Monday, August 4, 2014

ताज़े और नये चेहरे-हिन्दी कविता(taze aur naye chehare-hindi poem's)



जहां कभी खेत थे
समय के साथ सीमेंट और लोहे के
चमकदार मकान बन गये।

जहां कभी लगती थी चाय की गुमटी
समय के साथ पांच सितारे लिये
होटल तन गये।

जहां कभी पेड़ पौद्यों से भरे उद्यान थे
समय के साथ इतिहास में दर्ज
महान लोगों के प्रस्तर बुंत जम गये।

कहें दीपक बापू भावनायें यथावत
तब रूप बदलना
नयेपन की पहचान नहीं होती
यह अलग बात है
बाज़ार के सौदागर
बुढ़ा चुके सामानों और चेहरों पर
रंग पोतकर बना देते उनको ताजे और नये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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