Sunday, February 19, 2012

मुफ्त का खेल-हिन्दी हास्य कविता (mufta ka khel,game for free-hindi hasya kavita,hindi comedy poem)

उस्ताद ने शागिर्द से कहा
" इस साल के सालाना जलसे के
अपने प्रचार पत्र में तुमने
यह घोषणा कैसे डाल दी है।
हम गरीब बच्चों को
मुफ्त कापियां पेन और किताबें
मुफ्त बांटेंगे,
कभी सोचा है कि
हम चंदे का इस्तेमाल अगर
ऐसा करेंगे तो
क्या खुद पूरा साल धूल चाटेंगे,
विरोधियों को हंसने वाली
यह बैठे बिठाये कैसी चाल दी है."
सुनकर शागिर्द बोला
"आपके साथ काम करने में
यही परेशानी है,
मेरी चालों से कमाते
पर फिर भी शक जताते
यह देखकर होती हैरानी है,
लोगों के भले का हम दंभ भरते,
छोड़ भलाई सारे काम करते,
पढ़ने वाले गरीब बच्चे
भला हमारे पास कब आयेंगे,
सामान खत्म हो गया
अगर आया कोई भूले भटके तो
उसे बताएँगे,
देश में जितने बढ़े है गरीब,
समाज सेवकों के चढ़े हैं नसीब,
लोगों की इतनी नहीं बढ़ी समस्याएँ,
जितनी उनके लिए बनी हैं समाज सेवी संस्थाएं,
ऐसे में यह मुफ्त मुफ्त का खेल
अब जरूरी है,
सस्ते में दवाएं बांटने का कम हो गया पुराना
इसलिए नया दाव लगाना एक मजबूरी है,
विरोधियों के सारे विकेट उड़ा दे
मैंने यह ऐसी बाल की है।"
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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