Tuesday, December 22, 2009

ज़माने के दर्द के साथ-हिंदी शायरी (zamane ke dard ke saath-hindi shayri)

 कागज़ की उपाधियों से
पूरा घर  सजा दिखता हो
गर आदमी बेचने वाले अल्फाज़ लिखता हो.
खुद के साथ ज़माने के दिल को तसल्ली दे
मुश्किल होता है ऐसा लिखना
दर्द अपना चेहरे पर न आये
मुश्किल होता है ऐसा बेदर्द दिखना
बह जाए महफ़िलों में वाह वाह की दरिया के साथ
एक दिन बह जाएगा का उसका नाम भी
नाम उसका ही रौशन रहेगा
जो जमाने के दर्द के साथ खुद टिकता हो..
 
कवि लेखक और सम्पादक - दीपक भारतदीप,ग्वालियर
 

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