Thursday, February 12, 2015

सपनों का ताजमहल-हिन्दी कविता(sapnon ka tazmahal-hindi poem)



राजपद पर विराजमान पांव
जनपद कुचले जाने की परवाह
कभी नहीं करते।

उड़ता है जिनका दिमाग
सातवे आसमान पर
अपने ही व्यक्तित्व पर
रहते हमेशा फिदा
छोटे इंसान के दर्द पर
आह कभी नहीं भरते।

कहें दीपक बापू सपने में
बना लेते लोग ताजमहल
जब खुली आंखों के सामने
खड़ा होता कड़वा सच
तब वह जिंदगी जीने के लिये
पत्थरों के घर से
बड़ी चाह कभी नहीं करते।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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