शराब की दुर्गंध में भी
दिल बहलाने की कोशिश
गुलाब की सुगंध से
साँसों को सहलाने की ख्वाहिश
इंसानी दिमाग बस यूं ही नचाता है।
कहें दीपक बापू
जब तक जज़्बातों को
दिल तक उतारने की कूब्बत नहीं है
ज़िंदगी का मज़ा जुबान से फिसलकर
बाहर ही फैल जाता है।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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