बड़े लोगों की होती है बड़ी बातें।
छोटा तो दिन में भी
छोटी शर्म का काम करते भी घबड़ाये
बड़ा आदमी गरियाता है
गुजारकर बेशर्म रातें।।
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छोटे आदमी की रुचि
फांसी पर झूले
या लजा तालाब में डूबे
बड़ा आदमी अपनी रातें गरम कर
कुचलता है कलियां
फिर झूठी हमदर्दी जताये।
बड़े आदमी की विलासता भी
लगाती उसके पद पर ऊंचे पाये।
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हर जगह बड़े आदमी की शिकायत
बरसों तक कागजों के ढेर के नीचे
दबी पड़ी है।
छोटे की हाय भी
उसके बीच में इंसाफ की उम्मीद लिये
जिंदा होकर सांसें अड़ी है।
बड़े लोग हो गये बेवफा
पर समय की ताकत के आगे
हारता है हर कोई
हाय छोटी है तो क्या
इंसाफ की उसकी उम्मीद बड़ी है।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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