Sunday, July 27, 2014

बुद्धिमानी का कोई भाग नहीं है-हिन्दी कविता(buddhmain ka koyee bhag nahin hai-hindi poem)



इंसानों के भावविहीन चेहरे
संवेदनाहीन व्यवहार
हृदय  में  प्रेम की आग नहीं है।

जुबान से निकलती शब्दों की भीड़
रुखे है उनके अर्थ
भावनाओं का उनमें राग नहीं है।

चमक है पहनावे में
महंगे हैं अमीरों  के बिछौने
फैला भ्रम कि उन पर कोई दाग नहीं है।

कहें दीपक बापू प्रभावी लोग भ्रमित हैं
कोई देखता नहीं उनके काले कारनामे
जिंदगी के इस खेल में
बुद्धिमानी का कोई भाग नहीं है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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