जहां तक देखो
फैला है चारों
तरफ
नरमुंडों का
समंदर।
फिर भी उठती
नहीं
दिखती संवेदनाओं
की लहरें
लगता है जैसे
भाव का बहना
अब होता नहीं
हृदयों के अंदर।
कहें दीपक बापू
युग बदल गया
यह कहा जाता है,
विकास के बाद
विनाश का मार्ग
भी पाया जाता है,
नाच रहा है
दौलतमंदों के डमरू पर
हर इसांन खुश
होकर
जैसे एक फिर बन
गया बंदर।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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