नई दुनियां से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने होली के अवसर पर हिन्दी ब्लाग जगत पर व्यंग्य बाण छोड़कर सक्रिय ब्लाग लेखकों को लगभग स्तब्ध कर दिया है। उनके उस व्यंग्य आलेख की जानकारी इंटरनेट के ब्लाग लेखकों ने ही जारी की। जिन लोगों ने यह आलेख प्रस्तुत किये उनकी भाषा भी सहमी हुई लग रही थी। रखने वालों को यह भय था कि पता नहीं ब्लाग लेखकों पर इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी और कहीं यहां उसे प्रकाशित करने के कारण ही कहीं कोपभाजन तो नहीं होना पड़ेगा। हमारे मित्र ब्लाग लेखकों इसे प्रस्तुत करते हुए अपनी भाषा इस तरह लिखी जैसे कि उनका तो इससे कोई लेना देना नहीं है बल्कि गुस्सा हैं।
हैरानी इस बात की है कि कुछ ब्लाग लेखक इस पर उत्तेजित हो गये और उन्हें लगा कि उन पर गंभीरता से प्रहार किया गया है-उन्होंने इस जवाबी तर्क भी प्रस्तुत कर दिये जैसे कि कोई गंभीर आलेख हो। दरअसल ब्लाग लेखक स्वयं ही आपस में होली स्वांग में रचाने में इतने व्यस्त हैं कि उनको यह अनुमान नहीं रहा कि कोई बाहर बैठा व्यक्ति भी इस होली पर उनके साथ बाहरी पिचकारी से ही रंग फैंकेगा।
श्री आलोक मेहता का यह आलेख सुबह एक ब्लाग पर देखा था और इंतजार था कि देखें इस प्रतिक्रियायें क्या आती हैं? कुछ ब्लाग लेखकों ने इस व्यंग्य का मंतव्य समझ लिया और अपनी टिप्पणियों में इस बात का उल्लेख किया कि यह एक व्यंग्य है।
प्रारंभ में जब हमने इस लेख को देखा तो ब्लाग लेखकों की तरह हम भी हैरान रह गये। जब व्यंग्य पूरा पढ़ा तब समझ में आया कि वास्तव में दूसरों पर कटाक्ष और प्रहार करने वाला हिन्दी ब्लाग जगत आज खुद भी निशाना बन गया। ब्लाग लेखकों को कुंठित, मठाधीश, भडासी और जाने कौन कौन सी व्यंग्य संज्ञााओं से नवाजा गया है।
उसमें यहां तक लिखा गया है कि ‘इन ब्लाग लेखकोें का लिखा एक शब्द भी अमेरिका और चीन का राष्ट्रपति तक नहीं मिटवा सकता। खासतौर से हिन्दी ब्लाग जगत के लेखकों का।’
इस व्यंग्यात्मक प्रहार को एक प्रशंसा भी समझा जा सकता है और गंभीर आलोचना भी।
उसमें ढेर सारी बातें हैं, उन प्रतिवाद रूप से गंभीरता से लिखा जा सकता था अगर वह एक निबंध होता तो? व्यंग्य के लिखे का प्रतिवाद तो यह कहकर ही हो सकता है कि इसमें अति प्रदर्शन किया गया है-वह भी तब जब किसी पर व्यक्तिगत रूप से आक्षेप हो जो कि इसमें नहीं है।
वैसे देखा जाये तो हिन्दी ब्लाग जगत पर किया गया यह व्यंग्यात्मक प्रहार पढ़ने वाले पाठकों की दिलचस्पी निश्चित रूप से हिन्दी ब्लाग लेखन में बढ़ेगी। ब्लाग लेखकों को एक बात समझना चाहिये कि हम जो इस समय प्रचार तंत्र देख रहे हैं वह नायक-खलनायक और समर्थक-विरोधी दोनों को साथ लेकर चल रहा है। दूसरा यह कि अनेक लोग तो प्रचार पाने के लिये अपने पर लिखवाते हैं। श्री आलोक मेहता ने व्यंग्य लिखकर खलनायक या विरोधी की भूमिका अदा नहीं की बल्कि यह बताया है कि हिन्दी ब्लाग जगत अब आकार ले रहा है और उस पर व्यंग्य लिखा जा सकता है। अस्तित्वहीन या लधु आकार के विषय व्यंग्य के लिये उपयुक्त नहीं होते। वैसे जिन ब्लाग लेखकों को लगता है कि यह मजाक गंभीर है तो भी उन्हें इस बात पर प्रसन्न होना चाहिये कि बैठे ठाले उनका विरोध कर उन्हें प्रसिद्धि दिलाने का काम एक प्रतिष्ठत लेखक ने मुफ्त में किया है नहीं तो अनेक बड़े लोगों को अपना विरोध कराने के लिये पैसे खर्च करने पड़ते हैं। श्रीआलोक मेहता ने किसी ब्लाग लेखक का नाम नहीं लिया और जिनका लिया वह काल्पनिक हैं-ताज्जुब है कि कुछ ब्लाग लेखक उनको सर्च इंजिनों में ढूंढने गये। वह जानते हैं कि अधिकतर ब्लाग लेखक मध्यमवर्गीय हैं और सार्वजनिक रूप से किसी का नाम लिखकर उनके लिये परेशानी पैदा न की जाये।
श्री आलोक मेहता को हम जानते हैं पर वह हमसे अपरिचित हैं। अलबत्ता उनको एक आम पाठक के रूप में पढ़ने के अलावा एक आम दर्शक के रूप में छोटे पर्दे पर भी देखते हैं। व्यंग्य तो केवल व्यंग्य है। अगर उसमें गंभीरता होती तो कोई तर्क देते। अच्छा व्यंग्य पढ़ने को मिला। जिन ब्लाग लेखकों ने इसे रखा उनकी प्रशंसा की जानी चाहिये। अप्रत्यक्ष रूप से इस व्यंग्य में ब्लाग लेखन की शक्ति का भी बखान किया गया है जिसे पढ़कर पाठकों की दिलचस्पी बढ़ेगी। वह इस बात को समझेंगे कि हिन्दी ब्लाग जगत ताकतवर हैं भले ही उसमें मसखरे भरे पड़े हों। अलबत्ता धीरे धीरे सभी जान जायेंगे कि यहां हर तरह के ब्लाग लेखक हैं। संभव है यहां लिखना शुरु करने वाले कुंठित लोग हों पर लिखते लिखते उनकी कुंठायें उनसे दूर चली जाती हैं और ब्लागिंग का नशा बाकी सारे नशों से भारी सिद्ध होता है। श्री आलोक मेहता को हम पढ़ते हैं पर वह हमें नहीं पढ़ते। वरना अपने ब्लाग पर उनके लिये होली के अवसर पर नाम लेकर बधाई संदेश देते। अलबत्ता ब्लाग लेखकों और पाठकों को इस होली पर हार्दिक बधाई। इस व्यंग्य पर जितना दुःख था उसे बाहर निकाल फैंके और स्वयं भी ऐसे ही व्यंग्य लिखें जिससे किसी को दुःख न पहुंचे और जिस पर लिखा जाये वह स्वयं भी प्रसन्न हो। हमें यह व्यंग्य अच्छा लगा।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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1 comment:
आपको तथा आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ.nice
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