Thursday, April 22, 2010

अपना खौफ छिपा रहे हैं-हिन्दी शायरी (apna khauf chhipa rahe haint-hindi shayari)

चमक रहे हैं उनके चेहरे,
लगे हैं उनके घर के बाहर पहरे,
वह मुस्करा रहे
या अपना खौफ छिपा रहे हैं।
उनकी नीयत का आभास नहीं होता
पर इधर उधार आंखें नचा रहे हैं
शायद कोई शिकार ढूंढ रहे
या अपने को बचा रहे हैं।
उनको फरिश्ता कह नहीं सकते
शैतान दिखते नहीं है,
उनकी काली करतूतों के किस्से आम हैं
उनकी टेढ़ी चालें इसकी गवाह है
जिनको जानता है पूरा ज़माना
उनको वह खुद से छिपा रहे हैं।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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