भी आम आदमी ही नहीं
संत भी कहां लालच से बच पाते हैं।
माया को झूठा झूठा कहते हैं ताउम्र
मरने पर उनके कमरों में
संपदा के भंडार भक्तों की
आंखों को छकाते हैं,
सत्य को जानने के दावे
करने वालों के चेहरे और चरित्र
माया के खेल में चमक पाते हैं।
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धर्म प्रचार बिना माया के
भला कौन कर पाता है,
पैसा ही भगवान जिनका
ज्ञान भी उनका ही बिक जाता है।
चमत्कार करो
या बताओ स्वर्ग जाने का रास्ता
भ्रम बिकता है उस सच के दाम पर
जो न दिखता है
न मिलता है
न बिकने आता है।
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हीरे जवाहरात आदमी के साथ
मरने पर नहीं जाते हैं,
पर फिर भी आम आदमी ही नहीं
संत भी कहां लालच से बच पाते हैं।
माया को झूठा झूठा कहते हैं ताउम्र
मरने पर उनके कमरों में
संपदा के भंडार भक्तों की
आंखों को छकाते हैं,
सत्य को जानने के दावे
करने वालों के चेहरे और चरित्र
माया के खेल में चमक पाते हैं।
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धर्म प्रचार बिना माया के
भला कौन कर पाता है,
पैसा ही भगवान जिनका
ज्ञान भी उनका ही बिक जाता है।
चमत्कार करो
या बताओ स्वर्ग जाने का रास्ता
भ्रम बिकता है उस सच के दाम पर
जो न दिखता है
न मिलता है
न बिकने आता है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
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