Friday, March 26, 2010

अपनी रूह से ही जिंदगी की रोशनी क्यों नहीं जलाते हो-हिन्दी शायरी (rooh aur zindagi ki roshni-hindi shayri)

फरिश्तों की दरबार में
क्यों हाजिरी लगाने जाते हो,
हो सकता है वहां रोज सुबह फर्श धोया जाता हो
रंगीन रात के जश्न की धूल धोने के लिये
तुम सफेद चेहरों की
काली नीयत क्यों नहीं समझ पाते हो।
पत्थर के बुतों की तरह खड़े हैं फरिश्ते वहां
सांसें लेने के लिये नहीं है, दिल की इबादत जहां
अपने दिल और दिमाग की
जगह साफ कर
फरिश्तों की दरबार अपने अंदर ही
क्यों नहीं सजाते हो।
अपनी रूह से ही
जिंदगी की रोशनी क्यों नहीं जलाते हो।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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