Monday, April 12, 2010

दुनियां का यही दस्तूर है-हिन्दी शायरी (duniya ka dastur-hindi vyangya kavita)

अपनी कामयाबी भी
उनको तब तक हज़म नहीं हो पाती है,
जब तक दूसरे की नाकामी की खबर
उनके पास न आती है।
दुनियां का यही दस्तूर है
मूर्खों का भी क्या कसूर है
सभी लोगों दूसरे की छोटी लकीर से
बड़ी लकीर खींचना नहीं आती है।
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हर रोज वह
कामयाबी के नये शिखर पर चढ़ जाते हैं,
उधार पर ली है कलाबाजी
या करना सीख ली दगाबाजी,
फिर भी किसी के टांग खींचकर
जमीन पर पटकने की आशंाकायें
उनको घेरे हुए है
जमीन पर रैगते हुए मामूली इंसानों की
कामयाबी से खौफ खाकर उनसे लड़ जाते हैं।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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