इधर भारत में चल रही एक क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता की वजह से अपने ब्लाग पिटने लगे हैं। यह बुरी स्थिति है। क्रिकेट के एक दिवसीय या टेस्ट मैच हैं तो उसी दिन ही ब्लाग पिटते हैं जिस दिन मैच होता है पर क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता में रोज मैच होने की वजह से यह स्थिति आ जाती है कि ब्लाग की पाठक संख्या में 40 से 50 प्रतिशत गिरावट दर्ज होती है। जब भारत का कोई मैच होता है तब यह गिरावट दुःखदायी नहीं लगती क्योंकि लगता है कि बाज़ार देश प्रेम बेच रहा है और अगर कुछ लोग उसमें फंस जाते हैं तो कोई बात नहीं। सभी तो ज्ञानी ध्यानी हो नहीं सकते कि इस बात को समझें कि देशप्रेम भी अब बाजार के सौदागरों के लिये बेचने वाली चीज हो गयी है। मगर यह क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता के मैचों में तो बाजार के सौदागरों पर ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया जा सकता। वह तो शुद्ध रूप से इसे सर्कस की तरह चला रहे हैं फिर भी लोग इसमें इतने व्यस्त हो गये हैं तब लगता है कि वाकई यहां रचनात्मक कार्य करने वालों के लिये कोई जगह नहंी है पर जब बची हुई पाठक संख्या को देखते हैं तो इस बात का दर्द कम हो जाता है और यह यह सोचकर संतोष कर लेते हैं कि पूरा देश अज्ञान के अंधेरे में नहीं भटक रहा। सबसे अधिक अफसोस इस बात का है कि इस देश के लोगों का चालीस प्रतिशत से अधिक वर्ग बाज़ार और उसके द्वारा स्थापित प्रचार तंत्र के प्रचार की जद में है-हां, ब्लाग पर इतनी ही पाठक संख्या की गिरावट दर्ज की गयी है। खुशी इस बात की है कि साठ प्रतिशत भाग अभी भी स्वतंत्र रूप से सोचता है और वह क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता के जाल में नहीं फंसा।
दरअसल लोग हमेशा मनोरंजन चाहते हैं और वह जो उन्हें बैठे ठाले आंखों के सामने प्रकट हो जाये या उनकी उंगली के इशारे के आदेश पर ही सामने दृश्य चले। यहां हर आदमी उंगलियों के इशारे सभी को नचाने का ख्वाब देखता है और ऐसे में उसे रिमोट, माउस तथा मोबाइल जैसे साधन खिलौने की तरह मिल गये हैं। इन पर उंगलियां दबाने से जो दबाव दिमाग पर पड़ता है और उससे शरीर पर उसका क्या दुष्प्रभाव होता है यह अब स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताने लगे हैं। एक लड़की रोज अनेक एस. एम. एस. संदेश भेजती थी और नतीजा यह रहा कि उसकी उंगलियों ने काम करना बंद कर दिया।
इस लेखक ने कई बार देखा है कि मोबाइल, रिमोट तथा माउस पर उंगलियों दबाने से दिमाग पर काफी दबाव पड़ता है तब सोचते हैं कि पता नहीं कैसे लोग इससे इतना चिपके रहते हैं। लोग टीवी पर रिमोट से कार्यक्रम बदल कर खुश होते हैं कि आसानी से मनोंरजन मिल रहा है। कंप्यूटर पर भी जो बैठते हैं वह केवल माउस से ही काम चलाते हैं। इधर बड़े बड़े चैनल भी लोगों को एस. एम. एस. करने के लिये प्रेरित करते रहते हैं। लोग हैं कि उसमें व्यस्त हो जाते हैं। अगर हम यह कहें कि लोग एक तरह से अपनी उंगलियों के द्वारा ही अपने शरीर से खिलवाड़ कर रहे हैं तो गलत नहीं होगा। यह हमारा नहीं बल्कि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है।
एक सवाल यह है कि आखिर लोग क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता को क्यों देख रहे हैं? दरअसल मनोरंजन के लिये उत्सुक लोगों के लिये बाजार के सौदागरों तथा उनके प्रचार प्रबंधकों ने अधिक अवसर छोड़े ही नहीं हैं। जब भारत में निजी चैनलों का प्रवेश हो रहा था उसी समय ही दूरदर्शन पर कार्यक्रमों का स्तर एकदम गिर गया था। हालत यह हो गयी थी कि शनिवार और रविवार को भी कार्यक्रम अच्छे नहीं दिखते थे। उस समय मंडी हाउस क्या कर रहा था, कुछ पता नहीं जबकि वह देश मनोरंजन कार्यक्रमों के निर्धारण के लिये के लिये एक केंद्र बिंदु था-प्रसंगवश उसके मुखिया हिन्दी भाषा के एक विद्वान ही थे। नतीजा यह रहा कि निजी टीवी चैनल छा गये। इन चैनलों ने कार्यक्रम अच्छे प्रस्तुत किये पर जल्द ही उनकी कमाई जरूरत से ज्यादा हो गयी। अब बाजार के बंधक हो गये हैं। इसलिये वह बाजार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों को जनता के समक्ष लाने के लिये अपने कार्यक्रमों का स्तर गिरा रहे हैं। मनोरंजन और समाचार चैनलों में कोई अधिक अंतर नहीं रहा है। मनोरंजन चैनलों के हास्य कार्यक्रमों में भी क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता का नाम किसी न किसी रूप में लिया जाता है ताकि उसके दर्शक जरूर याद रखें। मतलब वह मनोंरजन चैनल जो कि क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता का सीधा प्रसारण नहंी करते वह भी इस बात के लिये तैयार रहते हैं कि उनका दर्शक अगर वह मैच नहीं देखता तो जाकर देखे। यह कोई त्याग नहीं बल्कि बाजार और प्रचार तंत्र के अटूट संबंधों का प्रमाण है।
लोगों के पास इंटरनेट है पर उन्होंने उसे मनोरंजन के साधन के रूप में लिया है इसलिये हिन्दी के पाठक कम ही मिलते हैं पर जब क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता चलती है तब उनमें संख्या कम तो हो ही जाती है। लोग माउस से कष्ट उठाने से बच जाते हैं क्योंकि यह काम वह टीवी पर रिमोट के जरिये करते हैं। इस तरह रिमोट, माउस और मोबाइल के बीच में भारतीय समाज अपनी उंगलियां फंसाए हुए है। इन तीनों का अविष्कार अमेरिका की देन है जिसके स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार अपनी उंगलियां बचाने के लिये सुझाव दे रहे हैं कि ऐसा काम करो जिससे दोनों हाथ सक्रिय रहे। यह काम तो केवल ब्लाग लेखन से ही हो सकता है। गनीमत हम यही कर रहे हैं अलबत्ता अनेक बार दूसरी वेब साईटें देखने के लिये माउस का सहारा लेते हैं पर अब सोच रहे है कि गूगल के फायरफाक्स के जरिये दोनों हाथों की सक्रियता से ही यह काम करें और अधिक से अधिक टेब और बैक स्पेस से काम करें। टीवी और क्लब स्तरीय क्रिकेट प्रतियोगिता के मैचों से इतना उकता गये हैं कि इंटरनेट के अलावा कोई दूसरा साधन हमारे समझ में ही नहीं आता। यह तो अपने गुरुजनों के आभारी है कि उन्होंने हमारे अंदर लेखक को स्थापित कर दिया जिससे यहां लिखने का मजा लेते हैं वरना तो बेकार में उंगलियों के सहारे माउस पर नाच रहे होते।
----------कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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