आम आदमी अब एक लोकप्रिय प्रचलित शब्द हो गया है। जो लोग राजनीति, साहित्य, कला, फिल्म, पत्रकारिता, आर्थिक कार्य और समाज सेवा में शिखर पुरुष न होकर आम आदमी की तरह सक्रिय हैं उन्हें इस बात पर प्रसन्न नहीं होना चाहिए कि उनकी इज्जत बढ़ रही है क्योंकि उनका आम आदमी होना मतलब भीड़ में भेड़ की तरह ही है। हां, एक बात जरूर अच्छी हो गयी है कि अब देश में गरीब, बेरोजगार, बीमार, नारी, बच्चा आदि शब्दों में समाज बांटकर नहीं बल्कि आम आदमी की तरह छांटा जा रहा है। वैसे कुछ लोग जो टीवी के पर्दे पर लगातार दिखने के साथ ही अखबारों में चमक रहे हैं उनको आम आदमी का दावा नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे प्रचार माध्यमों की खास आदमी के नाम से लाभ उठाने की मौलिक प्रवृत्ति बदल नहीं रही। अगर वह किसी कथित आम आदमी के नाम को चमका रहे हैं तो केवल इसलिये कि उनके बयानों पर बहस का समय विज्ञापन प्रसारण में अच्छी तरह पास होता रहा है।
सच बात तो यह है कि हर आम आदमी समाज के सामने खास होकर चमकना चाहता है। हाथ तो हर कोई मारता है पर जो आम आदमी में गरीब, बीमार, बेरोजगार तथा अशिक्षित जैसी संज्ञायें लगाकर भेद करते हुए उनके कल्याण के नारे लगाने के साथ ही नारी उद्धार की बात करता है उनको ही खास बनने का सौभाग्य प्राप्त हो्रता है। अब लगता है कि आम आदमी का कल्याण करने का नारा भी कामयाब होता दिख रहा है।
उस दिन अकविराज दीपक बापू सड़क पर टहल रहे थे। एक आदमी ने पीछे आया और नमस्ते की तो वह चौंक गये। उन्होंने भी हाथ जोड़कर उसका अभिवादन किया। आदमी ने कहा‘‘ क्या बात है आज अपना पुराना फटीचर स्कूटर कहां छोड़ दिया?’’
दीपक बापू चौंक गये फिर बोले-‘‘हमने आपको पहचाना नहीं। हम जैसे आम आदमी के साथ आप इस तरह बात कर रहे हैं जैसे कि बरसों से परिचित हैं।’’
वह आदमी उनके पास आया और उन्हें घूरकर देखने लगा फिर बोला-‘माफ कीजिऐ, मैंने आपको फंदेबाज समझ लिया। वह मेरा दोस्त है और आपको गौर से नहीं देखा इसलिये लगा कि कहीं आप हैं। आपने अभी यह कहा कि आप आदमी हैं, पर कभी आपको टीवी पर नहीं देखा।’’
दीपक बापू हंसे और बोले-‘‘आपकी बात सुनकर हैरानी हो रही है। एक तो आपने पुराने फटीचर स्कूटर की बात की उसे सुनकर मुझे लगा कि आप शायद परिचित हैं पर पता लगा कि मेरे जैसा भी कोई आम आदमी है जिसे आप जानते हैं। रही बात टीवी पर दिखने की तो भई उनके पर्दे पर हमारे जैसे आम आदमियों के लिये भला कोई जगह है? इस तरह तो मैंने भी कभी आपको टीवी पर नहीं देखा। आप भी आम आदमी ही है न?’’
वह आदमी बोला-‘‘मुझे कैसे देखेंगे? मैं तो नौकरी करता हूं! आजकल टीवी पर आम आदमी की बहुत चर्चा है सोचा शायद कभी आप वहां पर अवतरित हुए हों! आजकल आम आदमी टीवी पर ही दिखते हैं।’’
दीपक बापू हंसकर बोले-‘‘हां, हम भी देख रहे हैं पर वही लोग पर्दे पर अपने को आम आदमी की तरह चमका सकते हैं जिन पर खास लोगों का आशीर्वाद हो। आप और हम जैसे आम आदमी तो इसी तरह सड़कों पर घूमेंगे।’’
वह आदमी बोला-‘‘क्या बात कर रहे हें? मैं आम आदमी नहीं नौकरीपेशा आदमी हूं। किसी ने सुन लिया तो मेरी शामत भी आ सकती है। यह आम आदमी की पदवी आप अपने पास ही रख लीजिऐ।’’
वह तो चला गया पर दीपक बापू थोड़ा चौंक गये। आम आदमी का मतलब क्या बेरोजगार, लाचार, गरीब और कम पढ़ा लिखा होना ही है? सच बात तो यह है कि समाज को एक पूरी इकाई मानकर बरगलाना बहुत कठिन काम है इसलिये गरीब-अमीर, व्यापारी-बेरोजगार, स्त्री-पुरुष, तथा स्वस्थ-बीमार का भेद कर कल्याण करने के नारे लगते हैं। इसका कारण यह है कि छोटे वर्ग के आदमी को यह खुशफहमी रहती है कि बड़े वर्ग से लेकर उसका पेट भरा जायेगा। यह होता नहीं है। अभी तक आम आदमी को लेकर कोई वर्ग नहीं बना था। अमीर, पुरुष, और शिक्षित वर्ग में कोई भी आम आदमी नहीं हो सकता है यह भ्रम फैलाया गया है। वह वर्ग जो अपनी मेहनत से कमा कर परिवार का पेट भरता है उसका तो दोहन करना ही है पर जो उसके घर में जो बेरोजगार पुत्र या पुत्री, गृहस्थ कर्म में रत स्त्री और घर में रहने वाले बड़े बुजुर्ग का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिये उनके भले के नारे लगते रहे। कमाऊ पुरुष एक तरह से राक्षस माना गया जो अपने पर आश्रित लोगों का शोषण करने के साथ उपेक्षा का भाव रखता है। सड़क, कार्यालय या दुकान पर वह जो परेशानियां झेलता है उसकी चर्चा कहीं नहीं होती।
वह उपेक्षित आम आदमी था। न ऐसे लोग कभी भले करने के नारों पर भटकते हैं न ही उसे यकीन था कि कोई उसके साथ है। अब जबसे आम आदमी का नाम टीवी पर आने लगा है उससे सभी चौंक गये हैं। इधर अंतर्जाल पर भी लाखों आम आदमी मौजूद है। उनके ब्लॉग, फेसबुक और ट्विटर पर खाते हैं पर केवल खाताधारी है। उनको लेखक, कवि, कार्टूनिस्ट और पत्रकार का दर्जा प्राप्त नहीं है। जिनको मिला है वह खास लोगो की कृपा है। ऐसा लगता है कि पहले गरीब, बेरोजगार, बीमार, बुजुर्ग और महिलाओं के कल्याण का नारा अब बोरियत भरा हो गया लगा है इसलिये प्रचार माध्यमों ने आम आदमी बनाये हैं। अपने आम आदमी! जिनके ब्लॉग, फेसबुक और ट्विटर पर खाते हैं पर उनको वैसा ही सम्मान मिल रहा है जिसे कि अभिनय, राजनीति, फिल्म, टीवी और समाचार पत्रों के शिखर पुरुषों को प्राप्त है। खास लोग अगर इंटरनेट पर अपने छींकने की खबर भी रख दें तो वह टीवी पर दिखाई जाती है। आम आदमी जो शब्दिक प्रहार कर रहा है उसकी चर्चा कोई नहीं कर रहा। यह आम आदमी नाम जहाज प्रचार के समंदर में केवल उन्हीं को पार लगायेगा जो कि खास आदमी से आशीर्वाद लेकर उसमें चढ़ेंगे। ऐसे में दीपक बापू जो स्वयं को आम आदमी कहते थे अब कहने लगे हैं कि हम तो ‘‘शुद्ध आम आदमी है।’’
लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
No comments:
Post a Comment