ज़िन्दगी के रास्ते पर अपने कदम कदम
फूंक फूंककर कर रखना
अगर पांव फिसले तो तुम्हारी चीत्कार
कोई नहीं सुन पायेगा,
भीड़ तो होगी चारों तरफ
मतलबपरस्ती में फंसी है सभी की सोच
अपने मसलों में उलझा है सभी का ध्यान
कोई बंद लेगा अपने कान
कोई अनुसनी कर चला जायेगा।
कहें दीपक बापू
ज़माने के लोग
सुनते नहीं है
इसका मतलब सभी को समझना न बहरां
बस, उनके कान पर खुदगर्जी का है पहरा
अपनी दिल और दिमाग की लगाम
अपने हाथ में रखना
गैर का क्या धोखा देंगे
अपना भी बेवफाई न कर पायेगा।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
फूंक फूंककर कर रखना
अगर पांव फिसले तो तुम्हारी चीत्कार
कोई नहीं सुन पायेगा,
भीड़ तो होगी चारों तरफ
मतलबपरस्ती में फंसी है सभी की सोच
अपने मसलों में उलझा है सभी का ध्यान
कोई बंद लेगा अपने कान
कोई अनुसनी कर चला जायेगा।
कहें दीपक बापू
ज़माने के लोग
सुनते नहीं है
इसका मतलब सभी को समझना न बहरां
बस, उनके कान पर खुदगर्जी का है पहरा
अपनी दिल और दिमाग की लगाम
अपने हाथ में रखना
गैर का क्या धोखा देंगे
अपना भी बेवफाई न कर पायेगा।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
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