सभी को बताये रास्ते पर खुद चलें, ऐसे लोग कम हैं।
दूसरे को सिखायें दांवपैंच, जो अजमाने में खुद बेदम हैं।।
हवा के झौंके से कांपने लगता है पूरा उनका बदन,
जमाने को डरपोक बतायें, अपनी बहादुरी के उनको वहम हैं।।
दूसरों की रौशनी में चले हैं पूरी जिंदगी का रास्ता,
दीपक और मशाल जलायें रोज, ऐसे लोग कम हैं।।
सह नहीं पाते दूसरे की खुशी, दुखी हो जाते हैं,
अपने मतलब की राह चले हैं वह, जहां ढेरों गम हैं।
तलवारें और ढाल थामें हैं चारों ओर लोग
कलम से शब्द लिखकर अमन लायें, ऐसे लोग कम हैं।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorदूसरे को सिखायें दांवपैंच, जो अजमाने में खुद बेदम हैं।।
हवा के झौंके से कांपने लगता है पूरा उनका बदन,
जमाने को डरपोक बतायें, अपनी बहादुरी के उनको वहम हैं।।
दूसरों की रौशनी में चले हैं पूरी जिंदगी का रास्ता,
दीपक और मशाल जलायें रोज, ऐसे लोग कम हैं।।
सह नहीं पाते दूसरे की खुशी, दुखी हो जाते हैं,
अपने मतलब की राह चले हैं वह, जहां ढेरों गम हैं।
तलवारें और ढाल थामें हैं चारों ओर लोग
कलम से शब्द लिखकर अमन लायें, ऐसे लोग कम हैं।
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
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