Saturday, March 27, 2010

खबरें और यकीन-हिन्दी व्यंग्य कविता (news and faith-hindi satire poem)

खबरों से यकीन यूं उठ गया है
क्योंकि वह शब्द बदल सामने आती रहीं।
कहीं चेहरे बदले
तो कहीं चालें
पर चरित्र पुराना ही दिखाती रहीं।
नतीजे पर नहीं पहुंचा कोई मुद्दा
पर खबरें बरसों तक चलती रहीं,
कहीं बाप की जगह बेटे का नाम लिखा जाने लगा
कहीं बेटियों के नाम भरती रहीं,
कभी कभी प्रायोजक बदलकर भी
खबरे सामने आती रहीं।
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मुद्दा सामने पड़ा था,
पर खबरची उसे छोड़ने पर अड़ा था।
क्योंकि कोई प्रायोजक पास नहीं खड़ा था।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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