हम यह बात तो पहले ही लिख देते कि ‘पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी तथा भारत की महिला टेनिस खिलाड़िन की यह शादी पंदह को होकर रहेगी’ तो यकीनन अंतर्जाल पर पढ़ने वाले पाठक लोहा मान जाते। ऐसा नहीं हो सका क्योंकि डार्विन के विकासवाद को लिखे एक लेख-जिसमें व्यंग्य और चिंतन दोनों प्रकार का भाव शामिल था-पर मित्र ब्लाग लेखकों ने अपनी टिप्पणियों से हड़का नहीं दिया जिससे यह सोचकर रुकना पड़ा कि एक दिन में एक साथ दो मूर्खतापूर्ण लेख प्रस्तुत नहीं करना चाहिये। दरअसल कुछ दिन पहले उन्मुक्त जी ने एक लेख में डार्विन के विकासवाद सिद्धांत को पतंजलि योग के संदर्भ में देखने का आग्रह हमसे सार्वजनिक रूप से पाठ लिखकर किया था। विकासवाद पर हमारी स्मृतियों में पहले से ही कुछ था पर विज्ञान के विषय में कोरे होने कारण वैसे भी कभी कुछ नहीं लिखते। उस दिन लिखा। एक विद्वान वकील ब्लाग लेखक मित्र ने कड़ी टिप्पणी की कि‘आप इस विषय पर कुछ नहीं जानते। आपने निराश किया।
टिप्पणियां दूसरी भी आईं पर हमारे मन में यह शक हो गया कि हम लिखने में कोई गलती कर गये हैं। संयोगवश दूसरे ब्लाग पर उन्मुक्त जी की टिप्पणी भी आयी पर उसमें उन्होंने कहीं हमारे विकासवाद के सिद्धांतों की जो स्मृतियां हैं उन पर आपत्ति नहीं की। इधर पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ी तथा भारत की एक टेनिस महिला खिलाड़ी-जिसे विश्व में नबेवीं वरीयता प्राप्त है-की शादी का नाटक सामने आ गया। इसी पाकिस्तानी खिलाड़ी से भारत के उसी शहर की एक लड़की के साथ पहले ही हो चुकी शादी की चर्चा भी हो रही थी जहां वह महिला टेनिस खिलाड़ी रहती है। वह भारत की महिला खिलाड़िन से शादी करने के पूर्व तलाक चाहती थी। इस पर भारत के संगठित प्रचार माध्यमों-टीवी, रेडियो और समाचार पत्र पत्रिकाओं- ने ढेर सारे समाचार प्रकाशित किये। इसे हम यूं भी कह सकते हैं कि विज्ञापनों का व्यापार खूब हुआ। जब कोई खास खबर होती र्है-या प्रायोजित कर बनाई जाती है-तब हर मिनट में विज्ञापन आता है। विज्ञापनदाताओं के इससे कोई मतलब नहीं होता कि किस कार्यक्रम में उनके विज्ञापन दिखाये गये बल्कि उनके प्रबंधक तो यह देखते हैं कि उस समय कितने दर्शक उसे देख रहे होंगे। इस लेखक ने कई बार यह बात लिखी है कि ऐसा लगता है कि आर्थिक तथा मनोरंजन क्षेत्र के विशेषज्ञ बकायदा योजना पूर्वक खबरें तैयार करवाते हैं या फिर कोई उनके लिये कोई स्वयंसेवी संगठन है तो निरंतर इसके लिये लगा रहता है जिसे इनसे रकम प्राप्त होती है।
यह शादी होकर रहेगी-यह बात हम उसी दिन लिखते अगर एक दिन पहले वर्डप्रेस पर प्रकाशित पाठ को अगले दिन ब्लागस्पाट पर बेफिक्री से नहीं प्रकाशित करते। वह ब्लाग अनेक अन्य लेखक मित्रों के बीच में जाता है। ऐसे में चुनौती देती टिप्पणी-वह भी एक जानकारी ब्लाग लेखक से मिले-दिमागी रूप से हिला देती है। हमने डार्विन के विकासवाद पर अपने ही एक अन्य गुरु मित्र श्री एल.एम त्रिवेदी जी-जो अब ब्लाग पर अब कवितायें भी लिखते हैं-की शरण ली। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि हमारी सोच ठीक है और विकासवाद का सिद्धांत वही है जैसा कि हम सोच रहे थे। उन्होंने कहा कि तुम तो उस ब्लाग का लिंक मेरे ब्लाग पर दे जाओ या ईमेल पर भेजो मैं पढ़कर उस टिप्पणी दूंगा।
इधर हमारे दिमाग में यह शादी का चक्कर भी फंसा हुआ था। फिर कुछ लिखने का समय नहीं मिला क्योंकि एक आम लेखक के लिये ढेर सारे अन्य संकट भी हुआ करते हैं। टीवी तो अब देखना बंद सा हो गया। कहते हैं कि एक झूठ सौ बार बोला जाये तो अपने को भी सच लगने लगता है। यही हाल हमारा है। अधिकतर खबरें और बयान समय पास करने के लिये प्रायोजित करने के लिये प्रस्तुत किये जाते हैं यह बात लिखते और कहते हुए हमारे दिमाग में इस तरह घर कर गयी है कि कहना ही क्या? हर खबर या बयान के पीछे हमें बस प्रायोजन ही नज़र आता है।
जिस पाकिस्तानी क्रिकेटर की शादी और तलाक का यह ड्रामा हुआ उस पर उसी के देश के पुराने तेज गेंदबाज ने फिक्सर होने का आरोप लगाया बल्कि यहां तक भी कह डाला कि वह अब टेनिस में फिक्सिंग का धंधा शुरु करने वाला है। कथित दूल्हा पाकिस्तानी क्रिकेट के चरित्र पर क्या लिखें? जिस समय यह पंक्तियां लिखी जा रही हैं उस पर अनुशासनहीनता के आरोप में एक साल का प्रतिबंध लगा हुआ है। यानि वह अपने ही देश में खलनायक है। पंद्रह अप्रैल को उसकी शादी के अवसर पर तोहफे के रूप में इस प्रतिबंध से मुक्ति देने के प्रस्ताव पर भी चल रहा है।
पुरानी शादी को लेकर चल रहे विवाद में पहली पत्नी का प्रचार आक्रमण-जी हां, यह शब्द व्यापक अर्थ में लें-का सामना कर रहे उस पाकिस्तानी क्रिकेटर और अपने होने वाले पति की बचाव में उतरी महिला टेनिस खिलाडी ने बचाव करते हुए कहा कि ‘वह लोग (पहली बीबी और उसके माता पिता) कैसे सामने आयेंगे यह बताने कि उन्होंने एक इंसान(पाकिस्तानी क्रिकेटर) को बेवकूफ बनाया है?
हम पाकिस्तानी क्रिकेट की पहली और संभावित पत्नी पर कुछ नहीं लिखेंगे। क्योंकि हमारा मानना है कि छोटी उमर की लडकियां इतनी चालाक नहीं होती कि वह कोई स्वयं दांव पैंच खेंलें पर उनको बरगला कर शातिर लोग अपने पक्ष में कर ही लेते हैं। इस शादी तलाक नाटक में हमें नहीं लगता कि लड़कियों की कोई सीधी भूमिका इस नाटकबाजी में होगी पर उनका इस्तेमाल किया गया है यह बात तय लगती है।
शक के कई कारण है। इस शादी नाटक पर ढेर सारा सट्टा लगा-यह बात संगठित प्रचार माध्यम स्वयं कह रहे हैं। इस नाटक के केंद्र बिन्दु में पाकिस्तान और मध्य एशियाई देशों का नाम अनेक बार आया और तीनों पात्र कहीं न कहीं उनसे जुड़े हुए थे। फिर क्रिकेट और टेनिस जैसे वह खेल जुड़े हुए हैं जिन पर बाजार तथा प्रचार माध्यमों का प्रत्यक्ष नियंत्रण है-संगठित प्रचार माध्यम कई बार यह बता चुके हैं कि इन पर सट्टा चलता है।
टीवी चैनलों और अखबारों की सुर्खियों में इस शादी तलाक नाटक को लाया गया दर्शकों और पाठकों के मनोरंजन के लिये-जिसमें व्यतीत समय पर करोड़ों रुपयों की आय होती है। पाकिस्तान के जिस पुराने तेज गेंदबाज ने अपने ही पाकिस्तानी दूल्हा क्रिकेटर पर यह भी आरोप लगाया कि उसने नया प्यार पाने के लिये 18 लाख डालर खर्च किये। इधर यह भी समाचार है कि भारत की महिला खिलाड़ी उस पाकिस्तानी से शादी कर दुबई में बसना चाहती है। फिर ऐसा दूल्हा जिस पर उसके ही देश के खिलाड़ी फिक्सिंग का आरोप लगा रहे हों तब लगता है कि उसने इस नाटक में वारे न्यारे किये होंगे। एक बात याद रखने वाली बात है कि भारत के बाहर अन्य देशों के खिलाड़ियों को इतने विज्ञापन नहीं मिलते इसलिये उनके पास अमीर होने के ऐसे ही नुस्खे हैं। क्रिकेट खिलाड़ी ने स्वयं यह नाटक न रचा हो पर उसके पीछे स्थित किसी प्रबंधकीय समूह ने यह सब रचा हो। वैसे भी वह मुखौटा ही लग रहा था।
इस नाटक मंडली के भारत से जुड़े सदस्यों ने मध्य एशिया के अमीरों को धर्म आधार विषय बनाकर खुश कर दिया होगा। मध्य एशिया के शिखर पुरुषों की यह खूबी है कि वह केवल पैसे से नहीं बल्कि अपने मजहब का प्रचार देखकर भी उछलते हैं। पांच छह दिन भारतीय टीवी चैनलों पर एक मजहब के ठेकेदार ही आते रहे। अन्य मजहब के लोगों को तो मानो यह बताया जा रहा था कि जैसे यह आपका कोई विषय नहीं है और न लेना देना। आपकी औकात तो दर्शक की है जिसे चाहे नाटक दिखायें चाहें विज्ञापन। इसलिये अपने दिमाग के दरवाजे बंद कर हमारा यह धार्मिक और आर्थिक कार्यक्रम देखो।
हम यह पहले ही दिन लिखते पर एक ही दिन दो मूर्खतायें नहीं करना चाहिये। कम से कम अंतर्जाल पर जहां टिप्पणियों की सुविधा है। वैसे श्री त्रिवेदी जी से दोनों मसलों पर हमारी चर्चा हुई थी। उन्होंने हौंसला बढ़ाया तो अब सोच रहे हैं कि कुछ अन्य विषयों पर भी इस तरह लिखा जाये। बात गलत निकले तो हार मान लो। सच निकले तो वाह वाह तो्र होगी ही।
वैसे पहले दिन से हमने अनुमान लगाया था वह एक समय गलत होता दिख रहा था तब लगा कि अच्छा हुआ नहंी लिखा पर बाद में जब परिणाम सामने आया तो लगा कि एक मौका अपने हाथ से निकल गया। बहरहाल अब ऐसे सीधे प्रसारित नाटकों का अंत का अनुमान पहले लगाना आसान नहीं है क्योंकि इस पर भी सट्टा चलता है और इसमें अभिनय करने वाले पात्रों की डोर उनके हाथों में ही होती है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
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