Sunday, June 19, 2011

भ्रम बिकता है सच के दाम पर-हिन्दी व्यंग्य कवितायें(bhram bikta hai sach ke dam-hindi vyangya kavitaen)

धन, सोना, चांदी और
हीरे जवाहरात आदमी के साथ
मरने पर नहीं जाते हैं,
पर फिर भी आम आदमी ही नहीं
संत भी कहां लालच से बच पाते हैं।
माया को झूठा झूठा कहते हैं ताउम्र
मरने पर उनके कमरों में
संपदा के भंडार भक्तों की
आंखों को छकाते हैं,
सत्य को जानने के दावे
करने वालों के चेहरे और चरित्र
माया के खेल में चमक पाते हैं।
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धर्म प्रचार बिना माया के
भला कौन कर पाता है,
पैसा ही भगवान जिनका
ज्ञान भी उनका ही बिक जाता है।
चमत्कार करो
या बताओ स्वर्ग जाने का रास्ता
भ्रम बिकता है उस सच के दाम पर
जो न दिखता है
न मिलता है
न बिकने आता है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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