खुदगर्जी के लिये बदनाम-हिन्दी कविता
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हम जिन भी राहों से गुजरे
वहां अपने लिये ठोकरों को
इंतजार करते पाया,
अपने घावों पर किससे
हमदर्दी पाते
हमराहों के दिल पर थी
जज़्बातों की काली छाया।
कहें दीपक बापू
तरसे है जो नाम पाने को
करते दूसरों को बदनाम
उनसे क्या इज्ज़त पाने का ख्वाब देखते
जिनको खुदगर्जी के लिये बदनाम होते पाया
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नीयत की कीमत-हिन्दी कविता
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थोड़े फायदे के लिये
लोग इंसानियत की हदें
लांघ जाते हैं,
रिश्तों की देते दुहाई
कौड़ियों के बदले
गैरों के घर अपनी डोर बांध आते हैं।
कहें दीपक बापू
ज़माने में मर गयी वफादारी
पैसा खर्च कर सको
सगे क्या गद्दार भी
हमदर्द बनने को तैयार हो जाते
यह अलग बात है
हम नीयत की कीमत नहीं मांग पाते हैं।
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हम जिन भी राहों से गुजरे
वहां अपने लिये ठोकरों को
इंतजार करते पाया,
अपने घावों पर किससे
हमदर्दी पाते
हमराहों के दिल पर थी
जज़्बातों की काली छाया।
कहें दीपक बापू
तरसे है जो नाम पाने को
करते दूसरों को बदनाम
उनसे क्या इज्ज़त पाने का ख्वाब देखते
जिनको खुदगर्जी के लिये बदनाम होते पाया
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नीयत की कीमत-हिन्दी कविता
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थोड़े फायदे के लिये
लोग इंसानियत की हदें
लांघ जाते हैं,
रिश्तों की देते दुहाई
कौड़ियों के बदले
गैरों के घर अपनी डोर बांध आते हैं।
कहें दीपक बापू
ज़माने में मर गयी वफादारी
पैसा खर्च कर सको
सगे क्या गद्दार भी
हमदर्द बनने को तैयार हो जाते
यह अलग बात है
हम नीयत की कीमत नहीं मांग पाते हैं।
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कवि लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Poet or Writer-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Lashkar, Gwalior madhya pradesh
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
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